सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में हुए हमले की सुनवाई करते हुए 4 आरोपियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और आम जनता की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वालों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.
जस्टिस यूयू ललित, हेमंत गुप्ता और एस रवींद्र भट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि भले ही साजिश के तहत वास्तव में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई, फिर भी मामला धारा 121ए से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि दोषियों के पास से डेटोनेटर, जिलेटिन की छड़ें, हथगोले बरामद किए गए हैं, जो उनके खिलाफ मामले को साबित करने के लिए पर्याप्त है. दरअसर मामले के पांच दोषियों में से चार ने 2016 में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 121 ए (सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने) के तहत साजिश के लिए उनकी सात साल की सजा को उम्रकैद तक बढ़ाने के बाद शीर्ष अदालत का रुख किया था.
28 दिसंबर 2005 को भारतीय संस्थान के एक ऑडिटोरियम में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा था और क़रीब सात बजे लोग जब ऑडिटोरियम से निकल रहे थे, उसी समय आतंकियों द्वारा गोलीबारी की गई थी. इस हमले में एक प्रोफेसर की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो हुए थे. पुलिस ने हमले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. जिनके संबंध लश्कर ए तैयबा के साथ थे.
पुलिस का कहना था कि हमलावर कार में आए और उनमें से एक ने कार से निकलकर गोलियाँ चलानी शुरू कर दी थी. इस हमले में सात लोगों को गिरफ्तार किया गया था और पुलिस ने कहा कि उन्होंने उनके पास से विस्फोटक और बम बरामद किए हैं. निचली अदालत ने दिसंबर 2011 में एक को बरी कर दिया और बाकी छह को सजा सुनाई थी.
आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने में पुलिस के प्रयासों की बेंच ने सराहना की. कोर्ट ने कहा कि यदि इस घटना को अंजाम दिया गया होता, तो भारी संख्या में आम लोगों की जान जाती. साथ ही सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पहुंचता.