कोरोना महामारी के असर से अर्थव्यवस्था को बचाने तथा लोगों को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाओं व कार्यक्रमों को शुरू किया था. इनमें प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना भी थी, जो जुलाई, 2020 से चल रही है. इसके तहत रेहड़ी, पटरी, ठेला आदि के सहारे जीवनयापन करनेवाले लोगों को बिना किसी गारंटी के पहले 10 हजार रुपये तथा फिर दूसरी और तीसरी बार क्रमशः 20 हजार व 50 हजार रुपये का ऋण दिया जाता है.
इसे एक साल के भीतर लौटाना होता है, जिसके बाद सात प्रतिशत ब्याज की राशि सरकार की ओर से उस लाभार्थी को लौटा दिया जाता है. उल्लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लगाये गये लॉकडाउन का सबसे अधिक असर इन्हीं लोगों पर पड़ा था. केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, बीते दो वर्षों में 30,20,566 पहला ऋण (10 हजार रुपये) और 2,99,179 दूसरा ऋण (20 हजार रुपये) बांटे गये हैं.
उल्लेखनीय है कि इस योजना के लगभग 12 प्रतिशत लाभार्थी ही अपना कर्ज लौटा पाने में असमर्थ रहे हैं यानी 88 प्रतिशत लोग समय से अपनी किस्तें चुका रहे हैं. ये आंकड़े यह तो इंगित करते ही हैं कि बड़ी संख्या में लाभार्थी ऋण का सही उपयोग कर रहे हैं और उसे लौटा पा रहे हैं, इनसे यह भी पता चलता है कि धीरे-धीरे वे महामारी के नकारात्मक असर से भी बाहर निकल रहे हैं.
कुछ दिन पहले ही सरकार ने इस योजना को दिसंबर, 2024 तक बढ़ाने की सराहनीय घोषणा की है. ऋण का समय पर चुकाया जाना यह भी साबित करता है कि छोटे-छोटे स्वरोजगार में लगे लोगों को आवश्यक राशि उपलब्ध करायी जाए, तो न केवल उन्हें अपना काम बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि वे अच्छा जीवन जीने के साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी अधिक योगदान कर सकेंगे.
रेहड़ी और पटरी पर या ठेला लगाकर सामान बेचनेवाले लोगों के लिए पहले बैंकों से कर्ज ले पाना लगभग असंभव था क्योंकि न तो उनके पास जरूरी दस्तावेज होते थे और न ही वे गारंटी के रूप में जमीन-जायदाद का कागज जमा करा सकते थे. आम तौर पर शहरों की अस्थायी बस्तियों और झुग्गियों में उनका निवास होता है तथा वे गांवों-कस्बों से आये होते हैं.
इस योजना के द्वारा प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार का अपनी गारंटी देना यह भी रेखांकित करता है कि गरीबों, वंचितों और निम्न आय वर्ग का कल्याण सरकार की प्राथमिकता है. उल्लेखनीय है कि अधिक राशि की आवश्यकता वाले स्वरोजगार व छोटे कारोबार के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भी अप्रैल, 2015 से चलायी जा रही है, जिसके तहत 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है. मनरेगा के विस्तार के साथ-साथ मुफ्त अनाज देने की योजना भी चलायी जा रही है. ई-श्रम सुविधा पंजीकरण के जरिये श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की गयी है. ये कल्याणकारी योजनाएं देश के समावेशी विकास के लिए आवश्यक आधार बन रही हैं.