पटना. बिहार में हुए गर्भाशय घोटाले की जांच सीबीआइ से कराने के लिए दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव को इस मामले में अब तक की गयी कार्रवाई का ब्योरा छह सितंबर तक कोर्ट को देने का निर्देश दिया है. जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने वेटरन फोरम द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया है. कोर्ट ने मुख्य सचिव को यह भी बताने को कहा है कि आगे इस मामले में सरकार द्वारा क्या कार्रवाई करने की योजना है.
महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट में कहा कि इस लोकहित याचिका में दिये गये तथ्य वास्तविक नहीं हैं.उन्होंने बताया कि बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष इस तरह के 450 मामले आये थे. राज्य सरकार की जांच के बाद नौ जिलों में गर्भाशय निकाले जाने के 702 मामले सामने आये थे. इन मामलों में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है. पीड़ित महिलाओं को क्षतिपूर्ति के रूप में 50- 50 हजार रुपये पहले ही दे दिये गये हैं. इसके बाद आयोग ने आदेश दिया कि यह राशि बढ़ा कर डेढ़ से ढाई लाख रुपये की जाए.
महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट को बताया कि क्षतिपूर्ति की राशि देने के लिए सरकार ने 5.89 करोड़ रुपये निर्गत किये हैं . कुछ दिनों में क्षतिपूर्ति की राशि को पीड़ितों के बीच वितरित कर दिया जायेगा. कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि किन- किन धाराओं में दोषियों के विरुद्ध मामले दर्जकिये गये. कोर्ट ने कहा कि किसी भी मानव के शरीर से उसकी बिना सहमति के उसका कोई भी अंग निकाला जाना गंभीर अपराध है . इसलिए इस मामले में दोषियों के विरुद्ध नियमों के तहत ही धाराएं लगायी जानी चाहिए.
याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि सबसे पहले यह मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था . इस मामले में 2017 में पटना हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम द्वारा दायर की गयी थी . इसमें यह आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों, डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर उसका गर्भाशय निकाल लिये गये हैं.उन्होंने कोर्ट को बताया कि पीड़ित महिलाओं की संख्या ज्यादा होने की संभावना है.