बुजुर्गों को सम्मान देने का दिन
आज विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस है यानी बुजुर्गों को सम्मान देने का दिन. नयी पीढ़ी को यह बताने का दिन कि ये बोझ नहीं, बल्कि जिस सुंदर-सी बगिया में आप खिलखिला रहे हो, उसको इसी बागबान ने सींचकर इतना मनोरम बनाया है. बच्चों को अपने पैर पर खड़ा करने के लिए उन्होंने जो भी जतन किये, उस ऋण को सम्मान के साथ चुकाना होगा, ताकि आपके बाद की पीढ़ी भी आपके साथ बेहतर बर्ताव करे. परिवार की रौनक बच्चे होते हैं. माता-पिता की पूरी दुनिया बच्चों के इर्द-गिर्द ही मंडराती है और वक्त संतान के पालन-पोषण में रेत की तरह फिसलता चला जाता है. जब बच्चों को ऊंची तालीम, नौकरी या व्यवसाय के लिए दूसरे शहर या विदेश का रुख करना पड़ता है, तब माता-पिता खालीपन, नीरसता की दुर्भावनाओं से घिर जाते हैं. धीरे-धीरे ये नकारात्मक मनोदशा चरम सीमा पार कर जाती है,
एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम
एक ओर वे गर्वान्वित महसूस कर रहे होते हैं कि उनके संतान ने मुकाम हासिल कर लिया, परंतु दूसरी ओर उनसे बिछड़ने का दर्द और अपने सानिध्य से दूरी उनके मानस पर गंभीर रूप से प्रभावित करती है. इन दोनों प्रवृत्तियों के संघर्ष से मानसिक यंत्रणा विकसित होती है. ऐसी निराशा भरी मनःस्थिति एवं दुर्विचारों के जमघट के प्रतिफल यह मनोविकार पनपता है. मनोचिकित्सकों का कहना है कि यह समस्या तीव्रगति से फैल रही है. अपने व्यस्त जीवन से अचानक एकाकीपन की वेदना, निरंतर बच्चों की चिंता, फिक्र, उनको खोने का त्रास अभिभावकों के मन में व्याप्त हो जाता है और अंततः वह “एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम” का रूप ले लेता है.
एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में “एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम” से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा होती है, क्योंकि संतान के पल्लवन में मां की भूमिका महती होती है. वैसे अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग लक्षण पाये गये हैं, जैसे अत्यधिक एकाकीपन, खालीपन, नाउम्मीदी महसूस होना, ऐसा प्रतीत होना मानो जीवन उद्देश्यहीन, व्यर्थ-सा हो चुका हो. बच्चे जो इनके जीवन का अभिन्न अंग थे- उनसे दूरी व उनकी निरंतर चिंता के कारण तनाव, विषाद, एक अदृश्य भय, असुरक्षा की भावना जैसी निराशाभरी मनःस्थिति उत्पन्न हो जाती है.
अकेले में रोना, दांपत्य जीवन में तनाव, शराब, सिगरेट जैसे कुव्यसनों के गिरफ्त में पड़ना, अनिद्रा या लंबे समय तक सोना, भूख न लगना जैसे शारीरिक व मानसिक विकार की मनोदशा हद से ज्यादा हो जाने पर यह मानसिक अवसाद में परिवर्तित हो जाता है. शोध एवं अध्ययनों से निष्कर्ष निकला है कि इन लक्षणों के स्थायी हो जाने पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है. परिणामस्वरूप व्यथित मन में आत्महत्या जैसे दुर्विचार आते हैं या कई माता–पिता वृद्धाश्रम का भी सहारा ले लेते हैं.
निवारण
“कटु किंतु सत्य”, हमने ही उनके सपनों को पंख दिये, “खूब तरक्की करो” का आशीष दिया. जब यह सुखद क्षण यथार्थ में फलीभूत होने का वक्त आया, तो हम ही उनके पैरों की बेड़ियां बन गये. बहरहाल ऐसे अनेक महत्वपूर्ण सूत्र हैं, जिनसे “एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम” का निदान किया जा सकता है.
अपनाइए जिंदादिली के ये सूत्र
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मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि इन परिस्थितियों से लड़ने के लिए मनोबल व संकल्पशक्ति का होना बहुत जरूरी है. जीवनशैली में आवश्यक सुधार, संतुलित एवं नियमित दिनचर्या, जीवन में विविधता, जैसे- संगीत, साहित्य, खेल, धार्मिक कृत्य इत्यादि जीवन के अनेक पहलुओं को अपनी रुचि के अनुरूप दैनिक जीवन क्रम में स्थान देने से उत्साह में वृद्धि व स्वास्थ्य लाभ होता है.
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कोई-न-कोई रचनात्मक कार्य करते रहें, नये कौशल सीखें व स्वयं को व्यस्त रखें. बच्चों को संभालने के दौरान आपके कई शौक पृष्ठभूमि में चले गये होंगे, उन्हें पुनः जागृत करें. कहते हैं जिंदगी में कुछ करने की कोई निर्धारित आयु नहीं होती, बस कुछ कर जाने का जुनून व जज्बा होना चाहिए. इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण भरे हैं. तुलसीदासजी ने अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष की आयु में ‘रामचरितमानस’ की रचना प्रारंभ की थी. गांधीजी 51 से 66 वर्ष तक स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते रहे और इसके साथ ही वे उत्कृष्ट साहित्य की रचना भी करते रहे.
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संगीत थकान व उदासी को दूर करने का श्रेष्ठ माध्यम है. लोकसंपर्क बढ़ाना लाभप्रद होगा. अपने मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों और पास-पड़ोस के लोगों से घुले-मिलें. अब जब जिम्मेदारियों का बोझ कम है, तो अपने जीवनसाथी के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें. आज मोबाइल व इंटरनेट का जमाना है. आप हर समय कॉल्स या वीडियो कॉल्स द्वारा अपने बच्चों से जुड़े रह सकते हैं. फिर भी उदासी, निराशा हो तो नि:संकोच मनोचिकित्सक से परामर्श लें.
याद रखें :
आपके पास ज्ञान, सामर्थ्य अनुभव व परिपक्वता का अपूर्व भंडार है, इनके प्रयोग से आप समाज की अमूल्य सेवा कर सकते हैं. ऐसे कई कार्य हैं, जिनमे शारीरिक क्षमता की अपेक्षा बुद्धि, बल की ज्यादा जरूरत होती है. अपने जीवन के एक-एक क्षण का सदुपयोग कर अर्थपूर्ण जीवन व्यतीत करें.