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Exclusive: ‘छाप तिलक’ सॉन्ग फेम अयान अली बंगश बोले- कलाकार हमेशा प्यार का भूखा रहता है

'छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके...' सॉन्ग फेम अयान अली ने सिंगर अमृता काक के साथ काम करने का अपना अनुभव बताया. साथ ही उन्होंने बताया कि कुछ और सिंगल को लाने की प्लानिंग कर रहे है.

‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके…’ गाने को जितनी बार सुनें, जी नहीं भरता. 14वीं सदी के अमीर खुसरो की रचना पर आधारित इस गाने को अब सरोद वादक अमान और अयान अली बंगश भाइयों की जोड़ी ने रिक्रिएट किया है. वहीं इसे गायिका अमृता काक ने अपनी सुरीली आवाज से सजाया है. मशहूर सरोद वादक अमजद अली खान के बेटे अयान अली से हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश.

आप दोनों भाइयों के साथ सिंगर अमृता काक की ‘छाप तिलक’ में जुगलबंदी कैसे हुई?

वर्ल्ड म्यूजिक डे के दिन पैनोरमा म्यूजिक द्वारा सिंगल ‘छाप तिलक’ रिलीज किया गया. एक मुद्दतों से हम साथ में काम करने की कोशिश कर रहे थे. शायद हर चीज का एक समय होता है, तो यह अभी हो पाया. ये यह एक पारंपरिक व शास्त्रीय गीत है, तो इसे पर संगीत देना एक चैलेंज था कि इसे कैसे नया रूप दें. अमृता जी क्लासिकली ट्रेंड हैं. कमाल की फनकारा हैं. रियाज का क्या महत्व होता है, म्यूजिकल जर्नी क्या होती है, इन सब का उन्हें बहुत खूब इल्म है. साथ ही हम बहुत अच्छे दोस्त रहे हैं. हमारे पारिवारिक संबंध रहे हैं, तो जब भी आप कुछ प्रस्तुत करते हैं और दिल मिले हों, तो सुर भी अच्छे लग जाते हैं.

आपके वालिद अमजद अली खान साहब की इस सिंगल पर क्या खास राय रही?

सरोद पर तो उन्होंने कुछ रिएक्शन नहीं दिया, अब्बा साहब की यही ट्रेनिंग रही है कि आप खुद को खुद से जज करें, लेकिन अमृता जी के बारे में जरूर कहा कि बहुत सुर में गा रही हैं. बहुत अपीलिंग आवाज है, जो रूह को छू लेती है.

मौजूदा दौर में मिलियन व्यूज से किसी गाने की सफलता का मापदंड तय किया जाता है. क्या कहेंगे?

हर दौर में किसी गाने या किसी भी चीज की कामयाबी की एक नयी परिभाषा होती है. एक जमाने में जब एलपी आते थे, तो लेबल आर्टिस्ट को गोल्ड डिस्क देते और बताते कि इतनी कॉपी बिक गयी. आज हम जिस दौर में हैं, हम म्यूजीशियन तोहफे में आर्टिस्ट को कुछ नहीं दे सकते हैं. सबकुछ ऑनलाइन हो गया है, इसलिए अगर ये व्यूज आते हैं, तो यह कामयाबी का नया काउंटर पार्ट है. एक प्रोत्साहन भी मिलता है कि चलिए लोगों ने आपके काम को स्वीकार किया, प्यार दिया. आर्टिस्ट प्यार का हमेशा भूखा रहता है.

संगीत निरंतर इवॉल्व होती चीज है. क्या आपको लगता है कि रागों में फ्यूजन किया जाना जरूरी है?

हर राग की अपनी दुनिया है, अपना रंग है, जैसे ‘छाप तिलक’ में राग यमन है, तो हमें उसमें एक खुला मैदान मिला. इसमें हम थोड़ा राग विहाग भी लेकर आये. यमन, कल्याण और विहाग के सुर एक ही हैं, लेकिन चलन का फर्क है. फ्यूजन में बहुत कुछ हो सकता है, यह तो लंबी यात्रा होती है. हर दिन एक नयी दुनिया, नयी खुशबू, नया रंग बनाते हैं.

आप शास्त्रीय संगीत के भविष्य को कैसे देखते हैं? कहा जाता है कि युवा पीढ़ी शास्त्रीय संगीत से दूर हो रही है?

मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी शास्त्रीय संगीत से बहुत कनेक्टेड है. मुझे नहीं पता कि लोग ऐसा क्यों कहते हैं. आज जितने लोग गाना-बजाना कर रहे हैं, वह चाहे फिल्मी संगीत हो, क्लासिकल म्यूजिक हो या फिर इंस्ट्रूमेंटल हो, इतना टैलेंट भर-भर के दिखता है. जितने युवा हैं, वे भाग्यशाली हैं कि उनको सारे बुजुर्गों का, हमारे फील्ड के जितने सुपरस्टार्स हैं, उन सभी के रिसर्च के बहुत फायदे मिले हैं. आज यूट्यूब में इतना कंटेंट है कि आप उसमें से सुनकर ही खुद को सुधार सकते हैं और लोग ऐसा कर भी रहे हैं.

आज इंटरनेट पर भी म्यूजिक को सीखा जा रहा है. आप इसे कैसे देखते हैं?

समय के साथ-साथ हमें हुनर की बारीकी को भी अपनाना होगा. ऑनलाइन क्लासेज लॉकडाउन में शुरू हो गये थे. लॉकडाउन के बाद इसे और बढ़ावा मिला, क्योंकि मेंटल हेल्थ के लिए संगीत और फाइन आर्ट्स बहुत महत्वपूर्ण चीज हैं. कोई ऑफिस जाता है, लेकिन उसे संगीत सीखने का भी शौक है, तो वह ऑफिस से आकर कहीं पर सीखे, तो इसमें बहुत समय निकल जायेगा. ऐसे लोगों के लिए ऑनलाइन माध्यम अच्छा है, मगर कोई इस इल्म को अपना प्रोफेशन बनाना चाहता है, तो इसके लिए हजारों वर्षों से एक ही सटीक तरीका है कि आज भी गुरु के पास ही जाना होगा. रूबरू गुरु के साथ उठना- बैठना सीखकर ही सही तालीम हो पायेगी.

आपके पुरखों ने दशकों से शास्त्रीय संगीत की धरोहर को सहेजने का काम किया है. ग्वालियर के ‘सरोद घर’ म्यूजियम को सहेजने में भी वही कोशिश दिखती है. इस परंपरा को आप कैसे देखते हैं?

‘सरोद घर’ हमारे परिवार की एक निशानी है. मुझे लगता है कि जो आपकी धरोहर है या पीढ़ियों से चला आ रहा है, उसे आप अपने काम के जरिये बताइए. काम के जरिये मालूम पड़ना चाहिए कि आप खानदानी हैं, सिर्फ बातों से नहीं. भगवान करे कि हमारे संगीत में रंग और खुशबू बनी रहे और हमारी मेहनत और ईमान हमारे काम में दिखे.

आपने देश-दुनिया में कई लाइव शोज किये हैं. कभी ‘शो मस्ट गो ऑन’ वाला मामला हुआ?

यह लाइन सिर्फ एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में सीमित नहीं है. शो मस्ट गो ऑन का बहुत बड़ा मतलब बनता है कि बस आपको एक साथ चलते रहना है, चाहे आपकी जिंदगी में कुछ भी उतार-चढ़ाव आये. ऐसे बहुत सिचुएशन हुए हैं. शिलॉन्ग की बात है. प्रोग्राम के कुछ घंटे पहले मेरे अंगूठे में चोट लग गयी. स्टिचेस लग गये. लेकिन भगवान ने तब भी मुझसे बजवा दिया. इसके अलावा एक बार मैं और अमान भाई प्रोग्राम के लिए कार से जा रहे थे और छोटा-सा एक्सीडेंट हो गया. एक हफ्ते बाद हमने परफॉर्म किया. हालांकि हम उस वक्त भी दर्द में थे, लेकिन शो करना ही पड़ा.

आप दोनों भाई संगीत का रियाज भी साथ में करते हैं?

हम अच्छे दोस्त भी हैं. यह जुगलबंदी स्टेज पर भी दोस्त वाली ही होती है. हम एक-दूसरे को इतना जानते हैं और संगीत की इतनी समझ है कि हमें साथ में रियाज नहीं करना पड़ता. हम अलग-अलग ही रियाज करते हैं. वैसे हम दोनों एक-दूसरे से काफी अलग हैं.

पेंडेमिक ने म्यूजिक इंडस्ट्री को कितना प्रभावित किया?

महामारी के दौरान हम सभी बेहद बुरे दौर से गुजरे हैं. वह समय बीत गया और दुनिया फिर से सामान्य हो रही है. इसके लिए भगवान का शुक्रगुज़ार हूं. वक्त लगेगा सब ठीक होने में, लेकिन शुरुआत हो गयी है. सोशल मीडिया और ऑनलाइन अपनी जगह है, लेकिन लाइव म्यूजिक का जो असर है, उसका अपना मजा है. हम चाहेंगे कि ‘छाप तिलक’ के साथ हम कुछ और गानों को स्टेज पर एक साथ परफॉर्म करें. कुछ और सिंगल को लाने की प्लानिंग है.

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