Azadi ka Amrit Mahotsav: रुद्र नारायण झा एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे. इसके साथ ही उन्होंने जीवन में अपना एक आदर्श कायम किया़ उन्होंने अभाव में भी स्वाभिमान के साथ जीने की मिसाल कायम की. जीवन में नीति, सिद्धांत और जन सरोकार के प्रति समर्पित उनका जीवन हमारी और आनेवाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है. विषम परिस्थितियों में भी खुद को संभालते हुए निर्धारित लक्ष्य हासिल करने तक खुद को खपा देने की उनकी ललक ने उन्हें जज्बाती बनाया.
उनके इसी जज्बे ने न सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे किये, बल्कि समाज में व्याप्त महाजनी प्रथा सहित कई सामाजिक कुरीतियां के खिलाफ न सिर्फ खुद लड़े बल्कि लोगों को भी जागरूक कर गोलबंद किया. कट्टर क्रांतिकारी रुद्र नारायण झा दिल से बेहद परोपकारी थे. खुद भोजन मिले या न मिले, दरवाजे पर आया कोई भी व्यक्ति भूखा न जा पाये यह उनका जीवन दर्शन था. धार्मिक प्रवृत्ति के होने के बावजूद कभी भाग्य भरोसे नहीं रहे.
इस संदर्भ को उनके जीवन की एक घटना से समझा जा सकता है. एक दिन वे अपने खेत जा रहे थे. इसी दौरान उन्होंने रेड्डी गांव के बाहर खम्हार में गांव के युवाओं को जमा देखा. पता चला कि कोई हाथ देख कर भविष्य बताना वाला आया है. हाथ दिखाने के लिए युवाओं की भीड़ लगी है. खेत से लौटने के दौरान भी उन्हें भीड़ यथावत मिली. उन्होंने अपने पुत्र को भेज कर हाथ देखने वाले व्यक्ति को बुलवाया. उससे कहा कि वो ऐसा कर गांव के युवाओं को भाग्य भरोसे रहने को प्रेरित न करें और दोबारा उनके गांव न आयें. उनके मना करने के बावजूद एक महीने बाद हाथ की रेखा देख भविष्य बताने वाला शख्स फिर उनके गांव आ पहुंचा. पुनः युवाओं की भीड़ लगी मिली. यह देख रुद्र नारायण झा मन ही मन भड़क उठे.
उन्होंने अपने पुत्र के माध्यम से उसे घर बुलवाया. हस्तरेखा देखने वाले को सम्मान पूर्वक दही-चूड़ा खिलाने का आग्रह अपनी धर्मपत्नी से किया. खिलाने के बाद रुद्र नारायण झा ने अपने घर का मुख्य द्वार बंद करने का निर्देश अपने पुत्र को दिया. दरवाजा बंद होने के बाद उन्होंने हाथ में एक डंडा लिया और हाथ देखने वाले की ओर बढ़े. हाथ देखने वाला डर गया और रुद्र नारायण झा से कहने लगा कि बाबा खिलाने के बाद ऐसा क्यों कर रहें हैं. रुद्र नारायण झा ने उससे पूछा कि क्या तुम्हें आज घर से निकलने वक्त यह पता था कि रुद्र नारायण झा के घर पिटाई होगी. अगर पता था तो क्यों आये. नहीं पता था तो यह बताओ कि जब तुम्हें अपना भविष्य नहीं मालूम है, तो तुम दूसरों को भाग्य भरोसे रहने के लिए क्यों प्रेरित करते हो. रुद्र नारायण झा के इस रूप को देख हाथ देखने वाले ने रुद्र नारायण झा का पैर पकड़ माफी मांगी और दोबारा रेड्डी गांव नहीं आने की कसम खायी. वो शख्स फिर कभी रेड्डी गांव नहीं आया.
अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित कर्मयोगी रुद्र नारायण झा ने पूरे इलाके में अपनी कर्मठता से एक मुकाम हासिल कर सामाजिक प्रतिष्ठा पायी. अभाव और शुरुआती दिनों के संघर्ष के बावजूद उन्होंने न सिर्फ अपनी और अपने परिवार की पहचान बनायी, बल्कि पूरे इलाके के लिए आदर्श पुरुष भी बने.
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