राज्यों में दबाव बढ़ने को लेकर चेतावनी के संकेत दिख रहे हैं और सर्वाधिक कर्ज वाले पांच राज्य- पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल को गैर-जरूरी चीजों पर खर्च में कमी कर सुधारात्मक उपाय करने की जरूरत है. भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में यह कहा गया है. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा (Michael Patra) के मार्गदर्शन में अर्थशास्त्रियों के एक दल द्वारा लिखे लेख में कहा गया है कि विभिन्न अप्रत्याशित झटकों से राज्यों की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है.
इसमें कहा गया है, कुछ राज्यों के लिये प्रतिकूल हालात से उनका कर्ज उल्लेखनीय रूप से बढ़ सकता है. इससे राजकोषीय मोर्चे पर चुनौतियां उत्पन्न होंगी. लेख के अनुसार कर राजस्व में नरमी, प्रतिबद्ध व्यय में ऊंची हिस्सेदारी और सब्सिडी बोझ बढ़ने से राज्य सरकारों के वित्त पर दबाव बढ़ा है. जबकि कोविड-19 महामारी से उनके वित्त पर पहले से दबाव है. इसमें कहा गया है कि मुफ्त में दिये जाने वाले सामानों पर बढ़ते खर्च, बढ़ती देनदारी और बिजली वितरण कंपनियों पर बढ़ता बकाया जैसे कारणों से नये जोखिम के स्रोत उभरे हैं.
लेख में आगाह करते हुए कहा गया है कि सबसे अधिक कर्ज वाले पांच राज्य बिहार, केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के कर्ज का स्तर टिकाऊ नहीं है क्योंकि पिछले पांच साल में कर्ज वृद्धि ने अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है. लेखकों के अनुसार, दबाव परीक्षण बताते हैं कि राज्यों का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 2026-27 तक 35 प्रतिशत से ऊपर बना रहने के साथ अधिक कर्ज वाले ज्यादातर राज्यों की वित्तीय स्थिति आगे और खराब हो सकती है. हालांकि, केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में कही गयी बातें लेखकों के अपने विचार हैं और कोई जरूरी नहीं है कि यह आरबीआई की सोच के अनुरूप हो.
लेख में सुधारात्मक उपायों के रूप में राज्य सरकारों को अल्पकाल में गैर-जरूरी खर्चों में कटौती कर राजस्व व्यय में कमी लाने का सुझाव दिया गया है. वहीं मध्यम अवधि में कर्ज स्तर को स्थिर बनाने की दिशा में प्रयास करने की जरूरत बतायी गयी है. साथ ही बिजली वितरण कंपनियों के घाटे में कमी लाने और उन्हें वित्तीय रूप से टिकाऊ तथा परिचालन के स्तर पर दक्ष बनाने के लिये क्षेत्र में व्यापक सुधार की सिफारिश की गयी है. लेख के अनुसार, दीर्घकाल में कुल व्यय में पूंजी व्यय की हिस्सेदारी बढ़ने से दीर्घकालीन संपत्ति सृजित करने, राजस्व बढ़ाने और परिचालन दक्षता को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
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