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Bihar : टीएमबीयू राज्य ही नहीं अंग क्षेत्र की भी शान, मरती व्यवस्था की मार झेल रहे छात्रों को बचा लें

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय सभी सरकारी कॉलेजों के कर्मी बेमियादी हड़ताल पर चले गये हैं. इस वजह से विद्यार्थियों के समक्ष नया संकट आ गया है. विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी ठप हो गये हैं

जीवेश रंजन सिंह

व्यवस्था की मार झेल रहे तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के लाखों विद्यार्थियों के समक्ष सोमवार 18 जुलाई से नया संकट आ गया है. विवि के सभी सरकारी कॉलेजों के कर्मी बेमियादी हड़ताल पर चले गये हैं. स्थायी कुलपति की मांग को लेकर छात्र संगठन ने विश्वविद्यालय बंद करा दिया है. शनिवार 23 जुलाई से छात्राओं का संगठन भी इस आंदोलन में कूद पड़ा है. इसके साथ ही पढ़ाई के साथ-साथ परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी ठप हो गये हैं. इससे लेट सत्र व अनियमित कक्षा का दंश झेल रहे विद्यार्थियों पर दोहरी मार पड़ी है.

उदाहरण स्वरूप तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में पार्ट दो की परीक्षा 18 जुलाई से शुरू होने वाली थी, स्थगित कर दी गयी है. यह सत्र (2019-22) पहले से ही एक साल लेट है. इस परीक्षा के टलने से 40 हजार विद्यार्थी सीधे प्रभावित हो गये हैं. इतना ही नहीं बीएड फाइनल इयर की परीक्षा दे रहे विद्यार्थियों के अंतिम पेपर की परीक्षा भी इसी वजह से टाल दी गयी.

दरअसल, महीनों से कुलपति विहीन तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की दशा खराब हो गयी है. कभी विकास की दौड़ में अग्रणी इस विवि की स्थिति पिछलग्गू विवि से भी बदतर हो गयी है. परेशानी यह कि अधिकार नहीं होने के कारण वर्तमान में कार्यरत पदाधिकारी भी जलालत की स्थिति में हैं. नियमों से बंधे होने के कारण वो सबकुछ कर नहीं सकते, दूसरी ओर काम नहीं होने के कारण विद्यार्थियों का आक्रोश चरम पर है. रोज किच-किच और कहा-सुनी के बीच विश्वविद्यालय की स्थिति खराब हो गयी है.

कर्मचारियों की परेशानी जायज, पर क्या कुर्सी तोड़ना सही

दरअसल, सभी कॉलेजों के कर्मियों के लिए एक निर्देश आया है कि वो 25 जुलाई तक अपने वेतन का ऑनलाइन सत्यापन करा लें, तभी उनको जुलाई से वेतन मिलेगा. यहां तक तो ठीक था, पर इस ऑनलाइन सत्यापन में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न हो गयी है कि यह तभी होगा जब सभी कर्मचारियों की सेवा संपुष्टि (इस बात की विश्वविद्यालय की ओर से पुष्टि कि वो उस संस्थान के कर्मी हैं) हो.

व्यावहारिक तौर पर देखें, तो यह किसी भी नौकरी की सामान्य प्रक्रिया है, पर दुर्भाग्य टीएमबीयू ने विविकर्मियों की सेवा संपुष्टि तो कर दी, पर विवि के तहत आनेवाले कॉलेजों के कर्मियों की नहीं की गयी. तत्कालीन व्यवस्था ऐसी थी कि स्थानीय स्तर पर फाइल आगे बढ़ती थी और वेतन मिलता था, पर इस नये नियम से विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली की पोल खुल गयी है. कर्मचारी भी परेशान हैं, क्योंकि दरमाहा नहीं मिला तो दाल-रोटी कैसे चलेगी. इतना तो ठीक, पर क्या विवि की कुर्सियों को तोड़ना सही निर्णय है सोचना होगा.

छात्र संगठनों से

जब कोई काम नहीं हो और कोई सुने भी नहीं, तो लोकतंत्र में एक रास्ता तालेबंदी, नारेबाजी भी है, पर इस पर एक बार गंभीरता से विचार करना होगा कि इससे क्या अपने बीच का ही साथी परेशान तो नहीं हो रहा है. रोज-रोज कई ऐसे काम होते हैं जिनका होना छात्रों के हित में जरूरी है, पर वो काम भी पिछले एक हप्ते से बंद है. इसे सोचना होगा.

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शहर क्यों नहीं सोचे

टीएमबीयू राज्य ही नहीं अंग क्षेत्र की भी शान है, क्या इस पर शहर को नहीं सोचना चाहिए. क्यों नहीं इसकी तबाही को लेकर सकारात्मक कोशिश हो. और अंत में हम गांधी के देश के लोग हैं. यह शाश्वत सत्य है कि सब कुछ हंगामे के बल संभव नहीं. क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं निकल सकता कि सबकी मांग भी पूरी हो जाये और विवि के लाखों विद्यार्थियों का काम भी न रुके.

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