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सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज का टूलकिट लांच, कहा- इमरजेंसी में बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने का विकल्प

बिहार सरकार की मदद से कोरोना काल में संस्था ने स्कूली बच्चों, अभिभावक, शिक्षकों के बीच सर्वे कर पढ़ाने योग्य पाठ्यक्रम तैयार किया और इसे पत्र के जरिये बच्चों को भेजा गया, ताकि स्कूल बंदी के कारण बच्चों की शिक्षा पर कोई असर नहीं पड़े.

नयी दिल्ली (ब्यूरो): कोरोना के दौरान बच्चों की स्कूली शिक्षा काफी प्रभावित हुई. इस दौरान इंटरनेट शिक्षा मुहैया कराने का सबसे बड़ा माध्यम बना, लेकिन गरीब और वंचित तबकों तक इसकी सीमित पहुंच उनकी शिक्षा में बड़ी बाधक बनकर सामने आये. इस समस्या को दूर करने के लिए सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज ने एक नयी तरकीब निकाली और चिट्ठी के जरिये बच्चों को शिक्षित करने का काम किया. इस संस्था ने बिहार में बिहार मेंटरशिप प्रोजेक्ट पटना और मुजफ्फरपुर के चुनिंदा स्कूलों में चलाया.

बिहार सरकार की मदद से कोरोना काल में संस्था ने स्कूली बच्चों, अभिभावक, शिक्षकों के बीच सर्वे कर पढ़ाने योग्य पाठ्यक्रम तैयार किया और इसे पत्र के जरिये बच्चों को भेजा गया, ताकि स्कूल बंदी के कारण बच्चों की शिक्षा पर कोई असर नहीं पड़े. लॉकडाउन हटने के बाद संस्था ने सामुदायिक स्तर पर शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया. इस संस्था ने सोमवार को बिल्डिंग रेसिलिएंट स्कूल सिस्टम फॉर कंप्रिहेंसिव रिस्पांस टू एजुकेशन इन इमरजेंसी: ए कंप्रिहेंसिव टूलकिट लांच किया.

इस दौरान एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. परिचर्चा में सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज की निदेशक ज्योत्सना झा ने कहा कि इस परिचर्चा का मकसद मौजूदा स्कूली व्यवस्था में भावी बदलाव पर मंथन करना है, क्योंकि इमरजेंसी की स्थिति में स्कूल बंद हो जाते हैं. सिर्फ कोरोना ही नहीं, बाढ़ और अन्य स्थितियों में भी स्कूल बंद होते हैं. ऐसे हालात में बच्चों को कैसे शिक्षा मिले, इस टूलकिट के जरिये इसे दूर करने का प्रयास किया गया है.

ऑनलाइन क्लास स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं- ज्योत्सना झा

ज्योत्सना ने कहा कि ऑनलाइन क्लास स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हाे सकता, क्योंकि इसकी पहुंच सीमित है. इस मौके पर शिक्षाविद अपूर्वानंद ने कहा कि कोरोना के समय शिक्षा पर बहुत असर पड़ा. विश्वविद्यालय स्तर पर भी आसान विकल्प के तौर पर इंटरनेट को अपनाया गया, लेकिन वह आसान रास्ता नहीं था. कोरोना काल में शिक्षा कैसे मुहैया करायी जाये, लोगों ने इसके लिए दूसरे विकल्पों पर गौर नहीं किया. लेकिन चिट्ठी के जरिये शिक्षा मुहैया कराने की पहल की गयी और यह सराहनीय कदम है.

अलग विकल्प की तलाश जरूरी- रामचंद्र राव बेगुर

उन्होंने कहा कि चिट्ठी मानवीय स्पर्श को बनाये रखने में मदद करती है और इस पहल से शिक्षा के प्रति बच्चों में एक ललक पैदा हुई. स्कूल बंदी का सबसे अधिक नुकसान लड़कियों को हुआ. टूलकिट हिंसा प्रभावित इलाकों में बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने में भी कारगर साबित होगा. वहीं, यूनिसेफ के एजुकेशन प्रोग्राम स्पेशलिस्ट रामचंद्र राव बेगुर ने कहा कि हर काम के लिए एक अलग विकल्प की तलाश करना बेहद जरूरी है. सिर्फ पढ़ाई के लिए ही नहीं, बल्कि आगे बढ़ने के लिए ऐसा करना जरूरी है.

सकारात्मक परिणाम की उम्मीद- गीता मेनन

सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज ने कोरोना काल के दौरान नयी पहल कर गरीबों और वंचितों को शिक्षा से दूर नहीं होने दिया. ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए. एजुकेशन इन इमरजेंसी एक्सपर्ट गीता मेनन ने कहा कि इमरजेंसी के हालात में सबसे बुरा असर शिक्षा पर पड़ता है. नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान में ऐसा देखने को मिला है. भारत में भी ऐसा होता है. ऐसे हालात में भी स्कूली शिक्षा प्रभावित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है और वे इससे दूर हो जाते हैं. हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि किसी भी हालात में स्कूली शिक्षा बाधित नहीं हो. टूल किट के जरिये एक कोशिश की गयी है. उम्मीद है कि इसके सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे.

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