प्रभु यीशु ने यहूदियों के समक्ष एक गंभीर सत्य प्रकट किया और कहा, इब्राहीम के जन्म लेने से पहले से ही मैं विद्यमान हूं. सत्य यह है कि प्रभु यीशु न केवल अनादि से है, बल्कि उसने संपूर्ण विश्वमंडल की सृष्टि की है़. इसी तथ्य को संत योहन अपने सुसमाचार के प्रथम अध्याय में कहते हैं, आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था.
वह आदि में ईश्वर के साथ था़ उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ. प्रभु यीशु सचमुच ईश्वर है़ं पवित्र तृत्व का दूसरा जन! उसका न आदि है न अंत़ स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उसका है. उसने कहा जो उसकी शिक्षा पर चलेगा वह कभी नहीं मरेगा बल्कि अनंत जीवन का अधिकारी होगा़
प्रभु यीशु की शिक्षा क्या है? जब फरीसियों ने प्रभु यीशु से पूछा कि संहिता में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है. प्रभु यीशु ने कहा, अपने प्र्रभु ईश्वर को अपने हृदय, आत्मा और बुद्धि से प्यार करो़ यह सबसे बड़ी व पहली आज्ञा है़ दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है. अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो़ इन्हीं दो आज्ञाओं पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलंबित हैं.
सिनाई पर्वत पर ईश्वर ने जो दस आज्ञाएं दी थीं, उन्हीं को प्रभु यीशु ने लोगों को गहराई से समझाया़ इन दस आज्ञाओं में प्रथम तीन आज्ञाएं ईश्वर से संबंधित हैं. बाकी सात पड़ोसी प्रेम से़ प्रभु यीशु ने अपने को दीन-हीन बनाकर मानव मुक्ति के लिए अपने पिता की इच्छा पूरी की. ईश्वर की इच्छा पूरी करना ही उसके प्रति प्रभु यीशु के प्रेम की पराकाष्ठा है़ चालीसा के समय कलीसिया हमें आमंत्रित करती है कि ईश पुत्र प्रभु यीशु पर हम पूरा विश्वास करें और उसकी शिक्षा को अपने जीवन में कार्यान्वित करे़ं