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शौर्य गाथा : लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी को 1971 के भारत-पाक युद्ध में वीरता के लिए वीर चक्र

Shaurya Gatha:1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वे झारखंड के मधुपुर (देवघर) के रहनेवाले थे. कर्नल चटर्जी ने एक नहीं, तीन-तीन लड़ाईयां लड़ीं. 1962 में चीन के साथ और 1965, 1971 में पाकिस्तान के साथ.

Shaurya Gatha: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वे झारखंड के मधुपुर (देवघर) के रहनेवाले थे. कर्नल चटर्जी ने एक नहीं, तीन-तीन लड़ाईयां लड़ीं. 1962 में चीन के साथ और 1965, 1971 में पाकिस्तान के साथ. 20 जनवरी 1939 को प्रशांत कुमार चटर्जी का जन्म संस्कारों से अति धनी परिवार ‘द चटर्जीर्ज’ में हुआ था, जो मधुपुर के मीना बाजार, समाज रोड में स्थित है. वे संपन्न परिवार के थे. उनके दादाजी ब्रोजेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय एक संस्कृत पंडित थे. पिता निरंजन चटर्जी एक स्कूल के प्राध्यापक थे.

किशोरावस्था में प्रशांत अपनी बुद्धिमानी और साहसिक स्वभाव के कारण जाने जाते थे. उसी दौरान एक घटना घटी थी जिससे साबित हो गया था कि यह युवक कुछ अलग है. एक दिन रास्ते में उन्होनें एक व्यक्ति को एक महिला के साथ छेड़छाड़ करते देखा. वहां खड़े लोग दर्शकों की तरह यह सब देख रहे थे, किन्तु प्रशांत चुप नहीं रह सके एवं इस घटना का विरोध किया और छेड़खानी करनेवाले को भगा दिया. इस छोटी सी घटना ने यह संदेश दे दिया था कि आगे चल कर यह व्यक्ति कोई बड़ा काम करनेवाला है. चाहते तो वे अपने घर के आसपास अच्छी नौकरी कर जिंदगी जी सकते थे, लेकिन उन्होंने देश सेवा को चुना. रांची के संत जेवियर कॉलेज से उन्होंने आइएससी की परीक्षा पास की. आगे की पढ़ाई की जगह उन्होंने वर्ष 1956 में एनडीए की परीक्षा पास की. वर्ष 1958 तक उन्होंने खड़गवासला से नेशनल डिफेंस अकादमी के पाठ्यक्रम को पूरा किया. 13 दिसंबर 1959 को उन्हें मराठा सैन्य टुकड़ी 5 की कमान सौंपी गयी. यहीं से उनकी नयी यात्रा आरंभ हुई.

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लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी थोड़े अलग किस्म के व्यक्ति थे. एक तरफ तो लड़ाई के मैदान में वह एक शेर की तरह निर्भीक और शक्तिशाली रहते थे और दूसरी तरफ अपने परिवार के सदस्यों के बीच वह एक बच्चे की तरह बन जाते थे. जब कभी भी वह धनबाद स्थित अपने चाचा सत्यारंजन चटर्जी और उनके परिवार के यहाँ जाते थे, तब अपने से उम्र में काफी छोटे चचेरे भाई-बहनों के साथ लुका-छिपी का खेल खेला करते थे. पूरे परिवार के लिए यह उत्सव का समय रहता था. जब भी वह मधुपुर अथवा धनवाद जाया करते थे, चेहरे पर उनकी फैली हुई मुस्कान और आकर्षक व्यक्तित्व लोगों को उनकी तरफ खींचता था. वह बहुत ही हंसमुख स्वभाव के थे. चुटकुले कहा करते थे. उनके सबसे अच्छे मित्र मेजर जनरल सी के करूम्वया थे, जो अभी मैसूर में रह रहे हैं.

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लेफ्टिनेंट कर्नल पी के चटर्जी ने 1962 में भारत-चीन युद्ध में भाग लिया, फिर 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया. 1971 वाले युद्ध में पाकिस्तान पराजित हुआ. फिर बांग्लादेश का जन्म हुआ, पाकिस्तान की शर्मनाक हार हुई. पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया था. कर्नल प्रशांत ने इस युद्ध में बड़ी भूमिका अदा की थी. उनके साहस, उच्च स्तर की बहादुरी, नेतृत्व और समर्पण के कारण 30 दिसंबर 1971 को उन्हें वीर चक्र से सुशोभित किया गया.. उनकी माता श्रीमती उषा रानी चटर्जी को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा ‘रत्नगर्भ’ की उपाधि से सम्मानित किया गया.

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उनके लिए प्रशंसात्मक उल्लेख कुछ इस प्रकार लिखा गया था- “मेजर प्रशांत कुमार चटर्जी” मराठा सैन्य दल के एक कंपनी कमांडर थे, जिन्हें पूर्वी क्षेत्र में तैनात किया गया था, 4 और 5 दिसंबर 1971 को उनकी बटालियन को पास के दुश्मन के इलाके को कब्जा करने का कार्य सौंपा गया था. यह इलाका दुश्मनों द्वारा अच्छे से तैयार किया गया, उनकी बहुलता का क्षेत्र था. मेजर प्रशांत की टीम ने वहां बीच के मार्ग से हमला शुरू किया और उन्हें दुश्मनों की गोलियों की बौछार और भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा. बिना किसी भय के अपने जवानों का मार्गदर्शन करते हुए, उन्होंने इस घमासान लड़ाई को लड़ने के बाद अपने लक्ष्य की प्राप्ति की. लड़ाई के दौरान कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी (जो उन दिनों मेजर के पद पर थे) अपनी मराठा बटालियन को रास्ता दिखाते हुए, दुश्मनों के सुरक्षा घेरे के 20 मीटर अंदर तक चले गये. उनके जवानों ने पूरे जोश से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये थे. 28 नवम्बर 1975 को उनकी पदोन्नति लेफ्टिनेंट कर्नल के ओहदे पर हो गयी.

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लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत कुमार चटर्जी शादी नहीं करना चाहते थे. उन्हें लगता था कि शादी करने से मातृभूमि की सेवा के उनके काम में रुकावट आ सकती है. बाद में उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा. पटना की कृष्णा बनर्जी के साथ 17 जनवरी 1975 को उन्होंने शादी की. वह एक भव्य विवाह समारोह था, जिसे परिवार के सदस्यों द्वारा आज भी याद किया जाता है. वर्ष 1984 में वे दोनों एक पुत्री के माता-पिता बने. अस्वस्थता के कारण उन्हें सेना से पहले अवकाश लेना पड़ा. एक अगस्त 1986 को उनका निधन हो गया. उन्हें उनकी बहादुरी के कारण आज भी याद किया जाता है.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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