Jharkhand News: रांची यूनिवर्सिटी के आर्यभट्ट सभागार में नाटक ‘धरती आबा’ का मंचन हुआ. इस मौके पर बॉलीवुड अभिनेता मनोज बाजपेयी ने कहा कि रंगमंच की पृष्ठभूमि होने के कारण अक्सर रंगभूमि की ओर खींचा चला आता हूं. दर्शक के बिना आयोजन, आयोजन नहीं होता. कलाकारों की मेहनत रंगमंच की यात्रा और भाव में झलकती है. इसलिए रंगमंच सिर्फ अभिनेता ही नहीं, व्यक्ति को इंसान बनने में भी मदद करता है. साथ ही कहा कि अभिभावकों को रंगमंच से वास्ता और रिश्ता अपने बच्चों के लिए रखना होगा. रंगमंच बच्चों का सर्वांगीण विकास करता है. इससे न सिर्फ बच्चों की रचनात्मकता बढ़ती है, बल्कि उन्हें अच्छा इंसान और नागरिक बनाने में सहयोग मिलता है.
कोरोना काल में लोगों ने क्रिएटिव रिस्पांस करना सीखा : हरिवंश
इस आयोजन के गवाह राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश भी बने. उन्होंने कहा कि कोरोना काल प्रकृति की विपदा के रूप में आया. इस दौरान लोगों ने चुनौतियों के प्रति क्रिएटिव रिस्पांस करना सीखा. इतना ही नहीं चुनौतियों ने समाज को एक साथ मिलकर रास्ता निकालना भी सिखाया.
कलावृष्टि में धरती आबा का मंचन
इस मौके पर लोक संगीत एवं नृत्य के साथ बिहार आर्ट थियेटर के कलाकारों ने ‘धरती आबा’ नाटक का मंचन किया. कार्यक्रम की शुरुआत डिपार्टमेंट ऑफ परफॉर्मिंग एंड फाइन आर्ट्स के विद्यार्थियों ने झूमर नृत्य से की. झारखंड की लोक संस्कृति को ‘छोटानागपुर हीरा नागपुर…’ और ‘हाय राम पान बिरिजीया के ढोल…’ गीत के जरिये पेश किया. बताया गया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य राजीव लोचन प्रसाद के किडनी ट्रांसप्लांट में आर्थिक सहयोग और कोरोना काल में नि:स्वार्थ भाव से सहयोग करने वाले योद्धाओं को सम्मानित करना है. इस दौरान राजीव लोचन की पत्नी अनामिका लोचन को 10 लाख रुपये का चेक सौंपा गया. साथ ही कोरोना योद्धा सदर अस्पताल के डॉ अजीत कुमार, नीरज कुमार, प्रवीण लोहिया और मो खालिद को सम्मानित किया गया. संचालन आरजे शशि ने किया. इस अवसर पर आरयू की वीसी डॉ कामीनी कुमार, निदेशक परफॉर्मिंग एंड फाइन आर्ट्स डॉ निलीमा पाठक, नाटक के निर्देशक सुमन कुमार और अभिषेक रंजन, डॉ जीबी पांडेय, विपुल नायक, गार्गी मलकानी मौजूद थे.
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विक्रांत चौहान ने जीवंत किया किरदार
बिरसा मुंडा के किरदार को विक्रांत चौहान ने जीवंत किया. निर्देशन सुमन कुमार एवं अभिषेक रंजन का था. मो जानी के संगीत निर्देशन और चंद्र कुमार की प्रकाश सज्जा रंगमंच के विभिन्न परिदृश्य के साथ दर्शकों को इतिहास के पन्नों से जोड़ने में सफल रही. इस दौरान अभिनेता जीशान अयूब ने कहा कि रंगमंच और फिल्म के लिए यह जरूरी है.
उलगुलान खत्म नहीं होगा…
नाटक की शुरुआत स्पॉट लाइट में खड़े भगवान बिरसा मुंडा की पारंपरिक प्रतिरूप से होती है. मेघ गर्जन, पारंपरिक वाद्य यंत्र की गूंज और प्रकृति की चहचहाहट से धरती आबा का परिचय होता है. बुजुर्ग धानी मुंडा हूल, सरदार मुंडा और बिरसाइत की लड़ाई की कहानी को आगे बढ़ाते हैं कि कैसे बिरसा मुंडा के जन्म के समय प्रकृति एक भगवान के आगमन का एहसास कराती है. फिर कहानी आगे बढ़ती है. अगले दृश्य में 1878 में जंगल कानून लागू होने के बाद भूखे मुंडा समाज का दर्द झलकता है. इन भूखे लोगों में बिरसा मुंडा का परिवार भी शामिल है.
‘ये जंगल मेरा है, ये नदियां मेरी हैं, मैं इन्हें छिनकर मुंडाओं को दूंगा’ जैसे डायलॉग गूंजा
इस दौरान जल, जंगल और जमीन पर अधिकार की मांग के साथ बिरसा मुंडा का सरकारी अधिकारी पर आक्रोश ही उलगुलान की शुरुआत करता है. चारों तरफ बिरसा मुंडा अनाज पर भूखों का हक है, देवी-देवताओं का नहीं…, ये जंगल मेरा है, ये नदियां मेरी हैं, मैं इन्हें छिनकर मुंडाओं को दूंगा… जैसे डायलॉग गूंजने लगते हैं. ये संवाद बिरसा मुंडा के उलगुलान को सार्थक कर रहे थे. इसके बाद आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के बाद बिरसा मुंडा का हथियार उठाना और अंग्रेजी शासन के खिलाफ जंग छेड़ना, डोंबारी बुरु पहाड़ से लेकर प्रदेश के अन्य हिस्से में उलगुलान का एक-एक दृश्य दिखता है. अंग्रेजी हुकूमत बिरसा मुंडा को कैद कर लेती है. जेल में बिरसा मुंडा की मृत्यु उलगुलान को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है. बिरसा मुंडा के अंतिम वचन ‘आदिम लोगों का खून है… ये उलगुलान खत्म नहीं होगा…’ के साथ नाटक का समापन होता है.