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श्रावण मेला 2022: बगहा के इस शिव मंदिर की अनोखी है मान्यता, जाने बाबा कैसे पूरी करते हैं सब की मनोकामना

सावन के सोमवारी पर सभी शिवालयों में भक्तों की भीड़ होती है. बगहा के रामनगर के नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की खास आस्था है. ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना बाबा जरूर पूरी करते हैं. इस मंदिर की वास्तुकला भी अद्भुत है. जहां शिवलिंग विराजमान है उस मंदिर की ऊंचाई 185 फीट है.

सावन के आखिरी व चौथे सोमवार को लगभग एक लाख से अधिक कांवरियों व श्रद्धालुओं ने यहां के विभिन्न शिवालयों में जलाभिषेक व पूजा अर्चना किये. सर्वाधिक भीड़ रामनगर के प्रसिद्ध नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में रही. रविवार की रात से ही मंदिर परिसर सहित पूरा शहर हर हर महादेव व बोल बम के नारों से गूंजता रहा. डाक बम लिए मंदिर का पट रात दो बजे के बाद से ही खोल दिया गया था. डाक बम के बाद पवित्र त्रिवेणी के संगम से जलबोझी कर आने वाले अन्य कांवरियों ने बाबा का जलाभिषेक किया. मंदिर परिसर में सुरक्षा के भी चाक चौबंद इंतजाम किये गये थे. पुलिस निरीक्षक सह थानाध्यक्ष अनंत राम ने बताया कि मंदिर परिसर के साथ-साथ नगर के चौक चौराहों पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गयी थी.

हर इच्छा होती है पूर्ण

सावन के इस महीने में रामनगर के प्रसिद्ध व आस्था का प्रतीक माने जाने वाले नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु व कांवरिया पवित्र त्रिवेणी के संगम से जल ला कर बाबा का जलाभिषेक करते है. कांवरियों के साथ साथ प्रत्येक सोमवार को हजारों की संख्या में महिलाएं भी पूजा अर्चना करने इस शिवालय में पहुंचती है. ऐसा माना जाता है सावन के महीने में भगवान भोले नाथ इस नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में साक्षात विराजमान रहते है. इस महीने यहां जलाभिषेक करने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि नीलकंठ नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में सच्चे मन से पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

वर्ष 1879 में रखी गयी मंदिर की नींव

राजमहल के ठीक पूर्व में बने इस इस शिवालय की नींव वर्ष 1879 में सेनवंशी राजा प्रहलाद सेन के द्वारा रखी गयी थी. उनकी पत्नी रानी विंध्यवासिनी देवी को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दे कर अपने राज रामनगर में धर्म की रक्षा के लिए एक शिवलिंग स्थापित कराने को कहा था. स्वप्न की बात जब राजा प्रहलाद सेन तक पहुंची तो उन्होंने रानी की अभिलाषा को पूरा करने का आश्वासन दिया. जिसके बाद सन् 1879 में मध्य प्रदेश के पवित्र नर्मदा नदी से एक शिवलिंग विशेष मुहूर्त में ला पूरे विधि विधान के साथ राजमहल के ठीक पूरब दिशा में स्थापित कर मंदिर की नींव डाली गयी. हालांकि राजा प्रहलाद निर्माण कार्य पूरा नहीं करा सकें. उनकी मृत्यु के उपरांत इस अधूरे मंदिर का निर्माण शाह वंश के राजा मोहन विक्रम शाह प्रथम व उनकी पत्नी छत्र कुमारी देवी ने कराया. नर्मदा नदी से शिवलिंग लाये जाने के कारण ही इसे नर्मदेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है.

वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना है मंदिर

मंदिर की नींव रखे जाने के लगभग सात वर्षों के बाद यह विशालकाय मंदिर बनकर तैयार हुआ. इस भव्य शिवालय के बीचो बीच शिवलिंग है. वही इसके ईद गिर्द सूर्य मंदिर, विष्णु मंदिर, गणेश मंदिर व मां दुर्गा का मंदिर है. मंदिर के गर्भगृह जहां शिवलिंग स्थापित है. उसकी ऊंचाई 185 फीट है. वही इर्द गिर्द बनाये गये चारों मंदिर की ऊंचाई 100 फीट है.

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