Prayagraj News: प्रयागराज के फाफामऊ शमशान घाट, श्रेगवेरपुर शमशान घाट और हनुमानगंज के लीलापुर कछार में गंगा की रेती में बड़ी तादाद में शव को दफनाया जा रहा है. रेती में शव दफनाने का मुद्दा पहली बार कोरोना काल के दौरान चर्चा में आया था, जिसके बाद एनजीटी के निर्देश पर प्रशासन ने इस पर रोक लगाई थी. इसके साथ ही जिला प्रशासन को कोरोना काल में शव के अंतिम संस्कार के लिए उचित प्रबंध करने के भी निर्देश दिए थे.
गौरतलब है कि कोरोना काल में आई तबाही ने देश और प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था. कोरोना काल के दौरान गरीब वर्ग के लोगों के पास या तो पैसे नहीं थे या फिर शवों का अंतिम संस्कार के लिए उनका नंबर नहीं आया. ऐसे में आए दिन हजारों की तादाद में समय-समय पर गंगा की रेत में शव दफन गाए, लेकिन आम जनों और गरीब वर्ग के लोगों द्वारा और पारंपरिक कारणों से अब भी गंगा की रेत में शव को दफनाने का सिलसिला चला आ रहा है.
गौरतलब है कि जब गंगा में बाढ़ आती है तब रेत में दफन शव ऊपर आकर बहने लगते हैं. इससे गंगा तो प्रदूषित होती ही है, लेकिन शवों के कारण गंगा किनारे आने वाली दुर्गंध से आम जनों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही गंगा में भी प्रदूषण होता है.
महंगाई के इस दौर में लकड़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं. महंगाई के कारण दाह संस्कार करने में 5 से 6 हजार का खर्च आता है. ऐसे में तमाम मृतकों के परिवार की माली हालत इतनी खराब होती है कि वह इस खर्च को वहन करने में सक्षम नहीं होते. इसके साथ ही कुछ लोग अविवाहितों के शवों को परंपरा के मुताबिक दाह संस्कार करना उचित नहीं समझते. इसके अलावा टीबी और कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से मृत लोगों का भी दाह संस्कार करने से परहेज किया जाता है.
जानकारों की मानें तो प्रयागराज के विभिन्न घाटों पर विद्युत शवदाह गृहों के निर्माण के बाद ही काफी हद तक इस समस्या से निजात मिल सकती है. हालांकि, अभी दारागंज और लच्छागृह में विद्युत शवदाह गृह बने हैं. वहीं फाफामऊ और छतनाग घाट समेत अन्य घाट पर विद्युत शवदाह गृह बनने हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी कुछ खास काम होता नजर नहीं आ रहा. जब तक विद्युत शवदाह गृह का निर्माण नहीं हो जाता, इस तरह की समस्या से निजात नहीं मिलेगा.
रिपोर्ट- एसके इलाहाबादी