धनबाद: गत 2 अगस्त को झारखंड के जुझारू नेता शक्ति नाथ महतो की जयंती थी. वह झारखंड के धनबाद के तेतुलगुड़ी गांव के निवासी थे. इनके पिता का नाम श्रीगणेश महतो तथा माता का नाम सधुवा देवी था. प्रारंभिक शिक्षा जोगता प्राथमिक विद्यालय एवं गांधी स्मारक विद्यालय से पूर्ण हुई. बचपन गरीबी में बीता था. शक्ति नाथ महतो झारखंड अलग राज्य के प्रबल समर्थक थे और वंचित समाज के हित चिंतक थे. उन्होंने दमनकारी नीति, अन्याय करने वालों एवं माफियाओं, सूदखोरों के खिलाफ जबरदस्त संघर्ष किया था. गरीबी में पले बढ़े शक्ति नाथ महतो बचपन से ही माफियाओं के एवं महाजनों के द्वारा मजदूरों के ऊपर किए जा रहे जो अन्याय अत्याचार को करीब से देख रहे थे. उनके अंदर माफियाओं, महाजनों, सूदखोरों के खिलाफ अंदर ही अंदर ज्वाला धधकती थी. वह वाम विचार के प्रबल समर्थक थे.
शक्तिनाथ महतो के राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1971 में शुरू हुई थी. उन दिनों गांव में सूदखोरों का आतंक था. लठैतों और दबंगों ने जीना दूभर कर रखा था. झारखंड आंदोलन के अमर पुरोधा बिनोद बिहारी महतो के सानिध्य में रहकर माफिया तत्वों के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई लड़ी. वह 22 मई 1972 को शिवाजी समाज की जोक्ता थाना कमेटी के मंत्री बनाये गये थे. उन्होंने समाज में फैले बाल विवाह दहेज प्रथा नशा उन्मूलन के खिलाफ अभियान चलाया तथा समाज को शिक्षित करने के लिए रात्रि पाठशाला का आरंभ किया आपातकाल के दौरान 22 माह तक धनबाद भागलपुर एवं मुजफ्फरपुर जेलों में बंद रहे. षड्यंत्र कार्यों ने 22 मई 1975 को कार्यकाल में बैठक के बाद शक्ति नाथ महतो का षड्यंत्र किया गया और 28 नवंबर 1977 को घात लगाकर सिजुआ में उनकी हत्या कर दी गयी.
शक्तिनाथ महतो की हत्या तो हो गई लेकिन उनके विचार व आदर्श आज भी हमारे बीच मजदूरों के संघर्ष में व झारखंड आंदोलनकारियों के अरमानों में जिंदा है. आज भी झारखंड के ग्राम्यांचल में रहनेवाले लोगों के जीवन में अपेक्षित बदलाव नहीं आया है. यह स्थिति लोगों को शक्तिनाथ महतो के नेतृत्व की दिलाती रहती है.