Sawan Skanda Sashti 2022: हिन्दू धर्म के अनुसार हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है. ये दिन मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है. इस दिन विशेष रूप से भगवान् कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाती है. आज के दिन व्रत रखने का भी खासा विधान है.
सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाने वाला व्रत स्कन्द षष्ठी व्रत कहलाता है. यह व्रत इस बार आज यानी 3 अगस्त, बुधवार को पड़ रहा है. ये त्यौहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत में खासतौर से मनाया जाता है. आज हम आपको स्कंद षष्ठी का महत्व, पूजा विधि और इस त्यौहार से जुड़े पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं.
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ: 5 जुलाई दिन मंगलवार 2:57
षष्ठी तिथि का समापन- 6 जुलाई दिन बुधवार को 7:19
स्कंद षष्ठी का व्रत तिथि: 5 जुलाई 2022, मंगलवार
ऐसी मान्यता है कि आज के दिन विधि विधान के साथ भगवान् कार्तिकेय की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है और जीवन सुखमय बीतता है. इसलिए आज के दिन निम्न विधि से पूजा करना फलदायी साबित हो सकता है.
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आज के दिन सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करें.
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अब सबसे पहले मुरुगन की मूर्ति या फोटो स्थापित करें और दक्षिण दिशा की तरफ अपना मुख करके पूजा के लिए बैठे.
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पूजन की अन्य समाग्रियों के साथ ही दही और दूध को शामिल करना ना भूलें.
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यदि आज के दिन अपने व्रत रखा है तो किसी भी हाल में इस दौरान लहसुन, प्याज, शराब और मांस-मछली इत्यादि का सेवन ना करें.
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आज के दिन व्रतियों को विशेष रूप से ब्राह्मी का रस और घी का सेवन करना चाहिए.
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इसके साथ ही साथ रात के समय अगर हो सकें तो ज़मीन पर सोएं.
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अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना करें और अपना व्रत खोलें.
षष्ठी वह दिन था जब भगवान स्कंद ने राक्षस सोरापदम को हराया था. सोरापदम के बुरे कर्मों को सहन करने में असमर्थ, देवताओं ने उनकी सहायता के लिए भगवान शिव और पार्वती के पास पहुंचे. भगवान स्कंद ने राक्षस को परास्त करने से पहले छह दिनों तक सोरापदम से युद्ध किया था. उसने शस्त्र को सोरापदम पर फेंका और उसे दो भागों में विभाजित कर दिया. पहला आधा मोर बन गया, जिसे उसने अपना पर्वत मान लिया. दूसरा मुर्गा बन गया.