Jharkhand News: कभी विदेश तक अपनी पहचान बना चुका सिल्ली का लौह उद्योग आज विलुप्त होने की कगार पर आ गया है. एक ओर आज केंद्र की सरकार लोकल फॉर वोकल के लिए नयी पीढ़ी को जागरूक कर रही है. वहीं दूसरी ओर सिल्ली का लौह उद्योग अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
सिल्ली के एक इलाके में आज भी आगर (छेद करने का औजार) तैयार किये जाते हैं. इसके अलावा दरवाजा के क्लेम्पू, दरवाजा का हसकल, आगर, बटाली और कचक जैसे बढ़ई के औजार भी तैयार किये जाते हैं. आज भी सिल्ली के उत्पादित औजार स्थानीय दुकानों के अलावा, बुंडू, पतराहातु, राहे, तमाड़, किता, जोन्हा के बाजार में भेजे जाते हैं.
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ये औजार काफी ऊंची कीमत में बिकते हैं. सिल्ली के आगर की गुणवत्ता इतनी प्रसिद्ध है कि सिल्ली के बनाये आगर की पूरे देश में मांग है. एक कारीगर ने बताया कि पहले सिल्ली के आगर को दक्षिण भारत से अफ्रीका तक भेजा जाता था. आज भी यहां से उत्पादित आगर को कारीगर पश्चिम बंगाल के व्यापारियों को बेच देते हैं.
पश्चिम बंगाल के झालदा व पुरुलिया से इसकी ब्रांडिंग करके देश के दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ, राउरकेला, दक्षिण भारत के भी शहरों समेत देश के अन्य हिस्सों में भेजा जाता है. वहां ऊंची कीमतों पर इसे बेचा जाता है.
सिल्ली में करीब 40 से पचास भठ्ठी ही बचे हैं, जहां आगर व अन्य औजारों का निर्माण किया जाता है. नीरू विश्वकर्मा ने बताया कि इस उद्योग के लिए जरूरी लोहा ही समय पर नहीं मिल पाता, अगर मिलता भी है, तो काफी ऊंची कीमत पर. खर्च काट कर महज 300 रुपये ही बचते हैं. इसलिए आने वाली पीढ़ी भी इस काम में रुचि नहीं ले रहे.
विश्वकर्मा एवं मनभुला विश्वकर्मा बताते हैं कि सिल्ली के लोहार टोला समेत अन्य को मिलाकर लोहार की भांती की संख्या करीब 30-40 ही बचे हैं. कोयला की कमी से काम में परेशानी हो रही है. 10 किलो कोयला का खर्च 100 रुपये है. इस पर लेबर और मिस्त्री में 600 रुपये का खर्च आता है. कुल मिलाकर एक भांती पर 700 रुपये का खर्च है. यहां के कारीगर को मात्र पेट भरने भर ही रुपये मिलते हैं.
कारीगरों ने बताया कि पुरानी पद्धति से आगर के निर्माण एवं इससे होने वाली कम आय के कारण नयी पीढ़ी के युवा रुचि नहीं ले रहे. अगर राज्य सरकार उद्योग को प्रोत्साहन दे, तकनीक नयी आये, इस आगर उद्योग का मशीनीकरण हो तो, आय बढ़ेगी. फिर नयी पीढ़ी भी जुड़ेगी, तभी उद्योग बचेगा. पुराने कारीगरों मरने के साथ ही सिल्ली के लौह उद्योग का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा.
रिपोर्ट- विष्णु गिरि