Bareilly News: आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. देश को आजाद कराने में एक नई बल्कि कई भारत मां के सपूतों ने बलिदान दिया. मुल्क को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. लाखों लोगों की मौत के बाद देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था. बरेली कॉलेज के फारसी विभाग के शिक्षक कुतुब शाह और मौलबी महमूद हसन रुहेला सरदार नवाब खान बहादुर खान के आजादी से जुड़े लेख और फरमान को प्रेस में छाप कर लोगों के बीच बांटते थे. ब्रिटिश हुकूमत के अफसरों ने यह ने करने की चेतवानी दी. मगर, इसके बाद भी शिक्षक कुतुब शाह नहीं मानें.
उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. इसके बाद अंग्रेजों की फौज ने शिक्षक कुतुब शाह को गिरफ्तार कर लिया. उनको अंग्रेज जज ने फांसी की सजा सुनाई. रुहेला सरदार ने शिक्षक कुतुब शाह को बचाने के लिए अपने वकील खड़े किए. उन्होंने न्यायलय में काफी बहस की और फांसी से बचा लिया गया, लेकिन यह सजा काला पानी में बदल गई. उनको अंडमान निकोबार की पोर्ट ब्लेयर जेल भेज दिया गया.
यहां जालिम अंग्रेज फौज ने शिक्षक कुतुब शाह को यातनाएं दी. इससे देश को ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से आजादी दिलाने की इच्छा रखने वाले कुतुब शाह की मौत हो गई. उनका शव अंग्रेजों ने परिजनों को भी नहीं दिया.
बरेली कॉलेज के छात्र जैमीग्रीन भी रुहेला सरदार खान बहादुर खान की फौज के लिए काम करने लगे थे. रामपुर निवासी जैमीग्रीन बेगम हजरत महल के चीफ इंजीनियर के रूप में भी कार्य करते थे. सिकन्दर बाग का युद्ध जैमीग्रीन ने लड़ा था. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्नाव में फ़ौज की जासूसी करते वक्त गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद उन्हें फांसी दी गई. बरेली कॉलेज के क्रांतिकारी छात्रों ने कॉलेज के प्रिंसपल डॉक्टर कारलोस बक को भी मौत के घाट उतार दिया था.
रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद