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बिहार की मिथिला पेंटिंग है बेहद खास, जानिए देवता से लेकर तांत्रिक तक का इसमें क्यों होता है जिक्र?

मिथिला पेंटिंग पारंपरिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के मिथिला क्षेत्र में विभिन्न समुदायों की महिलाओं द्वारा बनाई गई थी.मधुबनी कला मिथिला अर्थात् बिहार में प्रचलित एक लोक चित्र कला है.यह पेंटिंग विभिन्न प्रकार के औजारों से की जाती है.

मिथिला पेंटिंग पारंपरिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के मिथिला क्षेत्र में विभिन्न समुदायों की महिलाओं द्वारा बनाई गई थी.मधुबनी कला मिथिला अर्थात् बिहार में प्रचलित एक लोक चित्र कला है. इसमें महिलाओं की अधिक भूमिका होती है .इसलिए इसे महिलाओं की चित्र शैली भी कहते हैं.इसकी उत्पत्ति बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले से हुई है.जो भारतीय उपमहाद्वीप के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है. मिथिला पेंटिंग भारतीय चित्रकला की एक शैली है .यह पेंटिंग विभिन्न प्रकार के औजारों से की जाती है.जिसमें उंगलियों, टहनियों, ब्रश, निब-पेन और माचिस की तीली और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है.

भित्ति चित्र मुख्यतः दीवारों पर ही बनाए जाते हैं

इसके अंतर्गत दो तरह के चित्र बनाए जाते हैं. प्रथम भित्ति चित्र मुख्यतः दीवारों पर ही बनाए जाते थे और यह इसकी प्रारंभिक अवस्था थी. लेकिन वर्तमान में मधुबनी चित्रकला इतनी व्यापक हो गई है .क्योंकि यह भित्ति शैली से कागज, कपड़े तथा कैनवास पर उकेरी जाने लगी है.मधुबनी कला की पाँच विशिष्ट शैलियाँ हैं: भरनी, तांत्रिक, गोडना और कोहबर.मधुबनी चित्रकला के दो रूप प्रचलित है एक भित्ति चित्र और दूसरा अरिपन चित्र.मधुबनी चित्रकला की प्रसिद्ध महिला चित्रकार हैं सीता देवी,गोदावरी दत्त,भारती दयाल,बुला देवी आदि.

मधुबनी पेंटिंग प्राचीन महाकाव्यों प्रकृति और देवताओं के साथ उनके जुड़ाव को दर्शाती हैं

मधुबनी पेंटिंग प्राचीन महाकाव्यों के लोगों और प्रकृति और दृश्यों और देवताओं के साथ उनके जुड़ाव को दर्शाती हैं.मधुबनी पेंटिंग में शाही दरबार के दृश्य और शादि जैसे सामाजिक आयोजनों के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा और तुलसी जैसे धार्मिक पौधों जैसी को भी व्यापक रूप से चित्रित किया जाता है. मधुबनी पेंटिंग में कोई जगह खाली नहीं छोड़ी जाती है.खाली जगहों को फूलों,जानवरों,पक्षियों और यहां तक ​​कि ज्यामितीय डिजाइनों के चित्रों से भरा दिया जाता है.

महिलाएं घर बैठे कमाई कर सकती हैं

मिथिला पेंटिंग व्यवसायिक रूप ले चुका है. इसमें पारंगत कलाकार आसानी से 10-12 हजार रूपये की कमाई कर लेते हैं. मिथिला पेंटिंग युक्त परिधानों की डिमांड लोकल मार्केट से लेकर विदेशों तक है. इसके जरिए महिलाएं घर बैठे कमाई कर सकती हैं. यह बातें वार्ड पार्षद पंडित वेद व्यास ने डॉ प्रभात दास फाउण्डेशन के प्रशिक्षण शिविर में कही. शहर के वार्ड चार स्थित सरस्वती नगर में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने कहा कि मिथिला पेंटिंग स्वरोजगार का रूप अख्तियार कर चुका है. महिलाएं इसे अपनी आजीविका का साधन बना सकती है.

मिथिला पेंटिंग से युक्त परिधानों की डिमांड लोकल मार्केट से विदेशों तक

प्रशिक्षिका रश्मि कुमारी ने बताया कि शिविर में मिथिला पेंटिंग के विविध स्वरूपों का ज्ञान लड़कियों को दिया गया. 39 लड़कियों को मिथिला पेंटिंग बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है. बच्चियों को इसकी मार्केटिंग की जानकारी भी दी गयी है. संचालन अनिल सिंह ने किया. कार्यक्रम में राधिका कुमारी, रौशनी, लीली कुमारी, राखी, सोनी, कोमल, सुधा, मुस्कान, पायल, मनीषा, पिंकी, संध्या, अंजली, गुनगुन, पुष्पा कुमारी आदि मौजूद थी. मिथिला पेंटिंग से युक्त परिधानों की डिमांड लोकल मार्केट से विदेशों तक है.

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