नई दिल्ली : भारत में 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए संसद (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्यों की विधानसभाओं में मतदान जारी है. देश के करीब 4,800 निर्वाचित सांसद और विधायक मतदान की प्रक्रिया में शामिल होकर अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं. इस बीच, महाराष्ट्र, गुजरात और असम जैसे राज्यों से तथाकथित तौर पर क्रॉस वोटिंग के आरोप भी लगाए जा रहे हैं. इस क्रॉस वोटिंग के जरिए किसके पक्ष में वोट डाले गए हैं, यह कहना अभी मुश्किल है. अभी तक क्रॉस वोटिंग के जो मामले सामने आए हैं, उसमें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायकों पर क्रॉस वोटिंग के आरोप लग रहे हैं. इस बीच, सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए होने वाले मतदान से पहले कांग्रेस-एनसीपी ने अपने-अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी क्यों नहीं किया? क्या राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों की ओर से व्हिप जारी नहीं किया जाता? आइए, जानते हैं कि किन परिस्थितियों में राजनीतिक पार्टियों की ओर व्हिप जारी किया जाता है…
एक रिपोर्ट के अनुसार, संसद या विधानसभा में किसी विधेयक या प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने निर्वाचित सदस्यों के लिए व्हिप जारी करती हैं. व्हिप एक प्रकार का किसी पार्टी के आलाकमान का निर्देश होता है, जो विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा अपने दल के सांसदों और विधायकों के लिए प्रयोग किया जाता है. व्हिप का उपयोग सदन में कोरम बनाए रखने के लिए और पार्टी के निर्देशों के अनुसार कार्य करने के लिए कहा जाता है. व्हिप का उल्लंघन दल-बदल विरोधी अधिनियम के अंतर्गत माना जा सकता है और इसके उल्लंघन के बाद संसद या विधानसभा के सदस्यों की सदस्यता रद्द कर दी जा सकती है.
वहीं, आपको यह भी बता दें कि भारत में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए होने वाले मतदान को लेकर कोई भी राजनीतिक व्हिप जारी नहीं कर सकतीं. इसका कारण यह है कि व्हिप संसद या विधानसभा की कार्रवाही के लिए जारी किया जाता है. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का चुनाव सदन से बाहर की प्रक्रिया है. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्येक वोटर अपनी इच्छा से जिसे चाहे वोट दे सकता है और वोट नहीं भी दे सकता है. यही स्थिति राजनीतिक दलों पर भी लागू होती है. अगर कोई राजनीतिक दल चाहे, तो वह चुनाव में भाग लेने से इनकार कर सकता है. इसी प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में किसी वोटर का वोट करना या न करना पूरी तरह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है और ये दल-बदल विरोधी कानून के तहत नहीं आता है.
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वहीं, अगर कोई राजनीतिक पार्टी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए व्हिप जारी करता है, तो उसे वोटिंग के निर्बाध अधिकार में हस्तक्षेप माना जाएगा. ऐसा करने पर किसी भी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 171(सी) के तहत सजा हो सकती है. कुल मिलाकर राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी कहे कुछ भी सांसद या विधायक ‘अंतरात्मा की आवाज’ पर वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं.