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अफीम की खेती से तौबा कर रहे गया के किसान, इस फसल की खेती से लाखों का हो रहा मुनाफा

गया जिले में लेमन ग्रास की खेती किसानों के लिए मुफीद साबित हो रही है. इसकी खेती से किसान एक एकड़ में प्रति वर्ष एक लाख तक का मुनाफा कमा रहे हैं. यही वजह है कि लेमन ग्रास की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है .

बिहार के नक्सल प्रभावित जिला गया के कई प्रखंडों में अफीम की खेती का सिलसिला लगभग दो दशकों से जारी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इसका मुख्य हॉट स्पॉट बाराचट्टी का इलाका है. इन सब से इतर प्रशासन इन दिनों नशे की खेती के तोड़ के रूप में लेमन ग्रास की खेती के प्रति बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर लोगों को जागरूक कर रही है. जिसके फलस्वरूप लोगों ने मौत की खेती छोड़ जिंदगी को चुना है. लेमन ग्रास की खेती से होने वाले मुनाफे को देख किसान भी फूले नहीं समा रहे हैं.

इन पांच प्रखंडों के किसान उठा रहा लाभ

जिला प्रशासन नशे की खेती के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक कर फिलहाल पांच प्रखंडों में लेमन ग्रास की खेती कराने को लेकर रणनीति तैयार की है. विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत यह अभियान शुरू किया गया है. बता दें की जिला प्रशासन की देखरेख में लगभग एक सौ एकड़ का कलस्टर बना गया है. जो नक्सल प्रभावित पांच प्रखंडों में 20-20 एकड़ के रूप में बांटी गई है. फिलहाल बांटे गए प्रखंडों में एक ही स्थान पर 20-20 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती कराई जा रही है.

इन प्रखंडों में हो रही खेती

  1. बाराचट्टी

  2. इमामगंज

  3. बांकेबाजार

  4. कोंच

  5. गुरुआ

लाल सलाम इलाके में लेमन ग्रास की खेती बड़ी रणनीति

जिले के पांच प्रखंड लाल सलाम प्रभावित क्षेत्र रहा है. इन इलाके में पूर्व में बड़े पैमाने पर अफीम यानी मौत की खेती की जाती थी. ऐसे में इन इलाकों में लेमन ग्रास की खेती प्रशासन की एक बड़ी रणनीति मानी जा रही है. हालांकि अभी इसकी शुरूआत महज बानगी भर है. यह योजना कितना रंग लाएगी यह आने वाले समय में पता चल जाएगा. बता दें कि बाराचट्टी इलाके में सबसे ज्यादा अफीम और गांजे की फसल उगाई जाती थी. लेकिन प्रशासन की पहल पर अब इन इलाके में लेमन ग्रास की खेती शुरू होने के बाद क्षेत्र के किसान लेमन ग्रास की खेती से होने वाले फायदे को जानकर काफी खुश है.

मौत की फसल से तौबा कर रहे किसान

प्रशासनिक आंकड़ों की मानें तो लगभग 600 एकड़ भू-भाग में जिले भर में नक्सली अफीम की फसल उगाते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जिले में अफीम की फसल 1000 एकड़ से अधिक भूमि में की जाती रही है. इसमें सरकारी जमीन और किसानों की जमीन भी शामिल है. अफीम गांजे की खेती का सबसे बड़ा क्षेत्र बाराचट्टी प्रखंड का इलाका ही है. 1990 के दशक से ही अफीम गांजा की खेती का सिलसिला शुरू हुआ था, जिसने धीरे-धीरे वृहत रूप ले लिया. माना जाता है कि जंगल वाले क्षेत्रों में इस खेती से नक्सली अपना आर्थिक स्रोत मजबूत करते हैं.

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