भारतीय काव्य के गौरवशाली अतीत के प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि से प्रारंभ होकर आज तक की कवि कुल परंपरा के सहेजते समेटते- ‘कहने को तो हम आवारा स्वर हैं. इस वक्त सुबह के आमंत्रण पर हैं. हम ले आये हैं बीज उजाले के, पहचानो सूरज के हस्ताक्षर हैं. यह कवि का ही मधुवंत कलेजा था… ’सोम ठाकुर के गीत की पंक्तियां सबको सम्मोहित कर लेती हैं. गीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले, गीत के इस स्वर्ण युग के श्लाका पुरुष डॉ सोम ठाकुर को लगभग तीस सालों से निरंतर बिहार बुलाकर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों का यह सुप्रसिद्ध कवि आत्ममुग्ध, भारी भरकम, अपनी बोलचाल और व्यवहार में असहज और असामान्य है.
जब भी मैंने बिहार के कस्बों, जिला मुख्या लयोंया डॉ अनिल सुलभ के सहयोग से पटना में भी राष्ट्रीय काव्योत्सवों का आयोजन किया. डॉ सोम ठाकुर जी ने मेरे आमंत्रण को कभी टाला नहीं और कार्यक्रमों को अविस्मरणीय बना डाला. रात आठ बजे से शुरू होकर सुबह तीन-चार बजे तक चलने वाले इन काव्योत्सवों से उन गांवों कस्बों की धूल भरी पगडंडियां भी धन्य-धन्य हो उठीं. डॉ सोम ठाकुर जी की अध्यक्षता-और साथ में 10-12 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि, शायर और हास्य व्यंग्यकार अधिकांश आयोजनों की समाप्ति के बाद श्रोताओं को निष्कर्ष देते मैंने खुद सुना है. सोमजी के गीतों में भारतीय काव्य का गौरवशाली अतीत भी है और गीत काव्य का स्वर्णिम विहान भी.
मार्च 1934 को आगरा में हुआ. आगरा कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1966-67 तक आपने आगरा वि श्ववि द्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया. परंतु इनका मन इसमें रमा नहीं और इस विशाल राष्ट्र को गीतोन्मुख करने को इनकी चेतना स्वयं मुड़ चली. कवियों के व्यक्तित्व पर उनका एक मुक्तक-‘कतरे से समंद तक गुमनाम सि लसिला हूं. तोड़े हजार बंधन हर कैद में रहा हूं. कद मापने का मेरा बेचैन आसमां है. छोटा हूं जिंदगी से पर मौत से बड़ा हूं.’ संकेत करता है कि यदि वह सच्चा कवि है, तो वह मरता नहीं- वह कालजयी हो जाता है और अपने मरने के बाद ज्यादा जिंदा रहता है. देश में आपातकाल की घोषणा हो चुकी थी.
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फणीश्वर नाथ रेणु को गिरफ्तार कर लिया गया था. बाबा नागार्जुन की गिरफ्तारी की तैयारी चल रही थी. उस समय आपने दोहे जैसी प्राचीनतम विधा के माध्यम से-”देखे इस दरबार में अजब अनोखे खेल. पूंछ हिले कुर्सी मिले होंठ हिले पर जेल.” से जनता की मन: स्थिति और देश की परिस्थति की भाषित अभिव्यक्ति दे दी थी. प्रगति वाद, प्रयोगवाद और नयी कविता के तिहरे आक्रमणों के शीतयुद्ध और विज्ञापनी चकाचौंध के बावजूद राष्ट्र के गीत प्रेमी श्रोताओं के बीच आपकी मानवमुखी गीतधारा बहती रही. उस समय महामहिम राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने जब राष्ट्रपति भवन में आपको काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया.
‘गिर पड़ा हूं किसी बेसुरे मोड़ पर बांसुरी के सुरों से उठा लो मुझे, रोशनी के लिए मैं परिशान हूं, इस अंधेरी गली से निकालो मुझे, शांति के पक्ष में शीश घुनता रहा, मैं सृजन-बीज हूं, तुम बचा लो मुझे.’ सुना कर देश के प्रथम नागरिक के सामने मानो राष्ट्र वासि यों का सारा दर्द ही आपने रख डाला. इसी कारण लोकमानस ने आपको गीत के शलाका पुरुष के रूप में मान्यता प्रदान की. सन 2003-2007 तक अपने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्था न के कार्यकारी अध्यक्ष पद (राज्य मंत्री का दर्जा ) को सुशोभित किया और हिंदी के सबसे बड़ा ‘यश भारती पुरस्कार’ 2005 में आपको प्रदान किया गया.
उत्तर प्रदेश हिंदी स्थान में रहते आपने अमेरिका और इंगलैंड के प्रसिद्ध प्राध्यापकों, लेखकों, कवियों और समीक्षकों की संगोष्ठियां आयोजित करायीं व 1984 से 2007 तक सरकारी एवं साहित्यिक यात्राएं की. अमेरिका के 29 तथा कनाडा के 18 शहरों के अतिरिक्त मॉरीशस सूरीनाम और नेपाल में अपने हिंदी गीतों का ध्वज फहराया. अमेरिका के मेरीलैंड राज्य के महानगर वाल्टी मोर के मेयर द्वारा आपको ‘मानद नागरिकता’ प्रदान की गयी. आपकी यश-कीर्ति से प्रभावित होकर मुंबई में ‘प्रेस गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने भी आपको सम्मानित किया.