आजादी का अमृत महोत्सव : कनकलता बरुआ का जन्म 22 दिसंबर, गीतों से प्रभावित और प्रेरित हुई. इन गीतों ने कृष्णकांत बरुआ के घर में हुआ था. जब वह छोटी थीं ,तभी उनके माता – पिता का निधन हो गया. नानी ने उनका पालन – पोषण किया. मई 1931 में जब गमेरी गांव में रैयत सभा हुई, तब कनकलता सिर्फ सात वर्ष की थीं. उन्होंने मामा देवेंद्रनाथ और यदुराम बोस के साथ सभा में हिस्सा लिया. सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध नेता ज्योति प्रसाद अगरवाला थे. वह असम के प्रसिद्ध कवि थे और उनके गीत घर-घर में लोकप्रिय थे. कनकलता बरुआ उनके रैयत अधिवेशन में भाग लेने वालों को राष्ट्रद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया गया. इसके बाद असम में क्रांति की आग फैल गयी. कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में 8 अगस्त,1942 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ. असम के शीर्ष नेता मुंबई से लौटते ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिये गये. अंत में ज्योति प्रसाद आगरवाला ने नेतृत्व संभाला. स्वमंत्रता आंदोलन की सफलता के लिए उनके नेतृत्व में गुप्त सभाएं की गयीं.
शादी की बजाय देश की आजादी को कनकलता ने दी प्राथमिकता
पुलिस के अत्याचार बढ़ गये और स्वतंत्रता सेनानियों से जेट भर गयीं. कई लोग पुलिस गोली के शिकार हुए. अंग्रेजी शासन के दमन चक्र के साथ आंदोलन भी बढ़ता गया. उस समय तक कनकलता विवाह के योग्य हो चुकी थीं, लेकिन उन्होंने शादी की बजाय देश की आजादी को प्राथमिकता दी. भारत की आजादी के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थीं. एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया. उस दिन तेजपुर से 82 मील दूर गहपुर थाने पर तिरंगा फहराया जाना था. कनकलता भी मंजिल की ओर चल पड़ी.
गोलियों की परवाह किये बगैर अंतिम क्षण तक बलिदानी युवकों का किया नेतृत्व
कनकलता आत्म बलिदानी दल की सदस्या थीं. गहपुर थाने की ओर चारों दिशाओं से जुलूस उमड़ पड़ा था. दोनों हाथों में तिरंगा झंडा थामे कनकलता जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं. नेताओं को संदेह हुआ कि कनकलता और उसके साथी कहीं भाग न जाए, लेकिन वह आगे बढ़ती रहीं. जत्थे के सदस्यों में थाने पर झंडा फहराने की होड़ सी मच गयी. थाने का प्रभारी पीएम सोम जुलूस को रोकने सामने आ खड़ा हुआ. उसने गोली से उड़ा देने की चेतावनी दी कनकलता बढ़ती रही. पुलिस ने गोलियों की बौछार कर दी. पहली गोली कनकलता ने अपनी छाती पर झेली. कनकलता गोली लगने पर गिर पड़ी, पर उनके हाथों का तिरंगा झुका नहीं .
कनकलता का साहस देख युवकों का जोश और भी बढ़ गया
उनका साहस देख युवकों का जोश और भी बढ़ गया. कनकलता के हाथ से तिरंगा लेकर गोलियों के सामने सीना तान कर वीर बलिदानी युवक आगे बढ़ते गये. एक के बाद एक गिरते गये, लेकिन झंडे को न तो झुकने दियान ही गिरने दिया. आखिरकार, रामपति राजखोवा ने थाने पर झंडा फहरा दिया. शहीद मुकंद काकोती के शव का तेजपुर नगरपालिका के कर्मचारियों ने गुप्त रूप से दाह संस्कार कर दिया, पर कनकलता का शव स्वतंत्रता सेनानी कंधों पर उठा कर उनके घर तक ले गये. उनका अंतिम संस्कार बोरगबाड़ी में ही किया गया प्राणों की आहुति देकर उन्होंने आजादी की लड़ाई को और मजबूत कर किया.