लाखों बच्चे, हजारों सपने, सबका समाधान, सिर्फ शिक्षा अभियान. सरकार के लाख प्रयास के बावजूद अभी तक सभी सरकारी विद्यालयों को अपना भवन नसीब नहीं हो पाया है. जिले में भवन व भूमिहीन विद्यालयों की संख्या 252 है, इसमें से कई ऐसे स्कूल हैं जिनका अपना गौरवशाली इतिहास रहा है.
जानकारी के मुताबिक जिले में आज भी 163 भूमिहीन व 89 भवनहीन विद्यालय किसी तरह अन्य विद्यालय से टैग होकर संचालित किए जा रहे है. शिक्षा विभाग स्कूलों में शिक्षकों की कमी को आज तक दूर नहीं कर सका है. किसी विद्यालय में यूनिट से अधिक शिक्षक हैं तो किसी में एक या दो. दूर-दराज इलाके में पदस्थापित शिक्षक भी शहरी या गांव के पास के विद्यालयों में प्रतिनियोजन करा आराम की ड्यूटी फरमा रहे हैं. प्रतिनयोजन रद्द करने का विभागीय फरमान भी धरा रह गया है.
अपनी जमीन अपना भवन का यह सपना शिक्षा विभाग 1999 से दिखा रहा है. इसके बाद भी भवनहीन विद्यालयों के लिए 23 साल से जमीन की तलाश पूरी नहीं कर सका है. शिक्षा के मंदिर में सक्रिय राजनीति करने वाले विद्यालय शिक्षा समिति के सदस्य से लेकर स्थानीय प्रतिनिधियों ने भी भवन निर्माण को लेकर कभी पहल नहीं की है. हाल यह है कि भवनहीन विद्यालयों में कक्षा एक से पांच तक पढ़ रहे करीब दस हजार से अधिक बच्चे जमीन पर बैठकर आसमां छूने का ख्वाब देख रहे हैं.
शिक्षा की ललक हर तबके के बच्चों में जगी है. यही कारण है कि बच्चे मां-बाप के कामों में हाथ बंटाना छोड़ शिक्षा के मंदिर में आने लगे हैं. स्कूलों में बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन जिले में ऐसे भी सरकारी विद्यालय हैं जिनको अपना भूमि और भवन नसीब नहीं है. उन विद्यालयों को शिक्षा विभाग भले ही दूसरे विद्यालय में शिफ्ट कर किसी तरह संचालित कर रही है. लेकिन भूमिहीन विद्यालयों के शिक्षक व बच्चों में आज भी निराशा है.
बताते चले कि जिले के 2527 प्रारंभिक विद्यालयों में करीब 7,13,735 बच्चे नामांकित है. वही प्राथमिक शिक्षा निदेशक रवि प्रकाश ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को दिनांक 11 अप्रैल 2022 को पत्र लिखा है कि जिले में वैसे दो या दो से अधिक विद्यालय जो एक ही विद्यालय के भवन में संचालित है उन्हें एक विद्यालय में सामजित कर अतिरिक्त शिक्षकों को अन्यत्र स्थानांतरित कर दें. इस आदेश के बाद से संशय की स्थिति कायम हो गयी है.
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शिक्षा विभाग ने जमीन के लिए आम जनों को ”जमीन दो और अपनी इच्छानुसार स्कूल का नामकरण कराओ” ऑफर भी पहले से दे रखा है. शर्त यह है कि वे जमीन का अपना रजिस्ट्रीकृत दान राज्यपाल को उपलब्ध करा दें. दान देने वाले की इच्छानुसार विद्यालय का नामकरण किया जायेगा तथा शिलालेख में भी इसका उल्लेख रहेगा.
जिन प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों के भवन वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं या किसी कारणवश जिनमें पर्याप्त भूमि नहीं है उनके भवन निर्माण के लिए जो व्यक्ति 20 डिसमिल अर्थात 810 वर्गमीटर जमीन दान करेगा उसकी इच्छानुसार स्कूल का नामकरण किया जायेगा बशर्ते किसी अन्य के नाम पर पूर्व से नामकरण न हुआ हो.
सरकार की पूर्व से चल रही कवायद के कुछ सार्थक नतीजे मिले हैं तथा ऐसी जमीनों पर स्कूल भवन का निर्माण भी किया गया है मगर बड़ी संख्या में आज भी स्कूल भवनविहीन हैं. वही करीब 61 प्राथमिक, 53 माध्यमिक, 8 उच्च और 15 उच्चतर माध्यमिक स्तर के विद्यालयों की कई बीघा जमीन अतिक्रमण की भेंट चढ़ गयी है.