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Google Doodle: कौन थे Satyendra Nath Bose और आखिर क्यों दी Google ने उन्हें श्रद्धांजलि

Satyendra Nath Bose का जन्म 1 जनवरी 1894 को हुआ था. उन्हें 1920 के दशक में उनके द्वारा क्वांटम मैकेनिक्स किये गए कार्यों के लिए जाना जाता है.

Google Doodle Today : गूगल ने 4 जून को अपने होम पेज पर Satyendra Nath Bose की एक एनिमेटेड तस्वीर डालकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. आखिर कौन थे Satyendra Nath Bose और क्यों गूगल ने उन्हें आज याद किया? Satyendra Nath Bose का जन्म 1 जनवरी 1894 को हुआ था वे एक भारतीय मैथेमैटिशियन और थेओरिटिकल फिजिक्स में महारथी वैज्ञानिक थे. उन्होंने 1920 के दशक में क्वांटम मैकेनिक्स के फील्ड में उनके द्वारा दिए गए योगदान के लिए याद किया जाता है. उन्होंने Bose Statistics और Bose Condensate की स्थापना की थी. उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में Padma Vibhushan का भी अवार्ड दिया गया था.

Bose से जुड़ी कुछ खास बातें

बोस का जन्म Kolkata में हुआ था. वे अपने परिवार में सबसे बड़े बेटे थे और उनके बाद उनकी 6 बहने ही थी. उनकी पढाई 5 साल की उम्र से शुरू हुई और उन्हें New Indian School में दाखिल कराया गया. अपने स्कूल के फाइनल ईयर में उन्होंने Hindu School में दखिला लिया. उन्होंने 1909 में बोर्ड्स की परीक्षा पास की. वे अपने कक्षा में पांचवे रैंक पर आये थे. उसके बाद उन्होंने Presidency College Calcutta में एडमिशन लिया. उन्होंने Jagadish Chandra Bose, Sarada Prasanna Das Prafulla Chandra Ray से अपनी शिक्षा हासिल की.

रिसर्च करियर

साल 1916 से 1921 तक वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के राजाबाजार विज्ञान महाविद्यालय के भौतिकी विभाग में व्याख्याता रहे. Saha के साथ, Bose ने 1919 में Einstein के विशेष और सामान्य सापेक्षता पर मूल पत्रों के जर्मन और फ्रेंच अनुवादों पर आधारित अंग्रेजी में पहली पुस्तक तैयार की. साल 1921 में वह ढाका विश्वविद्यालय (वर्तमान बांग्लादेश में) के भौतिकी विभाग के रीडर के रूप में शामिल हुए. बोस ने M.Sc और B. Sc ऑनर्स के लिए उन्नत पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए प्रयोगशालाओं सहित कई नए विभाग स्थापित किए और Thermodynamics के साथ-साथ James Clerk Maxwell के Electromagnetism के सिद्धांत को भी पढ़ाया.

Bose–Einstein स्टेटिस्टिक्स

ढाका विश्वविद्यालय में विकिरण और पराबैंगनी तबाही के सिद्धांत पर एक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए, बोस ने अपने छात्रों को यह दिखाने का फैसला किया कि समकालीन सिद्धांत सही नहीं था, क्योंकि यह प्रयोगात्मक परिणामों के अनुसार परिणामों की भविष्यवाणी नहीं कर सकता था. इस विसंगति का वर्णन करने की प्रक्रिया में, बोस ने पहली बार यह स्थिति ली कि Maxwell -Boltzmann वितरण सूक्ष्म कणों के लिए सही नहीं होगा, जहां Heisenberg के अनिश्चितता सिद्धांत के कारण उतार-चढ़ाव महत्वपूर्ण होंगे.

अन्य फील्ड

भौतिकी के अलावा, उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी और साहित्य (बंगाली और अंग्रेजी) में भी कुछ शोध किये थे. उन्होंने रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, प्राणीशास्त्र, नृविज्ञान, इंजीनियरिंग और अन्य विज्ञानों में गहरा अध्ययन किया. बंगाली होने के नाते, उन्होंने बंगाली को एक शिक्षण भाषा के रूप में बढ़ावा देने, उसमें वैज्ञानिक पत्रों का अनुवाद करने और क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

मृत्यु

उन्होंने अपने जीवन कल में कई बड़े काम किये. उन्होंने विज्ञान की पढाई से लेकर बंगाली की पढाई तक को बढ़ावा देने में अपना योगदान दिया. 4 फरवरी 1974 में उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा. आज वे भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके द्वारा किये गए कार्यों से हम आज भी प्रेरणा ले सकते हैं. विज्ञान के फील्ड में उनके द्वारा दिए गए सिद्धांत हमेशा हमारे काम आएंगे.

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