रघुवर दास
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष.
Prabhat Khabar, Dhanbad Foundation Day: झारखंड में पर्यटन की अपार संभावना है. संताल परगना में द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम, रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ, गुमला के आंजन में हनुमान जी की जन्मस्थली, दुमका के शिकारीपाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी, बाबा बासुकीनाथ जैसे विश्वप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं, तो बोकारो में संथालों का सबसे पवित्र स्थल लुगुबुरु है. जैन समाज के प्रमुख तीर्थ स्थल पारसनाथ (गिरिडीह) हो या इटखोरी (चतरा) में हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के प्रमुख मंदिर हो. माता छिन्नमस्तिका, मां देवड़ी का वास झारखंड में ही है. इसी तरह कई राष्ट्रीय अभयारण्य, दशम, हुंडरू, जोन्हा जैसे जलप्रपात, डैम राज्य की शोभा में चार चांद लगा रहे हैं. झारखंड की संस्कृति में ही नृत्य, ताल और लय का मिश्रण है. इन्हीं को ध्यान में रख कर हमने पर्यटन को बढ़ावा देने के क्षेत्र में काफी काम किया था.
झारखंड में अपार संसाधन, फिर भी राज्य पिछड़ रहा
प्रकृति की गोद में बसे और खनिज संपदा से भरपूर झारखंड की गिनती देश के पिछड़े राज्यों में होती है. कोयला, लोहा, बॉक्साइड, ग्रेफाइट, अभ्रक समेत कई अन्य खनिजों के मामले में पूरी दुनिया के नक्शे पर झारखंड आता है. प्रकृति ने यहां वैभव व सौंदर्य का खजाना भर दिया है. कई झरने, जलप्रपात, अभयारण्य हैं. भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली (उलीहातू, खूंटी) हमारे झारखंड में है. द्वादश ज्योतिर्लिंग (देवघर), शक्ति पीठ (छिन्नमस्तिका मंदिर), हनुमान जी की जन्मस्थली (गुमला का आंजन), बौद्ध व जैन धर्मावलंबियों के प्रमुख तीर्थस्थल (इटखोरी व पारसनाथ) हमारे यहां हैं. यहां के वनोत्पाद की मांग पूरी दुनिया में है. मेहनतकश लोगों की फौज होने के बावजूद हमारा झारखंड पिछड़ा है. इसके पीछे अनेक कारण गिनाये जा सकते हैं, पर ठोस नीति और साफ नीयत से काम करने पर हमारा झारखंड दुनिया के किसी भी दूसरे विकसित राज्य की तुलना में खड़ा होने की क्षमता रखता है.
राज्य की सबसे बड़ी समस्या पलायन
सबसे बड़ी समस्या पलायन के कारण लोगों के पास रोजगार के सीमित अवसर होना है. यदि हम अपने संसाधनों का सदुपयोग करें तो न केवल यहां हम रोजगार के अनगिनत अवसर पैदा कर सकते हैं, बल्कि देश के विकास में भी व्यापक योगदान दे सकते हैं. वर्ष 2014 से 2019 के बीच राज्य में हमारी (भाजपा) सरकार थी. आज झारखंड का विकास कैसे संभव है, इसे मैं अपने कार्यकाल के अनुभव के आधार पर उन्हें साझा करता हूं.
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बिजली चमकाएगी राज्य को
कोयला के बड़े उत्पादक राज्यों में शुमार होने के बावजूद झारखंड दूसरे राज्यों से बिजली लेता रहा है. 2014 से 2019 के बीच अपने कार्यकाल में हमने तय किया कि झारखंड अपने कोयला से बिजली बनायेगा और देश को रोशन करेगा. वैल्यू एडिशन होते ही चीज की कीमत काफी ज्यादा हो जाती है. इसी को देखते हुए हमने पीटीपीएस और एनटीपीसी का संयुक्त उपक्रम बनाकर 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन का आधार तैयार किया. इसमें से आधी बिजली की ही राज्य को दरकार है. आधी बिजली दूसरे राज्यों को बेचकर बड़ी आमदनी की जा सकती है. साथ ही बड़ी संख्या (लगभग 10 हजार) में स्थानीय युवक-युवतियों को रोजगार भी मिलेगा. इसी तरह अडानी पावर के साथ समझौता किया. इससे भी राज्य को न केवल बिजली मिलेगी, बल्कि राजस्व मिलेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे. आज जरूरत है इन्हें तेज गति के पूरा करने की.
टेक्सटाइल उद्योग पर फोकस करना होगा
टेक्सटाइल और पर्यटन दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें रोजगार की व्यापक संभावना है. अभी बांग्लादेश दुनिया में टेक्सटाइल हब बना हुआ है. हमने झारखंड को टेक्सटाइल हब बनाने की दिशा में नीति बनायी और निवेशकों को न्यौता दिया. बड़ी संख्या में निवेशकों ने यहां अपने उद्योग लगाये और हजारों बच्चों को नौकरी मिली. ये वो बच्चे थे, जो दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे थे. वहां उनका न केवल आर्थिक, बल्कि शारीरिक शोषण भी हो रहा था. अभी तो शुरुआत ही हुई थी. हमारा लक्ष्य था कि पूरे राज्य में टेक्सटाइल कंपनियां अपनी फैक्टरी लगाएं. इससे रोजगार के असीमित अवसर पैदा होते और राज्य से पलायन रुकता. राजस्व बढ़ने से झारखंड अपनी जरूरतों को तेजी से पूरा कर पाता. राज्य सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
भरपूर संभावनाओं का खजाना पर्यटन
झारखंड में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, प्राकृतिक पर्यटन की अपार संभावना है. संथाल परगना में द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम, रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिका शक्ति पीठ, गुमला के आंजन में हनुमान जी की जन्मस्थली, दुमका के शिकारापाड़ा में मंदिरों का गांव मलूटी, बाबा बासुकीनाथ जैसे विश्वप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं तो बोकारो में संथालों का सबसे पवित्र स्थल लुगुबुरू है. जैन समाज के प्रमुख तीर्थ स्थल पारसनाथ (गिरिडीह) हो या इटखोरी (चतरा) में हिंदू, जैन व बौद्ध धर्म के प्रमुख मंदिर हो. माता छिन्नमस्तिका, मां देवड़ी का वास झारखंड में ही है. इसी तरह कई राष्ट्रीय अभयारण्य, दशम, हुंडरू, जोन्हा जैसे जलप्रपात, डैम राज्य की शोभा में चार चांद लगा रहे हैं. यहां की संस्कृति में ही नृत्य, ताल और लय का मिश्रण है. इन्हीं को ध्यान में रख कर हमने पर्यटन को बढ़ावा देने के क्षेत्र में काफी काम किया था. पर्यटक स्थलों को विकसित कर स्थानीय लोगों की समिति बनाकर वहां की व्यवस्था उन्हें सौंपी. पतरातू डैम इसकी मिसाल है. इसी तरह बाबा बैद्यनाथ मंदिर में व्यवस्था विकसित कर देवघर में लगनेवाले श्रवणी मेला को विश्वस्तरीय बनाया. नतीजतन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने लगे. बोकारो के लुगुबुरु पर्वत पर सुविधाएं विकसित कर झारखंड समेत अऩ्य राज्य के संथालों को भी यहां आने के लिए आकर्षित किया. नतीजे चौंकानेवाले आये. वर्ष 2000 में जहां राज्य में केवल विदेशी पर्यटक 3111 और 2010 में 17,043 विदेशी पर्यटक आये. 2017 आते-आते यह संख्या 2.70 लाख हो गयी तथा 2019 में 2.76 लाख. पर्यटकों ने झारखंड का रुख किया. इसी तरह घरेलू पर्यटकों के मामले में झारखंड राष्ट्रीय रैंकिंग में 2017 के 13 पायदान से 2019 में सीधे नौवें पायदान कर पहुंच गया. वर्ष 2011 में 1.46 करोड़ घरेलू पर्यटकों की संख्या 2018 तक 3.54 करोड़ पहुंच गयी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड को कितना राजस्व मिला और लोगों को रोजगार. सरकार इसे आगे बढ़ाये तो और अच्छे परिणाम हासिल हो सकते हैं.
