रोहतास जिले के दक्षिणी भाग के किसान मूंग की खेती कर उससे होने वाले आमदनी से काफी खुश होते रहे हैं. क्योंकि मूंग कम अवधि में तैयार होने वाली दलहनी फसल है दलहन की खेती के मामले में जिले के 90 फीसदी दलहन की खेती अनुमंडल के तीन प्रखंड नौहट्टा, रोहतास और तिलौथू प्रखंड में होती है. आंकड़ों के अनुसार रोहतास जिले में कुल 7737 हेक्टेयर भूमि में दलहन की खेती की जाती है, जिसमें केवल नौहट्टा, रोहतास, और तिलौथू प्रखंड में 7510.2 हेक्टेयर में दलहन की खेती होती है.
बाकी प्रखंडो में मात्र 226.8 हेक्टेयर भूमि में ही दलहन की खेती की जाती है. व्यापारी इन क्षेत्रों से मूंग कोलकत्ता, हजारीबाग,धनबाद समेत कई अन्य शहरों में बेचने के लिए यहां के किसानों से खरीद कर ले जाते है.मूंग की खेती खरीफ सीजन में किसानों को मालामाल कर सकती है. जून-जुलाई का महीना मूंग की रोपाई के लिए आदर्श माना जाता है. सितंबर-अक्टूबर तक फसल की कटाई का भी समय हो जाता है. ऐसे में उन्नत बीजों का इस्तेमाल कर मूंग की खेती करने पर किसानों को लाखों रुपये की कमाई हो सकती है.
वैसे देखा जाए तो इसबार सरकारी स्तर पर मूंग के बीज सही नहीं मिलने के कारण किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा . बीज में अच्छे से अंकुरण नहीं आने से ज्यादातर किसानों को दोबारा बोआई करनी पड़ी है. मूंग नगदी फसल मानी जाती है. इसबार प्रखंड कार्यालय से वितरण किए गए मूंग के बीज उपजाऊ नहीं होने के कारण पैदावार अच्छी नहीं हुई . यहां तक कि बोआई करने बाद ज्यादातर बीज उगे ही नहीं और किसानों को दुकानों से बीज खरीद कर दोबारा बोआई करना पड़ा और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा .आम तौर पर मूंग की फसल 65 से 70 दिनों में पक जाती है और तीन महीने में मूंग की फसल की तोड़ाई हो जाती है.
किसानों का कहना है कि एक बीघे में अच्छी फसल उगाने पर यदि मौसम साथ दे दे तो एक बीघे पर दो क्विंटल तक मूंग की उपज हो जाती है. वर्तमान में 7000 रुपए क्विंटल मूंग की बिक्री हो रही है.इसमें 24-26 % प्रोटीन, 55-60 % कार्बोहाइड्रेट और फैट यानी वसा 1.3 प्रतिशत होता है. मूंग की फसल से मिट्टी की उर्वराशक्ति भी बढ़ती है.तुअर या अरहर की दो कतारों के बीच मूंग की दो कतारों की बुआई की जा सकती है. मूंग की अन्तरवर्तीय खेती गन्ने के साथ भी की जा सकती है.नौहट्टा, रोहतास, और तिलौथू प्रखंड में मूंग के साथ साथ धान और गेहूं की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है, लेकिन सिंचाई की व्यवस्था विद्युत और प्रकृति पर आधारित होने के कारण किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.