कहा जाता है कि देश में शासन पीएम, सीएम और डीएम ही चलाते हैं. इसमें बहुत हद तक सच भी है. झारखंड से लेकर दिल्ली तक कुछ समय से कई नौकरशाह सुर्खियों में हैं. यूपीएससी में जिन युवकों का चयन होता है, वे कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा से अपना मुकाम हासिल कर पाते हैं. प्रशासनिक सेवा में चयन पर बधाइयों का तांता लग जाता है. पूरे परिवार का नाम रौशन हो जाता है, लेकिन जब अधिकारियों के आचार- व्यवहार को लेकर निराशाजनक खबरें आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है.
इन दिनों दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में कुत्ते के साथ सैर करनेवाले आइएएस अफसर संजीव खिरवार का मामला चर्चा में है. दिल्ली सरकार में राजस्व सचिव खिरवार पर आरोप है कि वे शाम को स्टेडियम में अपने कुत्ते को टहलाने ले जाते थे. इसके मद्देनजर पूरा स्टेडियम खाली करा दिया जाता था और वहां प्रशिक्षण ले रहे खिलाड़ियों को बाहर निकाल दिया जाता था.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार पिछले कई महीनों से यह हो रहा था कि शाम होते ही सुरक्षाकर्मी स्टेडियम पर कब्जा कर लेते थे और प्रैक्टिस कर रहे खिलाड़ियों और कोच को बाहर कर देते थे, ताकि अधिकारी कुत्ते को वहां टहला सकें. खबर छपने के बाद गृह मंत्रालय ने खिरवार का तबादला लद्दाख और उनकी आइएएस पत्नी का तबादला अरुणाचल प्रदेश कर दिया.
हाल में इंडियन एक्सप्रेस में ही खबर छपी कि भले ही एयर इंडिया टाटा समूह के पास चली गयी हो, लेकिन ब्यूरोक्रेट का जलवा कम नहीं हुआ है. ब्यूरोक्रेट अपनी निजी विदेश यात्रा के दौरान ऐसा करते हैं कि वे इकोनॉमी क्लास में टिकट कटवाते हैं और उसे अपने प्रभाव से कई गुना अधिक कीमत के बिजनेस क्लास में परिवर्तित करा लेते हैं. कुछ दिन पहले नागरिक उड्डयन विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ नौकरशाह ने भी ऐसा ही किया था.
बीते अगस्त में हरियाणा के करनाल जिले में पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों पर लाठीचार्ज किया था. इसमें कई किसान गंभीर रूप से घायल हुए थे. उस समय करनाल के एसडीएम का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें पुलिसकर्मियों को किसानों का सिर फोड़ने का आदेश देते हुए स्पष्ट सुना जा सकता था. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में भी कोरोना लॉकडाउन के दौरान जिलाधिकारी को एक युवक ने दवाई की पर्ची भी दिखायी और बताया कि वह दवा लेने जा रहा था, लेकिन डीएम नहीं माने और उन्होंने युवक को थप्पड़ जड़ दिया था.
किसी ने इस घटना का वीडियो बना लिया और डीएम को लेने के देने पड़ गये. कोरोना काल में ही त्रिपुरा से भी एक वीडियो आया था, जिसमें एक डीएम ने एक शादी को बीच में ही रुकवा दिया था. सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हुआ और सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था.
कहने का आशय यह है कि अधिकारियों में पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ गयी है, जिसके लिए प्रशासनिक सेवा का गठन हुआ था, वह अपना काम नहीं कर रही है. अधिकारियों में संवेदना और मानवीय मूल्यों का अभाव साफ नजर आता है. वे ओहदे का बेजा इस्तेमाल करते दिख रहे हैं. ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिनमें अधिकारियों के पास से बड़ी राशियां बरामद हुई हैं.
उपलब्धि के नाम पर देखें, तो आइएएस अधिकारी ने एक यूपीएससी की परीक्षा ही तो पास की होती है, लेकिन वे अपने को भाग्य विधाता समझने लगते हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सभी अधिकारी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हों. ऐसे भी अनेक अधिकारी हैं, जिनका ध्येय जनसेवा है. हाल में असम में बाढ़ के हालात में एक आइएएस अधिकारी कीर्ति जल्ली की कीचड़ में उतर कर लोगों की मदद करते हुए तस्वीर वायरल हुई.
इसकी लोगों ने भारी सराहना की. फोटो में उक्त अधिकारी एक अन्य महिला के साथ नाव में हैं और दोनों के पांव कीचड़ से सने हुए हैं. कीर्ति जल्ली की एक और फोटो सामने आयी थी, जिसमें वे नाव से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का जायजा ले रही थीं. स्थानीय लोगों का कहना है कि वे दशकों से बाढ़ से परेशान होते रहे हैं, पर पहली बार कोई आइएएस अधिकारी उनके पास आया हो.
अशोक खेमका जैसे अफसर भी हैं, जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. कुछ समय पहले अशोक खेमका ने रॉबर्ट वाड्रा के कथित भूमि सौदे उजागर किये थे, जिसके बाद उनका कई बार ट्रांसफर किया गया. सत्ता बदल गयी, लेकिन वे व्यवस्था में फिट नहीं बैठ पाये. वे सबसे अधिक स्थानांतरित होनेवाले अधिकारियों में हैं.
मुंबई में अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान चलाने के कारण खेरनार चर्चित हुए थे. किरण बेदी जब दिल्ली पुलिस की अधिकारी थीं, तो उन्होंने ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारु करने के लिए पहली बार क्रेन का इस्तेमाल किया था और लोग उन्हें क्रेन बेदी तक कहने लगे थे, लेकिन सत्ता प्रतिष्ठानों को ऐसे अफसर पसंद नहीं आते. अब ऐसे नौकरशाह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं.
कुछ समय पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नौकरशाही को लेकर एक विवादित बयान सामने आया था कि जब तक सरकार होती है, तब तक प्रशासनिक अधिकारी नौकर की तरह आगे-पीछे घूमते हैं. बाद में उन्होंने इस पर सफाई भी दी थी. इसको लेकर उन्होंने एक किस्सा भी सुनाया था. उमा भारती ने कहा कि 2000 में वे केंद्र में अटल जी की सरकार में पर्यटन मंत्री थीं, तब बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के साथ उनका पटना से बोधगया हेलीकॉप्टर से जाने का कार्यक्रम बना.
सामने की सीट पर बिहार के एक वरिष्ठ अधिकारी भी बैठे हुए थे. लालू जी ने उनके सामने अपने पीकदान में थूका और उस वरिष्ठ आइएएस अधिकारी के हाथ में थमा दिया और कहा कि उसको खिड़की के बगल में नीचे रख दें. उस अधिकारी ने ऐसा ही किया. उमा भारती ने कहा कि 2005-06 में जब उन्हें बिहार का प्रभारी बनाया गया, तो उन्होंने पीकदान को भी मुद्दा बनाया था. उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से अपील की थी कि यदि आप आज उनका पीकदान उठाते हो, कल हमारा भी उठाना पड़ेगा. अपनी गरिमा को ध्यान में रखो और पीकदान की जगह फाइल और कलमदान पकड़ो.
अधिकारियों को यह समझना होगा कि उनको यह स्थान उनकी योग्यता के कारण मिला होता है और वे किसी भी दल के चाकर नहीं हैं. उनकी पहली जवाबदेही लोगों के प्रति है. देश में अधिकारियों का सम्मान बना रहे, इस पर उन्हें स्वयं गौर करना होगा.