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प्रभात खबर ग्राउंड रिपोर्ट : नक्सलियों का खौफ हुआ कम, गांव के विकास की रफ्तार अब भी धीमी

गुमला प्रखंड के कतरी पंचायत में हेठजोरी गांव है. चारों ओर जंगल व पहाड़ से घिरे हेठजोरी गांव में आज से पांच साल पहले तक नक्सलियों का डेरा रहता था. नक्सली दस्ते के साथ आकर इस गांव में रूकते थे. गांव में ही खाना पीना होता था.

गुमला प्रखंड के कतरी पंचायत में हेठजोरी गांव है. चारों ओर जंगल व पहाड़ से घिरे हेठजोरी गांव में आज से पांच साल पहले तक नक्सलियों का डेरा रहता था. नक्सली दस्ते के साथ आकर इस गांव में रूकते थे. गांव में ही खाना पीना होता था लेकिन समय के साथ इस क्षेत्र में नक्सलियों की आवाजाही कम हुई है. ग्रामीण कहते हैं. अब इस गांव में नक्सली नहीं आते हैं.

नक्सलियों की आवाजाही कम हुई तो अब गांव के लोग विकास के लिए छटपटा रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं. हमारे गांव की तकदीर व तस्वीर कब बदलेगी. आजादी के 75 साल बाद भी विकास के लिए ग्रामीण तरस रहे हैं. हेठजोरी गांव में जाने के लिए माड़ापानी व पतगच्छा से होकर रास्ता है. लेकिन दोनों तरफ रास्ता खतरनाक है.

माड़ापानी से होकर उबड़-खाबड़ सड़क है और पतगच्छा से पहाड़ चढ़ना पड़ता है. इस रास्ते से थोड़ी सी चूक मौत के समीप ले जायेगी. गांव में करीब 115 परिवार है. आबादी साढ़े छह सौ है. इस गांव की सुविधा पर नजर डाले तो आजादी के 75 साल में सिर्फ गांव में बिजली, स्कूल व पानी के लिए एक टोला में सोलर सिस्टम से आपूर्ति के लिए पानी टंकी का निर्माण हुआ है.

वर्तमान में मनरेगा से एक कुआं भी खोदा गया है. इन चार सुविधाओं को अगर अलग कर दिया जाये तो यहां समस्याओं की लंबी सूची है. ग्रामीणों के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण होना था. ठेकेदार ने अधूरा भवन बनाकर छोड़ दिया.

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