Bareilly News: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में करारी हार मिलने के बाद भी समाजवादी पार्टी (सपा) ने सबक नहीं लिया. लोकसभा और निकाय चुनाव में जीत की तैयारियों के बजाय पार्टी आपसी कलह में उलझी है. पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव सपा का साथ छोड़कर अपनी पार्टी प्रसपा के संगठन की घोषणा कर चुके हैं तो वहीं सीतापुर जेल से छूटने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री मुहम्मद आजम खां लगातार सपा प्रमुख पर सियासी तंज कस रहे हैं. उनकी नाराजगी जगजाहिर है. इसके चलते सपा दो महीने गुजरने के बाद भी यूपी विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार की समीक्षा नहीं कर पाई है. बरेली में अपना बूथ हारने वालों को ही संगठन में जिम्मेदारी दी गई है. इसको लेकर पार्टी के प्रमुख नेताओं से लेकर कार्यकर्ता भी ख़फ़ा हैं.
यूपी विधानसभा चुनाव की मतगणना 10 मार्च को हुई थी. इस चुनाव में सपा को करारी हार मिली तो वहीं स्थानीय निकाय प्राधिकरण (एमएलसी) चुनाव की 36 में से एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई. मगर इसके बाद भी पार्टी में चिंतन और मंथन को लेकर कोई फिक्र नहीं है. कुछ महीने बाद निकाय और 2024 में लोकसभा चुनाव है. इसके चलते भाजपा और कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुटी है. बूथ से लेकर विधानसभा तक के संग़ठन को धार देने की कोशिश शुरू हो गई है. भाजपाई और कांग्रेसी जनता के बीच योजनाओं के साथ मुद्दे लेकर जा रहे हैं. मगर सपा हार की समीक्षा कर खामियां भी दूर नहीं कर पाई है बल्कि बरेली में तो विधानसभा चुनाव में अपना बूथ हारने वालों को ही संगठन के प्रमुख पदों की जिम्मेदारी दी गई है. इनमें से अधिकांश भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने वाले हैं. इनमें से कुछ को शिकायत के बाद हटाया भी गया है. मगर सपा के पुराने और वफादार लोगों को पद नहीं मिला. इससे काफी नाराजगी भी है. सपा के एक पुराने नेता ने बताया कि हर चुनाव के कुछ दिन बाद ही समीक्षा बैठक होती थी. विधानसभा चुनाव में हार के 10 से 15 दिन के बीच में समीक्षा बैठक कर कमियों को दूर किया जाता था. इसके बाद संगठन के जिम्मेदार पदों पर बैठे लापरहवाह लोगों को पदमुक्त किया जाता था. मगर इस बार हटाना तो दूर चुनाव हराने वालों को ही जिम्मेदारी दी जा रही है.
बरेली में संगठन के एक प्रमुख पदाधिकारी ने विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचाया था. उन्होंने प्रत्याशियों को हराने में अहम जिमेदारी निभाई थी. इसके ऑडियो वायरल हुए थे. यह समीक्षा बैठक में रखे जाने थे. मगर समीक्षा ही नहीं हुई. चुनाव हार के बाद भी समीक्षा न होने को लेकर पार्टी नेतृत्व पर ही सवाल उठने लगे हैं.
रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद