आजादी का अमृत महोत्सव: एचइसी के धुर्वा तिरिल निवासी स्व रामरक्ष उपाध्याय ‘ब्रह्मचारी’ स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी और आदिवासी उत्थान के प्रेरक थे. 01 अक्टूबर वर्ष 1893 में उनका जन्म गोपालगंज (बिहार) में हुआ था. उनके पिता का नाम स्व मथुरा प्रसाद उपाध्याय था. उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी विवि, हरिद्वार में हुई थी. उनकी पत्नी स्व. राधिका उपाध्याय को 1972 में ताम्रपत्र मिला था. स्व. रामरक्ष ने वर्ष 1918 में चंपारण में गांधी जी के संग सत्याग्रह किया. उन्हें छह माह की जेल हुई और 300 रुपये जुर्माना भरा. उसी वर्ष कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन के बाद ट्रेन में गांधी जी के साथ यात्रा की थी और चंपारण पहुंचे थे. वर्ष 1921 में एक बार फिर चंपारण सत्याग्रह में एक वर्ष जेल की सजा व एक हजार जुर्माना लगाया गया. वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह को लेकर सीवान से छपरा जेल, फिर हजारीबाग सेंट्रल जेल में छह माह की सजा काटी. वर्ष 1932 में व्यक्तिगत सत्याग्रह को लेकर हजारीबाग जेल में छह माह की सजा मिली. वर्ष 1942 में रामरक्ष उपाध्याय धुर्वा स्थित आवास से गिरफ्तार हुए व दो वर्ष चार माह की सजा काटी. वर्ष 1946 में धुर्वा में उन्होंने ब्रह्मचारी आश्रम की स्थापना की थी. उन्होंने 1927 में लोहरदगा में आदिवासियों को शिक्षित करने के लिए हिंदू इंग्लिश हाइस्कूल की स्थापना की थी.
आंदोलन में लिया भाग
उनकी जीवनी के बारे में पोता कर्नल यूआर राज ने बताया कि दादाजी को डायरी लिखने की आदत थी. जिसे पढ़ कर उन्हें उनकी जीवनी के बारे में जानकारी मिली. उनकी कई डायरी आज भी उनके पास मौजूद हैं. जिसमें उन्होंने गांधी जी के साथ चंपारण आंदोलन, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ आदिवासियों के उत्थान के लिए आश्रम का निर्माण और 15 अगस्त 1947 को रांची के पहाड़ी मंदिर पर झंडोत्तोलन कार्यक्रम के बारे में उल्लेख किया है. रांची पहाड़ी मंदिर पर रात 12.01 बजे झंडा फहराया गया. 24 हजार जनता की भीड़ आधी रात में भी थी. उन्होंने भाषण आरंभ ही किया था कि गोले छूटने लगे. कुल 11 गोले छूटे, आतिशबाजी भी हुई. उन्हें भाषण बंद कर देना पड़ा. बहुत ही उत्साह से प्रभात फेरी रात 2.00 बजे निकाली गयी. मोहल्ले में लोग टोलियां बनाकर फेरी कर रहे थे. लोग नाच रहे थे.
गांधी जी की अंतिम यात्रा का डायरी में किया उल्लेख
अपनी डायरी में उन्होंने गांधी जी की अंतिम यात्रा का भी उल्लेख किया है. उन्हें घर के बाहर शोर की आवाज आयी. गांधीजी मारे गये, कान को इस सूचना पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन हृदय की गति बढ़ गयी. रेडियो से खबर मिली, बात सही है. पिछले 30 वर्षों की घटनाएं मूर्तिमान होकर सामने खड़ी हो गयीं. उनके साथ चंपारण में कार्य किया था. उन्होंने अपनी थाली में से बिना नमक की मेथी की कड़वी साग मेरी थाली में डाल दी थी और कहा कि मेरी साग का स्वाद लो. उस समय उनकी भाव-भंगिमा याद आ गयी. मेरे ऊपर तीन सौ रुपये जुर्माना लगा और छह माह कैद की सजा मिली. उसे सुन कर उन्होंने मुझे बुलाया और कहा डरे तो नहीं हो. तुमसे सरकार हार गयी, तो पिता को कष्ट देने लगी. उसी साल मेरी शादी होने वाली थी. खास तरह से हिदायत दिया इस साल शादी नहीं होगी, नमक मत खाओ. मैंने कहा शादी तो रुक जायेगी, नमक भी कम खाऊंगाा. हसंते हुए गांधी जी ने कहा नमक तो कम खाई ही जाती है. कम क्या करोगे.