पं श्रीपति त्रिपाठी ज्योतिषाचार्य. आषाढ़ माह की देवशयनी के बाद से चार माह के लिए व्रत और साधना का समय प्रारंभ हो जाता है, जिसे चातुर्मास कहते हैं. सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक- इन चार माह में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य निषेध माने गये हैं. चातुर्मास की शुरुआत रविवार, 10 जुलाई से हो रही है. मान्यतानुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. चार माह बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान योग निद्रा से जागते हैं, जिसके बाद मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है.
चूंकि चार माह के लिए देव यानी श्रीहरि योग निद्रा में चले जाते हैं और सनातन धर्म में हर मांगलिक और शुभ कार्य में श्रीहरि विष्णु सहित सभी देवताओं का आह्वान अनिवार्य है, अत: इन चार मास में शुभ कार्य नहीं किये जाते.
इन चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है. शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किये गये कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते, इसलिए मांगलिक कार्यनिषेध होते हैं. इस दौरान हमारी पाचन शक्ति कमजोर होती है, अत: वर्षा ऋतु में चातुर्मास के नियमों का पालन कर भोजन करना चाहिए, अन्यथा रोग जकड़ सकता है.
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इस अवधि में यात्राएं रोककर संतजन एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि इन चार माह में की गयी पूजा जल्द फलीभूत होती है और मनोकामना पूर्ण होती ह
सूर्य जब से कर्क राशि में भ्रमण करने लगता है, तो उसके बाद छह माह तक दक्षिणायन रहता है. दक्षिणायन को पितरों का समय और उत्तरायण को देवताओं का समय माना गया है, इसलिए दक्षिणायन काल में मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है.
चातुर्मास में श्रीहरि पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने जाते हैं और उनकी जगह भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं. इस दौरान शिवजी के गण भी सक्रिय हो जाते हैं.