आपके मस्तिष्क में संसार के लोगों की, संसार की स्मृतियों की भारी भीड़ है, जो आपको एकांत में भी शांति से बैठने नहीं देती. दुनिया की आवाजें हैं, दुनिया की बातें हैं, दुनिया की अनेक कड़वी और मीठी स्मृतियां हैं. यदि आप ध्यान से देखेंगे, तो पायेंगे कि आपके मस्तिष्क में संसार के लोगों की और संसार की स्मृतियों की घुड़दौड़ ने एकांत के क्षणों की भी आपकी शांति छीन ली है.
आप जरा सा शांत बैठे नहीं कि सारी पुरानी बातों का स्मरण होने लगेगा और आपको परेशान करने लगेगा. ऐसे में आप किसी की बात को याद करके हंसेंगे, तो किसी की बात को याद करके जलेंगे. किसी की बात को याद करके आप के मन में घृणा का भाव उत्पन्न होगा, तो किसी की बात को याद करके आपके मन में उसके प्रति आसक्ति जाग उठेगी. किसी की बात को याद करके आपको धन का ध्यान आयेगा, तो किसी की कोई बात याद करके आपको ध्यान आयेगा कि उस व्यक्ति ने मेरा बड़ा नुकसान किया.
और फिर उससे बदला लेने की भावना आपके मन में जाग उठेगी. मित्रों, एक संसार वह है जो आपको बाहर दिखाई दे रहा है. एक संसार आसक्ति का संसार है, जो आपके मन पर अधिकार किये हुए है, वह आपके भीतर बसा हुआ है, जो आपके अंदर चला करता है, भले ही आप भीड़ में चले जाएं. भीड़ को देखते-देखते आप अपने अंदर की तरफ नहीं देखते, बाहर देखते-देखते हमेशा आप परेशानी महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति में जब भी आप भीड़ में होंगे, तो अपने-आपको अकेला महसूस करेंगे.
लेकिन, जैसे ही आप एकांत में जाकर बैठ जायेंगे, तो आपके अंदर की भीड़ बाहर आने लगेगी. यदि आपको एक स्वस्थ और सुखी जीवन जीना है, तो आपको इन स्थितियों से बचना पड़ेगा. आप बाहर की भीड़ को भीतर मत घुसने दीजिए. जब भीतर भीड़ नहीं होगी, तब आप एकांत के क्षणों का पूरा लाभ उठा सकेंगे, उनका पूरा आनंद ले सकेंगे. यह केवल और केवल ध्यान से संभव होगा, आत्म साधना से संभव होगा, ईश्वरीय सत्ता को अपने भीतर विराजमान कर लेने से संभव होगा. अतः आप ऐसा ही कीजिए. इसी से आप सच्चा सुख और सच्ची शांत पा सकेंगे.
-श्री सुधांशु जी महाराज