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वायु प्रदूषण की गंभीर चुनौती

प्रदूषण नियंत्रण हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए, क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है. प्राथमिकता देकर ही हम किसी समस्या का स्थायी निदान कर सकते हैं.

जीवन के पांच मूल तत्वों- क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, इनमें से क्या बचा है, जो आज प्रदूषित नहीं है. वायु, जल, मिट्टी सब दूषित हो चुके हैं. पांचों तत्व जीवन के बुनियादी आधार हैं, इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. इनमें से किसी एक की कमी भी जीवन की संभावनाओं को खत्म कर देती है. भारत को ये सभी तत्व प्रचुर मात्रा में धरोहर के रूप में प्राप्त थे.

हमारे पास जंगल, जलाशय, नदियां, पहाड़, मिट्टी, उर्वरता सब कुछ था. बेहतर जीवनोपयोगी दशाओं के कारण ही आक्रांता बार-बार इस भूमि पर आते रहे. प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न इस देश में आज सभी संसाधन दूषित होते जा रहे हैं. वायु प्रदूषण की समस्या तो अतिगंभीर है. हर साल सर्वेक्षण में भारत प्रदूषण के नये कीर्तिमान बना रहा है. हम प्रदूषण के मामले में विश्वगुरु बनते जा रहे हैं.

देश की 63 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों में रहती है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक, निर्धारित स्तर से खराब ही बना रहता है. भारत द्वारा तय मानदंड 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तय किया गया है, जबकि वैश्विक मानदंड से इसकी तुलना करें, तो यह 11 गुना ज्यादा है. विश्व मानक से संभव है कि देश की 80 से 90 प्रतिशत आबादी प्रदूषण की गिरफ्त में हो. साल 2013 से विश्व के कुल प्रदूषण में 44 प्रतिशत भारत में होता है.

दक्षिण-पूर्व एशिया के सभी देशों में भूटान ही एकमात्र देश है, जिसका कार्बन फुटप्रिंट निगेटिव है. यानी, भूटान जितना कार्बन उत्सर्जित करता है, उससे ज्यादा उसकी भरपाई ऑक्सीजन से हो जाती है. हमारे प्रदूषण का बोझ भूटान पर भी है. जबकि जीडीपी, आबादी, क्षेत्रफल, क्षमता में वह हमसे बहुत छोटा देश है. लेकिन, वे बेहतर ढंग से प्राकृतिक संतुलन बना रहे हैं. हमारी सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है, क्योंकि मिट्टी और पानी की उपलब्धता से जीवन आसान होता गया.

गंगा का मैदानी भूभाग, जहां बहुतायत आबादी रहती है, रिपोर्ट के मुताबिक, वहां विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से वायु प्रदूषण 21 गुना तक ज्यादा है. अधिक बसावट के कारण यहां आबादी का बड़ा हिस्सा प्रदूषण की जद में है. साल 2019 में लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण से भारत में हर साल लगभग 16 लाख मौतें हो रही हैं, जो असामयिक मौतों का 17 प्रतिशत है.

वायु प्रदूषण के तीन शीर्ष कारणों में पहला, औद्योगिकीकरण है. विकास के लिए यह आवश्यक है, लेकिन इसके अनियोजित होने से समस्याएं बढ़ती गयीं. शहर के बीच में बड़ी इंडस्ट्री लगाने जैसी वजहों से वायु दूषित हुई. दूसरा, आर्थिक विकास के नाम पर बड़े-बड़े हाईवे, कॉरिडोर बनाये गये. यह जरूरी भी है, लेकिन इसकी एवज में लाखों पेड़ काट दिये गये. पेड़ लगाने का वादा किया गया, लेकिन सवाल है कि क्या इससे भरपाई हो पायेगी. तीसरी मुख्य वजह है वाहनों की बढ़ती संख्या.

सन 2000 के बाद से सड़कों पर वाहनों की संख्या चार गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है. इससे प्रदूषण गंभीर हुआ है. स्वीडन में नियम है कि अगर आपको जरूरत है, तभी गाड़ी लें. वहां एक गाड़ी एक ही जगह अगर तीन दिन से अधिक समय तक खड़ी रहती है, तो उस पर पेनाल्टी आ जाती है. वहीं, हमारे देश में कई परिवारों में तो चार से पांच गाड़ियां हैं. प्रदूषकों में पीएम 2.5 की बात तो होती है, लेकिन पीएम 10 पर चर्चा नहीं होती.

यह कंस्ट्रक्शन, सड़कों के किनारे धूल से होता है. वायु प्रदूषण से जीवन प्रत्याशा में दो से ढाई साल की कमी आयी है. कैंसर सर्जन के तौर पर मैं लोगों से शराब, सिगरेट छोड़ने की अपील करता हूं. लेकिन, शर्मनाक है कि प्रदूषण के साथ-साथ इन आदतों ने भी लोगों को जोखिम में डाल दिया है. सिगरेट की वजह से जीवन प्रत्याशा में 1.9 वर्ष, एल्कोहॉल से आठ महीने, जल प्रदूषण से सात महीने, एचआईवी, मलेरिया, डेंगू आदि बीमारियों से तीन से चार महीने तक की कमी आती है.

भारत में मौतों का बड़ा कारण सड़क दुर्घटना है, दूसरा हृदय रोग और तीसरा कैंसर है. लेकिन, कायदे से पड़ताल करें, तो वायु प्रदूषण टॉप पर पहुंच जायेगा, क्योंकि हार्ट अटैक, कैंसर आदि बीमारियों की वजह ही वायु प्रदूषण है. चीन में भी यह समस्या थी, लेकिन उन्होंने ठोस कार्ययोजना बनायी और उस पर संजीदगी से अमल किया. साल 2013 से उनका वायु प्रदूषण हर साल कम होता जा रहा है. अगर चीन कर सकता है, तो हम क्यों नहीं.

सर्दियों की शुरुआत में प्रदूषण बढ़ जाता है. उस समय तापमान तेजी से गिरता है. जो प्रदूषण जमीन से काफी ऊंचाई पर होता है. वह नमी होते ही, नीचे आ जाता है. इससे लोगों को प्रदूषण महसूस होने लगता है. पराली और पटाखे इसे और भी गंभीर बना देते हैं. वास्तविकता है कि प्रदूषण हर समय मौजूद होता है. इसका समाधान है कि गंभीरता से इस पर विचार हो. प्रदूषण पैदा करनेवाली विकास गतिविधियों से बीमारियों के खर्च को घटा दें, तो हमारा लाभ बहुत अल्प होता है.

दूसरा, यह समस्या एक इंसान या एक पीढ़ी तक ही नहीं है. यह पूरे देश और भविष्य की पीढ़ी के लिए भी समस्याजनक है. हमें न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की चिंता करने की भी जरूरत है. हमें सोचना चाहिए कि भावी पीढ़ी को हम क्या देकर जा रहे हैं. इसमें ऐसे लोग भी प्रभावित हो रहे हैं, जिनका कोई दोष नहीं है. प्रदूषण नियंत्रण हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए,क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है. प्राथमिकता देकर ही हम किसी समस्या का स्थायी निदान कर सकते हैं. (बातचीत पर आधारित).

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