पटना. ब्रेन ट्यूमर खतरनाक बीमारी तो है, लेकिन लाइलाज नहीं. बशर्ते कि यह सही समय पर पकड़ में आ जाये. अगर किसी को सिरदर्द, कमजोरी, चक्कर आनेकीबार-बार शिकायत रहती है, तो इसे हल्के में न लें. पेन किलर लेने पर भी यदि दर्द में आराम न आये, तो सतर्क रहें. पेन किलर की ओवरडोज लेने की जगह न्यूरोलॉजिस्ट से जरूर सलाह लें. मस्तिष्क में सेल्स का असामान्य रूप से विभाजन और अनियंत्रित विकास होना ही ब्रेन ट्यूमर है. दरअसल, हमारे ब्रेन में तकरीबन एक खरब सेल्स होते हैं, जो नैचुरल प्रोसेस के कारण बनते- बिगड़ते रहते हैं. जब किसी बीमारी या अन्य कारणों से इस प्रोसेस में रुकावट आती है, तब पुराने सेल्स खत्म नहीं हो पाते और नये सेल्स निरंतर बनते रहते हैं.
ऐसे में पुराने सेल्स इकट्ठे होकर गांठ के रूप में बढ़ने लगते हैं. ये गांठ ब्रेन के जिस हिस्से में बनते हैं, उस क्षेत्र पर दबाव डालने लगते हैं और वहां की कार्यप्रणाली को बाधित कर देते हैं. जिससे मरीज को सिरदर्द-चक्कर जैसी समस्याएं होनी शुरू हो जाती हैं. यह किसी को भी हो सकता है. पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती उम्र में सामने आने वाला ब्रेन ट्यूमर अब युवावस्था में भी तेजी से सामने आ रहा है. बच्चों में होने वाले कैंसर में ब्रेन ट्यूमर दूसरे नंबर पर है. देश के हेल्थ प्रोग्राम से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर बड़ों के मुकाबले बच्चों में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. ध्यान न देने पर ब्रेन ट्यूमर हजारों बच्चों की अकाल मौत का कारण बन रहा है.
अधिकांश लोगों को काफी समय तक इसका पता भी नहीं चल पाता. यही कारण है कि ब्रेन ट्यूमर को साइलेंट किलर भी कहा जाता है, लेकिन शरीर का महत्वपूर्ण और नाजुक अंग होने के कारण ब्रेन के किसी भी हिस्से में कोई तकलीफ हो, तो उसका प्रभाव शरीर के दूसरे अंगों की गतिविधियों पर भी पड़ने लगता है. यदि निम्न लक्षण दिखें, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
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सिरदर्द जो रोज सुबह 4-5 बजे होता है, जिसकी वजह से मरीज की नींद खुल जाती है.
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सिरदर्द जो दवाई से कुछ देर के लिए ठीक हो और फिर दोबारा होने लगे.
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सिरदर्द के साथ उल्टी होना. उल्टी होने पर सिरदर्दकुछ कम हो जाता है.
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आंखों में धुंधलापन या दो-दो आकृतियां दिखना.
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हाथ-पैरों में कमजोरी आना, झुंझनाहट होना.
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बार-बार चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना, चलते समय लड़खड़ाना.
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मिर्गी का दौरा आना.
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बच्चों के सिर का बड़ा होना, आंखों का टेढ़ा होना, गर्दन टेढ़ी करके चलना.
वैसे तो मेडिकल साइंस में ब्रेन ट्यूमर के होने के सटीक कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है. फिर भी कुछ चीजों सेब्रेन ट्यूमर होनेकी आशंका जतायी जाती है.
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मानव शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाले कैंसर में 40 कैंसर की ब्रेन तक पहुंच.
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जेनेटिक फैक्टर : कैंसर पीड़ित माता- पिता से 5 प्रतिशत बच्चों में होने का रिस्क.
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न्यूक्लियरप्लांट्स में रेडिएशन व अन्य रेडिएशन के संपर्क में आने से.
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नींद पूरी लें, तनाव से दूर रहें.
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मोबाइल के अनावश्यक रूप से इस्तेमाल से बचें.
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पौष्टिक और संतुलित आहार लें. आहार में मौसमी फल-सब्जियों को ज्यादा-से-ज्यादा शामिल करें.
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फास्ट फूड व जंक फूड को अवॉयड करें.
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दिन भर में कम-से-कम तीन लीटर पानी पीएं.
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एक्टिव रहें, नियमित रूप से व्यायाम करें.
इसका उपचार मरीज व ट्यूमर की स्थिति पर भी निर्भर करता है. यानी ट्यूमर किस तरह का है, ब्रेन के किस हिस्से में है, किस स्टेज में है और कितना बड़ा है. नॉन कैंसरस ट्यूमर को ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप सर्जरी या इंडोस्कोपिक सर्जरी से निकाल दिया जाता है, जो बेहद सुरक्षित है और इसमें खून का बहुत कम नुकसान होता है. अब कंप्यूटर आधारित स्टीरियोटैक्टिक औररोबोटिक सर्जरी जैसी नवीनतम तकनीक भी इस्तेमाल में लायी जा रही है. कैंसरस ट्यूमर होने पर रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी से उपचार किया जाता है. 2 सेंटी मीटर से छोटे ब्रेन ट्यूमर का उपचार गामा नाइफ नॉन ऑपरेटिवरेडिएशन तकनीक से दूर किया जा सकता है, जिसमें किसी तरह की सर्जरी नहीं की जाती.
एमआरआई, सिटीस्कैन, बायोप्सी के जरियेब्रेन ट्यूमर को डायग्नोज किया जाता है. ब्रेन मैपिंग के जरिये यहपता लगाया जाता है कि ट्यूमरब्रेन के किस हिस्से में है और उससे ब्रेन के दूसरे हिस्से को कोई समस्या आयेगी या नहीं. मेडिकल साइंस की नयी तकनीक मैग्नेटिक रेजोंरेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिये यह भी पता लगाया जा सकता है कि ब्रेन ट्यूमर नॉन कैंसरस है या फिर कैंसरस.