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Azadi Ka Amrit Mahotsav: राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर जेल गये थे गोपेश नारायण

भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. आजादी के संग्राम में कई ऐसे लोग भी थे, जिन्हें देश-दुनिया मुकम्मल तौर पर अब भी नहीं जानती.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालों में घाटशिला के गोपेश नारायण देव अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी थे. आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय ध्वज फहराने, वंदे मातरम और भारत माता की जय बोलने पर उन्हें हजारीबाग जेल जाना पड़ा था. जेल में वे जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया जैसे महान विभूतियों के संपर्क में आये. वे घाटशिला कांग्रेस के पहले अध्यक्ष थे. देशबंधु चितरंजन दास, डॉ. विधान चंद्र राय, शरद चंद्र बोस, हेमंत बोस जैसी हस्तियों के साथ रहे गोपेश नारायण देव अपने उसूलों के पक्के थे. उन्होंने कभी अपने सिद्धांत से समझौता नहीं किया.

गोपेश नारायण देव के पुत्र गोवर्धन नारायण देव ने बताया कि 7 अगस्त 1942 को जब घाटशिला में धालभूम राजा के प्रबंधक ब्रिटिश सरकार के पक्ष में नारे लगाने लगे, तो उनके पिता गोपेश नारायण देव, हरिपद पंडा, दास मति लाल, बंकिम नाग, अतुल बोस, शिव प्रसाद शर्मा, जगन्नाथ सिंह, के मेनन व अन्य वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे. दूसरे दिन उनके पिता साथियों के साथ घाटशिला के रंकिनी मंदिर गये. वहां प्रार्थना की और राष्ट्रीय ध्वज फहराया. भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारे लगाये. 9 अगस्त 1942 को घाटशिला के तत्कालीन थाना प्रभारी प्रभात चक्रवर्ती सिपाहियों के साथ उनके घर आये और उनके पिता व अन्य को गिरफ्तार कर लिया. सभी को जमशेदपुर भेजा गया. उनके पिता को प्रथम श्रेणी का कैदी घोषित कर हजारीबाग जेल तथा हरि पदो पंडा एवं शिव प्रसाद शर्मा को सी क्लास का कैदी घोषित कर पटना जेल भेजा गया.

जेल की दीवार फांदते वक्त जयप्रकाश नारायण हो गये थे घायल

हजारीबाग जेल में जयप्रकाश नारायण को एक माह विशेष सेल में रखा गया था. गोपेश नारायण देव ने जयप्रकाश नारायण एवं बसंत नारायण सिंह के साथ मिलकर जेल से भागने की योजना बनायी. सभी ने जेल में रामनवमी मनाने का निश्चय किया. महावीर झंडा बनाने के उद्देश्य से कुछ बांस जेल के अंदर मंगाये गये थे. रामनवमी की रात उन बांसों की मदद से जेल की दीवार लांघने और दीवार से कूदते समय जय प्रकाश नारायण घायल हो गये. जयप्रकाश नारायण को जीप से एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया.जबकि पिताजी जेल में ही रह गये. इस घटना से ब्रिटिश सरकार अलर्ट हो गयी. दूसरे दिन पिताजी (गोपेश नारायण देव) को जमशेदपुर जेल भेजा गया. मुकदमा चला. जुलाई 1943 में उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद घाटशिला में कांग्रेस कमेटी की स्थापना की गयी. घाटशिला थाना कांग्रेस के पहले अध्यक्ष पिताजी एवं हरि पदो पंडा सचिव चुने गये. हमारा घर कांग्रेस का पहला कार्यालय बना. बाद में पिताजी डॉ राजेंद्र प्रसाद से मिले. उनकी मदद से कई अन्य साथियों को जेल से रिहा कराया. उनके पिता का जन्म 16 नवंबर 1907 को हुआ था. मुसाबनी प्रखंड के तेरंगा गांव में 18 अक्तूबर 1992 को निधन हुआ था. गोवर्धन नारायण देव के अनुसार जब वह छह वर्ष के थे, तो पिताजी उन्हें अपने साथ बैठक में ले जाते थे. उनके पिता स्वाधीनता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास, डॉ विधान चंद्र राय, शरद चंद्र बोस, हेमंत बोस के नियमित संपर्क में भी रहते थे.

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