Azadi ka amrit mahotsav: हमारे देश ने गुलामी से आजादी तक का सफर यूं ही पूरा नहीं कर लिया था. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए जर्रे-जर्रे से पसीने और खून बहे थे. भागलपुर जिले के रणबांकुरों ने भी अपनी मजबूत भागीदारी करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाने में सारे सुख-चैन त्याग दिये थे. आंदोलन किये, जेल की जिल्लत झेली, लाठियां खायी. जिला सामान्य शाखा के पास उपलब्ध सूची के अनुसार जीवित स्वतंत्रता सेनानियों से प्रभात खबर की टीम ने बातचीत की और जानना चाहा कि आजादी कैसे पायी गयी थी. आप भी पढ़ें.
मुख्य बाजार सुजागंज मस्जिद लेन के स्वतंत्रता सेनानी नित्यानंद झा (97) ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर 1942 के अगस्त क्रांति में भागीदारी निभायी. उनके पिता 1935 में मधुबनी से आकर भागलपुर में बसे थे. ब्रिटिश हुकूमत ने आंदोलनकारियों में शामिल नित्यानंद झा को जुलूस के साथ गिरफ्तार कर लिया था और छह माह तक सेंट्रल जेल में रखा था.
नित्यानंद झा ने बताया कि स्टेशन चौक से पंडित बौधनारायण मिश्र के नेतृत्व में जुलूस में शामिल हुए. उस समय किशोर थे. केवल यह जानते थे कि अंग्रेजों ने देश को गुलाम बनाया है. महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई का आह्वान किया है. ऐसे में जुलूस में शामिल हो गया.
जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दी. कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी भी गिरफ्तारी हुई. फिर स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण से मिले. 1952 में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भागलपुर आये, तो स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बैठक की. इसमें उन्हें भी शामिल होने का मौका मिला.
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पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सभी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया. प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में स्वतंत्रता दिवस पर सम्मान के तौर पर ताम्र पत्र प्रदान किया.
नाथनगर गोलदारपट्टी के बालेश्वर भगत ने भी आजादी की लड़ाई लड़ी थी. भारत की ओर से लड़नेवाले लोगों को खाना व सूचना पहुंचाते थे. चिट्ठी लेकर जाने के क्रम में वह टीएनजे काॅलेज के पास पकड़े गये. हालांकि उन्होंने चिट्ठी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दी. चिट्ठी को खा ली. बावजूद इसके उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
बालेश्वर भगत ने बताया कि तब जज्बा व जुनून काफी था. कम उम्र में ही आजादी की लड़ाई में वह कूद पड़े थे. नाथनगर के गंगापार तक चिट्ठी लेकर वह और उनके साथी जाते थे.