Corona Effect : कोरोना संक्रमण के प्रकोप के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर में भिखारियों की तादाद में इजाफा हुआ है, हालांकि स्थानीय प्रशासन सूबे की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इस शहर को भिक्षुकमुक्त बनाने की सरकारी परियोजना पर तेजी से काम कर रहा है. इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के साथ मिलकर भिक्षावृत्ति उन्मूलन के लिए काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन की प्रमुख ने शनिवार को यह जानकारी दी.
‘‘प्रवेश‘‘ संस्था की अध्यक्ष रूपाली जैन ने बताया कि कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने से पहले जनवरी-फरवरी 2020 में किए गए हमारे सर्वेक्षण में पता चला था कि इंदौर में 2,592 लोग भीख मांगकर गुजारा करते हैं. हालांकि, महामारी के प्रकोप के बाद शहर में इनकी तादाद बढ़कर 3,000 के आस-पास पहुंच गई है. रूपाली जैन ने बताया कि नये भिखारियों में ऐसे लोग शामिल हैं जिनके परिवार के कमाऊ सदस्य की कोविड-19 से मौत हो गई थी या अर्थव्यवस्था पर महामारी की मार ने उनसे उनका रोजगार छीन लिया था.
गौरतलब है कि इंदौर में कोविड-19 का पहला मामला 24 मार्च 2020 को सामने आया था. जैन ने बताया कि यह देखा गया है कि शहर के 80 प्रतिशत भिखारी ऐसे हैं जो रोजगार या पुनर्वास की लाख पेशकश किए जाने के बाद भी भीख मांगना ही पसंद करते हैं. हालांकि, हम अलग-अलग स्तरों पर कोशिश कर रहे हैं कि शहर के सभी भिखारी भीख मांगना छोड़ दें.”
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आईएमसी के अधिकारियों ने बताया कि बेसहारा, बुजुर्ग और दिव्यांग श्रेणियों के 54 भिखारियों को पुनर्वास एवं कौशल विकास केंद्र में रखा गया है, जबकि मानसिक रोगों से जूझ रहे भिक्षुकों का इलाज कराने के बाद उन्हें उनके परिजनों के सुपुर्द किया जा रहा है.
अधिकारियों ने बताया कि भिक्षावृत्ति छोड़ने का मन बना चुके लोगों को स्थानीय प्रशासन स्वरोजगार के लिए बैंकों से ऋण दिलाया जा रहा है और ऐसे तीन व्यक्तियों को 10,000-10,000 रुपये का कर्ज हाल ही में मंजूर किया गया है. यहां चर्चा कर दें कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने देश के 10 शहरों को भिक्षुकमुक्त बनाए जाने की प्रायोगिक (पायलट) परियोजना शुरू की है जिनमें इंदौर शामिल है.