संजीव, भागलपुर. जिले के सबौर प्रखंड का बगडर े बगीचा गांव हर साल बाढ़ के दिनों में चर्चा में आ जाता है, उस दौरान तरहतरह की घोषणाएं होती हैं, पर पानी उतरते हीं सब कुछ शांत हो जाता है. ग्रामीणों की स्थिति यह है कि वो अपने बिखरे घर को संभालने और पुन: कुछ माह बाद बाढ़ की चिंता में ही इतने परेशान होते हैं कि किसी से अपने दर्द को साझा भी नहीं कर पाते. दरअसल, सबौर प्रखंड का यह गांव गंगा से मात्र 200 मीटर की दूरी पर बसा है.
इस वजह से हर साल बाढ़ में यह इलाका घिर जाता है. ऐसे में घर के मुखिया परिवार के बाकी सदस्यों को तो कहीं सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देते हैं, पर खुद घर व अन्य सामान की सुरक्षा के लिए वहीं रुक जाते हैं. अपने बचाव के लिए सब पेड़ व ऊंचे मचान की शरण ले लेते हैं. इस दौरान 24 घंटे में एक बार भोजन कर पाते हैं, कभी-कभी तो वो भी नहीं. ऊपर से चौबीस घंटे जहरीले जीवों से कभी भी लड़ाई ठन जाने का खतरा अलग.
इस वर्ष भी बाढ़ की आहट शुरू हो गयी है. ऐसे में क्या हाल है इस गांव का यह जानने जब प्रभात खबर की टीम वहां गयी, तो हालात जस के तस दिखे. लोग अभी से पेड़ों पर रहने की तैयारी में जुट गये हैं. सबके अंदर व्यवस्था के प्रति आक्रोश दिखा. सब नाराज दिखे. लोकल अफसरों से उन्हें उम्मीद नहीं बची. नाराजगी जाहिर करते हुए यहां के ग्रामीण कहते हैं कि बाढ़ के दिनों में जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, यहां तक कि कभी-कभी सरकारी अधिकारी भी नाव से पहुंचते हैं. उन लोगों को कुछ-कुछ देकर फोटो खिंचवाते हैं और चले जाते हैं.
बगडेर बगीचा निवासी उमेश मंडल बताते हैं कि 10 साल पहले यहां 505 घर बसे थे. सुविधा के अभाव में लोग पलायन करते गये. अब सिर्फ 70 घर, वैसे बचे हैं, जिनके पास दूसरा कोई उपाय नहीं है. मजदूरी से इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि कहीं जमीन खरीद सकें. उनका दुख है कि सीओ कहते हैं कि यह सैरात की जमीन है, इस पर पर्चा जारी नहीं कर सकते, पर दूसरी जगह का पर्चा देते भी नहीं हैं.
पूर्व उपमुखिया पलटू कुमार मंडल बताते हैं कि बगडेर बगीचा के कई लोगों का नाम प्रधानमंत्री आवास योजना की प्रतीक्षा सूची में है. लेकिन किसी के पास अपनी जमीन नहीं होने के कारण उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. यह गांव कहने के लिए बगीचा है, पर अब तो बगीचा के नाम पर कुछ ही पेड़ जहां-तहां बचे हैं. फिर भी सैरात की जमीन का हवाला देकर अधिकारी पर्चा नहीं देते.
पुलिस भगत, अर्जुन मंडल, पप्पू मंडल, महेश मंडल, चुल्हाय मंडल आदि बताते हैं कि जब पेड़ पर रहते हैं तो लगता है कि यह जीवन ही बेकार है. पर मजबूरी यह कि चोरों से अपनी संपत्ति बचा लें. अगर नहीं रुके तो गंगा मइया से जो कुछ बचा है वो चोर ले जायेंगे और फिर कैसे जीवन चलेगा. भोजन के संबंध में बताया कि परिवार के अन्य लोग पास के शिविर में रहते हैं. वही लोग चदरे की नाव से एक बार कुछ लाकर दे देते हैं उसी से जीवन चलता है.
बगडेर बगीचा के लोग इस बात से खुश हैं कि उनके गांव में पांच-सात युवा मैट्रिक पास हैं. चाहते हैं कि सभी बच्चे पढ़ें, पर गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर रजंदीपुर में सरकारी स्कूल है. इस कारण हर दिन हर बच्चा स्कूल नहीं जा पाता है.