Indian Rupee Journey: भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. देश के आजाद होने के बाद से भारतीय मुद्रा ने भी कई उतार-चढ़ाव देखा है. एक वक्त ऐसा भी था, जब 1 यूएस डॉलर के मुकाबले 4 रुपया पर्याप्त हुआ करता था. लेकिन, अभी एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीयों को लगभग 80 रुपये अदा करने पड़ते हैं. आइए जानते है कि भारतीय मुद्रा रुपया का प्रदर्शन 1947 के बाद से अन्य वैश्विक बेंचमार्क साथियों के मुकाबले कैसा रहा है. बता दें कि किसी देश की मुद्रा का मूल्य उसके आर्थिक मार्ग का आकलन करने के लिए एक प्रमुख संकेतक है.
वर्ष 1947 के बाद से व्यापक आर्थिक मोर्चे पर बहुत कुछ हुआ है, जिसमें 1960 के दशक में खाद्य और औद्योगिक उत्पादन में मंदी के कारण आर्थिक तनाव भी शामिल है. फिर चीन और पाकिस्तान से युद्ध लड़ने के बाद भी भारत को झटका लगा. देश का व्यापार घाटा बढ़ गया और महंगाई उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. 1966 में विदेशी सहायता खत्म कर दी गई. इन सभी कमजोर मैक्रो-इकोनॉमिक संकेतकों के कारण रुपये में उस वक्त काफी कमजोरी देखने को मिली. वहीं, रिपोर्टों के अनुसार, 6 जून 1966 को तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने एक झटके में भारतीय रुपये को 4.76 रुपये से घटाकर 7.50 रुपये कर दिया.
1990 के अंत में तत्कालीन भारत सरकार ने खुद को गंभीर आर्थिक संकट में पाया, क्योंकि उसे भारी व्यापक आर्थिक असंतुलन के कारण भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ा. सरकार का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था. 1 जुलाई 1991 को मुद्रा का पहली बार प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले लगभग 9 प्रतिशत डीवैल्युएशन किया गया, उसके बाद दो दिन बाद 11 फीसदी का एक और डीवैल्युएशन किया गया. सुधारों ने 1997-98 तक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया. केंद्र सरकार का खर्च 2007-08 और 2008-09 में सालाना आधार पर 20 फीसदी से अधिक बढ़ा है. स्वतंत्रता के दौरान तत्कालीन बेंचमार्क पाउंड स्टर्लिंग के मुकाबले 4 रुपये से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग रुपया 79 से 80 तक पहुंचा है.
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के फॉरेक्स एंड बुलियन, गौरांग सोमैया ने कहा कि इन वर्षों में रुपये की कमजोरी में कई फैक्टर्स रहे हैं. जिसमें व्यापार घाटा अब बढ़कर 31 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है, इसमें मुख्य रूप से हाई ऑयल इम्पोर्ट बिल का योगदान था. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी रह सकती है, लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार के लिए आरबीआई द्वारा बड़े पैमाने पर किए जा रहे उपायों के बाद मूल्यह्रास की गति धीमी हो सकती है.
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