पटना. बिहार के चर्चित गर्भाशय घोटाले की जांच सीबीआइ कर सकती है. पटना हाइकोर्ट ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए यह संकेत दिया. हाइकोर्ट ने सीबीआइ से चार सप्ताह में यह बताने को कहा है कि क्यों नहीं गर्भाशय घोटाले की जांच का जिम्मा उसे सौंपा जाये.
जस्टिस अश्विनि कुमार सिंह और डाॅ अंशुमान की खंडपीठ ने वेटरन फोरम द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सीबीआइ को पार्टी बनाने का निर्देश याचिकाकर्ता को दिया था.
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एसपी यादव ने कोर्ट ने एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया, ताकि इस मामले की सुनवाई में महाधिवक्ता राज्य सरकार का पक्ष दे सकें. कोर्ट ने जानना चाहा कि इस तरह की अमानवीय घटना के मामले में राज्य सरकार ने अब तक क्या किया. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले ज्यादा संवेदनशीलता दिखाना चाहिए था.
सबसे पहले यह मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि सबसे पहले यह मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष 2012 में लाया गया था. इसके लिए 2017 में हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका वेटरन फोरम ने दायर किया गया था. इसमें यह कहा गया था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का गलत लाभ उठाने के लिए बिहार के विभिन्न अस्पतालों, डॉक्टरों द्वारा बड़ी तादाद में बगैर महिलाओं की सहमति के ऑपरेशन कर उसका गर्भाशय निकाल लिया गया .