Sawan First Somwar 2022: शिव की नगरी काशी में पिछले कई दशकों से एक परपंरा निभाई जा रही है. जिसके चलते काशी के सभी प्रमुख शिवालयों में सैकड़ों की संख्या में यादव बंधू देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक करते है. वहीं आज सावन के पहले सोमवार को भक्ति और श्रद्धा में डूबे हजारों यादव बंधुओं ने काशी विश्वनाथ के दरबार सहित कई शिव मंदिरों में हाजिरी लगाई है. पांच दशकों से वो इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे है.
परम्पराओं और संस्कृति की राजधानी काशी में सावन के पहले सोमवार को अपने आराध्य के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास का सैलाब टूट पड़ा है. हाथों में कलश लेकर हर कोई निकल पड़ा है अपने शिव को भक्ति के ज़ल से अभिषेक करने. हर तरफ़ केवल एक ही गूंज सुनाई पड़ रही है हर- हर महादेव. इसमे सबसे आगे यादव बन्धु है.
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यादव बंधुओं द्वारा जलाभिषेक की परंपरा 1932 में अकाल के बाद शुरू हुई थी. देश में अकाल के कारण पशु-पक्षी भी जल के बिना मर रहे थे. उस समय एक साधू के सुझाव पर सैकड़ों की संख्या में यादव बंधुओं ने बाबा विश्वनाथ को प्रसन्न करने का बीड़ा उठाया. काशी की सड़के उस समय यादव बंधुओं से पट गयी थी. सब कोई कलश में गंगा जल भरकर केदार मंदिर में जल चढ़ाने के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंचे थे.
यादव बंधू पंचकोश यात्रा कर महत्वपूर्ण देवालयों में सोमवार को बाबा का जलाभिषेक करते है. आस्था का जन सैलाब वर्षों से बाबा का पूजन सावन के पहले सोमवार को यादव बंधुओं के रूप में करता है.मान्यता है की सच्चे मन और श्रद्धा के साथ भोले शिव को यदि केवल ज़ल ही अर्पण कर दिया जाए तो वे प्रसन्न हो जाते है और यदि ये ज़ल माँ गंगा का हो तो इस जलाभिषेक का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है. सावन के सोमवार के दिन भले ही काशी नगरी केसरिया रंग में रंग जाती हो लेकिन यादव बंधुयों की इस बार की अराधना माँ गंगा के अविरलता और निर्मलता के लिये भी थी, ताकि भोले भंडारी की कृपा से माँ की अविरलता बरकरार रहे.