21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Chaitra Navratri 2022: पांचवे दिन करें स्कंदमाता की पूजा, काशी के इस मंदिर में मिलता है विद्या का वरदान

Chaitra Navratri 2022: स्कंदमाता को वात्‍सल्‍य की मूर्ति भी कहा जाता है. स्कंदमाता को सृष्टि की पहली प्रसूता स्त्री माना जाता है. स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है.

Chaitra Navratri 2022: बासंतिक नवरात्र के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता व महागौरी के स्वरूप कलह-क्लेश और रोग-शोक हरने वाली मां विशालाक्षी के दर्शन-पूजन का विधान है. वाराणसी में माँ स्कंदमाता, बागेश्वरी देवी के रूप में विद्यमान है. यहाँ माँ स्कंदमाता का बागेश्वरी रूपी भव्य मंदिर मंदिर अति प्राचीन है. विद्या की देवी माता बागेश्वरी के मंदिर में रात्री से ही माँ के दर्शनों के लिए भक्तो की भीड़ उमड़ पड़ती है. वही दुसरी तरफ़ नवगौरी के दर्शन के क्रम में पंचमी तिथि मां विशालाक्षी का दर्शन-पूजन का महत्व है.

माता का मंदिर मीरघाट, दशाश्वमेध क्षेत्र में है. मान्यता के अनुसार विशालाक्षी देवी के दर्शन- पूजन से भौतिक सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है एवं समस्त दु:खों का निवारण होता है. जैतपुरा में स्थित माँ स्कंदमाता रूपी बागेश्वरी को विद्या की देवी माना जाता है. इसी लिए यहां छात्र भक्तो की खासी भीड़ रहती है. यहाँ माँ को नारियल – लाल चुनरी चढ़ाने का विशेष महत्व है. माँ को चुनरी के साथ लाल अड़हुल की माला व मिष्ठान भी भोग लगाया जाता है. जिससे माँ अपने भक्तो को सदबुद्धि व विद्या के अनुरूप वरदान देती है. स्कन्द माता बागेश्वरी रूपी दुर्गा मंदिर सैकड़ो वर्षो से भक्तो की आस्था का केंद्र रही है.

Also Read: Chaitra Navratri 2022: चैत्र नवरात्र में मां को प्रसन्न करने के लिए जानें हर दिन लगाएं किस चीज का भोग

स्कंदमाता को वात्‍सल्‍य की मूर्ति भी कहा जाता है. स्कंदमाता को सृष्टि की पहली प्रसूता स्त्री माना जाता है. स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. इसलिए मां स्कंदमाता के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। माता दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं. मां कमल के आसन पर विराजती है. इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. मां का वाहन सिंह है. मां का यह स्‍वरूप सबसे कल्‍याणकारी होता है.

कलह-क्लेश और रोग-शोक हरने वाली मां विशालाक्षी काशी की तंग गलियों में वास करती हैं. नवगौरी के दर्शन के क्रम में पंचमी तिथि मां विशालाक्षी का दर्शन-पूजन का महत्व है. माता का मंदिर मीरघाट, दशाश्वमेध क्षेत्र में है. मान्यता के अनुसार विशालाक्षी देवी के दर्शन- पूजन से भौतिक सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है एवं समस्त दु:खों का निवारण होता है. आड़ी-तिरछी गलियों में स्थित मंदिर भवन द्रविड़ शैली का बेहतरीन नमूना है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें