विष्णुदत्त द्विवेदी/बक्सर कोर्ट. जब देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब बक्सर चौक के भिखारी लाल ने अपने 800 रुपये की वसूली के लिए मुंसिफ प्रथम के न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया थे. वे अपने उन रुपये की वसूली चाहते थे. उन्होंने इन रुपयों को करहंसी गांव के रहने वाले गुप्तेश्वर प्रसाद, जयनाथ प्रसाद एवं रघुनाथ प्रसाद को दिये थे. समय का पहिया घूमता रहा और भिखारी लाल फाइलों को लेकर न्यायालयों की चौखट पर सलाम बजाते रहे. वर्ष 1970 में उक्त मुकदमे में फैसला सुनाया गया, लेकिन भिखारी लाल को रुपये नहीं मिले.
वर्ष 1972 में शाहाबाद दो जिलों भोजपुर और रोहतास में विभक्त हो गया तथा मामले की सुनवाई अब भोजपुर जिले के अंतर्गत की जाने लगी. वर्ष 1976 में न्यायालय ने डिक्री बनायी.1984 में पारित आदेश को लागू कराने के लिए (एक्सक्यूसन) इजराय वाद दाखिल किया गया. 17 मार्च, 1991 को बक्सर जिला भोजपुर से अलग हो गया, लेकिन मामला न्यायालय की चौखट दर चौखट चलता रहा. इस बीच पुराने पक्षकार दम तोड़ते रहे और नये पक्षकार मुकदमे में शामिल होते रहे. छह जनवरी, 2022 को मुंसिफ के पद पर नियुक्त नये न्यायाधीश नितिन त्रिपाठी ने सभी पुराने मामलों को गंभीरता से लेते हुए त्वरित गति से निष्पादन की प्रक्रिया शुरू की.
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देश की आजादी के समय से लंबित ऐतिहासिक बन चुके उक्त मामले को निष्पादित करने के लिए न्यायालय ने एक बार फिर नये सिरे से शुरुआत की तथा पक्षकारों के उत्तराधिकारियों को नोटिस जारी किया, जहां विपक्षियों के वारिसान सूर्यनाथ चौरसिया ने न्यायालय में हाजिर होकर अपने पूर्वजों द्वारा ली गयी राशि को वापस लौटाने के लिए आवेदन दाखिल किया. नजारत ने वर्षों से बकाया 800 रुपये को ब्याज के साथ जोड़कर कुल 3584 जमा करने का फरमान जारी किया, जिसे विपक्षी ने कोर्ट में जमा कर मामले को समाप्त करा लिया. अब इस बात का इंतजार है कि पीड़ित पक्ष अपने पूर्वजों द्वारा दी गयी राशि को वापस ले जाये.