अनिकेत त्रिवेदी. पटना. देश आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है. यह मौका देश को स्वतंत्रता दिलाने में कुर्बान हुए अनगिनत शहीदों को याद करने का है. 1942 में हुई अगस्त क्रांति के दौरान पटना जिले में भी कई लोग शहीद हुए थे. बख्तियारपुर के नाथू प्रसाद यादव की शहादत के बाद क्रांति और भड़क गयी थी. अंग्रेजी फौज से झड़प में बख्तियारपुर के मोगल सिंह भी शहीद हो गये थे. 14 अगस्त को पटना ब्रिटिश और अमेरिकन फौजियों का अड्डा बन गया था. गोरों ने पटना में कड़ी नाकेबंदी कर रखी थी.
शहर की सड़कों को पत्थरों और पेड़ों से पाट दिया गया था, ताकि आंदोलनकारी सड़क पर नहीं उतरें. शहर में चार फाटक से होकर गुजरने की अनुमति थी. ठोक-पीट कर देख लिया जाता कि आदमी अगस्त क्रांति का बागी तो नहीं है. गांधी मैदान से एग्जीबिशन रोड और उस समय के कलक्टरी रोड में बगैर पास के जाने की अनुमति नहीं थी. पालीगंज में डाकघर और नहर ऑफिस फूंक दिये गये प्रो. बलदेव नारायण की पुस्तक अगस्त-क्रांति में बिहार सहित पटना में हुई अगस्त क्रांति का पूरा वर्णन किया गया है.
वे लिखते हैं कि पालीगंज में आजाद जनता ने ताकत का एक नमूना पेश किया था. 14 अगस्त की शाम को पालीगंज में आठ-दस हजार लोगों ने इकट्ठा होकर नहर ऑफिस और डाकघर में ताला लगा दिया. वहां के कन्हाई सिंह इस जनआंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. भीड़ ने आगे बढ़ कर थाने पर कब्जा कर लिया और वहां झंडा फहरा दिया गया. 15 से 17 अगस्त के दौरान पटना के मुफस्सिल थाने के फतेहपुर में काफी उत्साह था. वहां चंद्रशेखर सिंह ने रूरल डेवलपमेंट ऑफिस को जलाकर सभी कर्मचारियों से इस्तीफा लिखवा दिया था.
बंगाल पुलिस में अपनी नौकरी छोड़ कर रामबहाल सिंह और रामाश्रय लौटे थे. उन्होंने लोगों के साथ मिला कर फतेहपुर के एक बड़े पुल को तोड़ डाला. उधर, बाढ़ में लोगों ने रेलवे स्टेशन के कागजात और फर्नीचर फूंक दिये. अथमलगोला स्टेशन को जला दिया. इस दौरान भले ही पटना शहर में अंग्रेजी फौज की नाकेबंदी की गयी हो, लेकिन जिले के आसपास के क्षेत्रों के क्रांति और भड़क रही थी. बाढ़, बख्तियारपुर, अथमगोला के अलावा पुनपुन के लोग भी क्रांति की मशाल लेकर चल रहे थे.
पुनपुन की जनता रेलवे पुल को तोड़ने के लिए पहुंची थी. वहां उनका सामना अमेरिकन फौजियों से हुआ, लेकिन भारी विरोध के कारण फौज को पीछे हटना पड़ा. अगस्त की क्रांति के दौरान जहानाबाद के कई जगहों पर टेलीफोन के तार काट दिये गये थे. 16 अगस्त को पुसौली स्टेशन पर रेलवे लाइन उखाड़ने और पानी को बरबाद करने में लगे लोगों को भगाने के लिए फौज आ गयी. भीड़ को भागते देख फौजियों ने उनपर गोली चला दी. इसमें वीरकलां के बांका नोनियां, नसेज के रघुवीर मुसहर और औरैयां के केशो कांदू सहिए एक और व्यक्ति शहीद हो गये.