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हेल्थ सेक्टर बढ़ा सकता है राजस्व
इसके अलावा हेल्थ सेक्टर में झारखंड को पूर्व का हब बनाया जा सकता है. हमने एम्स, कैंसर अस्पताल, छह मेडिकल कॉलेज खोला. इनके शुरू हो जाने के बाद झारखंड के लोगों को महंगे इलाज के लिए इधर-उधर नहीं भटना होगा. उनके पैसे झारखंड के बाहर नहीं जायेंगे. साथ ही आपपास के राज्यों से भी बड़ी संख्या में मरीज आयेंगे तो स्थानीय लोग लाभान्वित होंगे.
सवा दो लाख सखी मंडल, 40 लाख बहनें जुड़ीं
इनके अलावा सखी मंडलों के सशक्तीकरण से बड़ी संख्या में महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा सकेगा. हमारे समय लगभग सवा दो लाख सखी मंडल बनाये गये थे. इनसे करीब 40 लाख बहनें जुड़ीं थीं. लक्ष्य था कि इन्हें प्रशिक्षित कर स्कूलों में लगने वाली पोशाक, रेडी टू इट बनवाने आदि का कार्य कराया जाए. अभी इनके मद में झारखंड सरकार लगभग 800 करोड़ रु खर्च कर रही है. अपनी सखी बहनों के जरिये ये कार्य कराने पर यह सारी राशि झारखंड की अर्थव्यवस्था में ही रहेगी. ग्रामीण क्षेत्रों का काफी लाभ मिलेगा. रेडी टू इट का काम हमारी सरकार ने सखी मंडल को सौंपना शुरू भी कर दिया था.
संथाल परगना पर फोकस करने की जरूरत
झारखंड में संथाल परगना की गिनती देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में होती रही है। यहां विकास की किरण पहुंचाना एक चुनौती है. इस क्षेत्र पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है. मोदी सरकार ने यहां गंगा नदी पर साहिबगंज में पुल और मल्टीमोडल टर्मिनल बनवाया. एम्स और एयरपोर्ट भी इस क्षेत्र में आये. ये बुनियादी जरूरतों के हिसाब से तो ठीक हैं, पर अभी भी इस क्षेत्र में काम करने के लिए काफी कुछ है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह अभी भी पिछड़ा हुआ है. यहां नये विश्वविद्यालय और कौशल विकास के केंद्र खोलने की जरूरत है. यहां की महिलाएं काफी मेहनती हैं. उन्हें सखी मंडल के जरिये जोड़ कर स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकते हैं.
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सरकार आए-जाए, पर नीतियां रहे जारी
ये बातें अपनी सरकार की तारीफ करनी नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य अनुभव के आधार पर झारखंड के विकास का खाका पेश करना है. पांच सालों के दौरान मोमेंटम झारखंड समेत अन्य उपायों से हमने राज्य की छवि को देश-दुनिया में सकारात्मक बनाया. कानून-व्यवस्था मजबूत हुई, नक्सलवाद पर काबू पाया गया. आकर्षक नीतियां बनायीं और उन्हें लागू किया. नतीजे भी दिखने लगे थे. आज जरूरत है कि वर्तमान सरकार उन नीतियों को समाप्त न करें. इससे निवेशकों के मन में हमेशा के लिए झारखंड प्रति आशंका घर करने लगेगी. वर्तमान सरकार अपने अनुसार भी नीतियां बनाएं, पर निवेशकों के लिए पहले से लागू आकर्षिक नीतियां को जारी रखें. निवेशकों में विश्वास पैदा करें. महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे विकसित राज्य इसके उदाहरण हैं. यहां सरकारें बदलने पर नीतियां नहीं बदली गयीं. इससे निवेशकों का विश्वास जमा तो विकास को गति मिली.
सत्ताधारी को ट्रस्टी के रूप में काम करना चाहिए
राज्य में सत्ताधारी को ट्रस्टी के रूप में अमानतदार की तरह काम करना चाहिए. यहां हम वर्तमान के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करें और उसके साथ ही भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित भी की रखें. यदि आपकी नीयत सही है तो झारखंड में विकास की अपार संभावना है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद आज झारखंड भ्रष्टाचार और कुशासन के चलते ही विकास से वंचित है.