मीना महतो
झारखंड प्रदेश में आदिवासी बच्चों का बुनियादी शिक्षा आदिवासी भाषा में ही अगले शैक्षणिक सत्र से सभी सरकारी विद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन कराने की सरकारी योजना है. झारखंड राज्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. इसे धरातल पर उतारना आसान नहीं होगा. नेशनल एजूकेशन पॉलिसी ( एनईपी) के तहत अगले शैक्षणिक सत्र यानी अप्रैल 2022 से झारखंड के सभी सरकारी विद्यालयों में बच्चों को उनकी घर की भाषा में गतिविधि के माध्यम से खेल-खेल में शिक्षा प्रदान की जायेगी.
झारखंड में बोली जाने वाली जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा यानी आदिवासी व गैर आदिवासी भाषा में क्षेत्रवार बच्चों को उनकी भाषा में पढ़ायी जायेगी ताकि झारखंड के बच्चों का शैक्षणिक आधार मजबूत हों. तीन से नौ वर्ष के झारखंडी बच्चों को त्रिभाषा सूत्र के तहत बच्चों की घरेलू भाषा में शिक्षा प्रदान करने की योजना है. इसके लिए संताली, हो आदि कुछ जनजातीय भाषा का किताब भी उपलब्ध करायी जायेगी, लेकिन किताबी ज्ञान से पहले बच्चों को उनके घरेलू भाषा में शिक्षक बोलचाल के माध्यम से शिक्षा देंगे.
त्रिभाषा सूत्र यानी एल-1, एल-2 तथा एल-3. एल-1 मतलब संबंधित क्षेत्र का मातृभाषा यानी संथाली, हो, कुड़ुख, खड़िया, मुंडारी, कुड़माली, खोरठा, पंचपरगनिया, नागपुरी आदि है. एल-2 यानी हिंदी तथा एल-3 का तात्पर्य अंग्रेजी से है. कक्षा एक के बच्चों को 70 प्रतिशत शिक्षा उनके घर की भाषा में तथा 30 प्रतिशत हिंदी में प्रदान करना है.
यहां अंग्रेजी भाषा का प्रयोग शून्य है. कक्षा दो में बच्चों की घरेलू भाषा में 50 प्रतिशत तथा द्वितीय भाषा हिंदी में 50 प्रतिशत बोलचाल की भाषा के माध्यम से पढ़ाया जाना है. अंग्रेजी भाषा में यहां भी शिक्षा प्रदान नहीं करायी जा रही है. कक्षा तीन में बच्चों की स्थानीय मातृभाषा में 50 प्रतिशत, हिंदी में 30 प्रतिशत तथा यहां पर अंग्रेजी भाषा को 20 प्रतिशत मात्र समावेशित करना है.
यहां एक तार्किक प्रश्न है कि क्या सरकारी विद्यालयों के ये बच्चे प्रारंभ से अंग्रेजी में पढ़ने वाले निजी स्कूलों के बच्चों को विभिन्न प्रतियोगिता में टक्कर दे पायेंगे? क्या झारखंड में क्षेत्रवार घर की घरेलू भाषा के जानकार गुरुजी विद्यालयों में उपलब्ध हो पायेंगे? चुनौती व गंभीर समस्या के साथ यह एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल है. भाषाई आधार पर क्षेत्र में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के जानकार शिक्षक क्या विद्यालयों में पदस्थापित है? नहीं, ऐसी व्यवस्था संपूर्ण झारखंड में नहीं है.
इसके लिए संबंधित स्थानीय भाषा के जानकार शिक्षकों को संबंधित विद्यालयों में स्थानांतरित कर पदस्थापित करना होगा, तभी कामयाबी संभव हो सकती है. वर्तमान में पदस्थापित शिक्षक उस क्षेत्र की भाषा को सीखकर क्या बच्चों को शिक्षित कर पायेंगे? मेरे विचार से सरकार की त्रिभाषा सूत्र योजना प्राथमिक स्तर पर लागू करना स्वागतयोग्य है, लेकिन कक्षा एक एवं कक्षा दो में भी अंग्रेजी भाषा को समावेशित करना आवश्यक होना चाहिए.