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सरहुल की शोभायात्रा में शरीक हुए मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव, बोले- प्रकृति के बगैर मानव का नहीं है अस्तित्व

Sarhul 2022: लोहरदगा में पारंपरिक विधि विधान एवं हर्षोल्लास के साथ प्रकृति पर्व सरहुल मनाया गया. इस दौरान भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. इस मौके पर जहां आदिवासी लोक संस्कृति की झलक दिखी, वहीं भगवान बिरसा की वेशभूषा में बच्चे नजर आये. मंत्री डाॅ रामेश्वर उरांव भी इस मौके पर शामिल हुए.

Sarhul 2022: प्रकृति पूजा का पर्व सरहुल लोहरदगा जिले में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया गया. चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीय के अवसर पर मनाया जानेवाला यह त्योहार धरती एवं सूर्य के विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है. करमा त्योहार के साथ सरहुल का त्योहार आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. सोमवार को सरहुल त्योहार के मौके पर शहर की सड़कें गुलजार रही. जिले के दूर-दराज से आये ग्रामीणों से शहर की गलियां पट गयी. सड़क एवं चौक-चौराहों पर आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर अाये.

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सरहुल की शोभायात्रा में शरीक हुए मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव, बोले- प्रकृति के बगैर मानव का नहीं है अस्तित्व 2

पूजन के बाद निकली शोभायात्रा

सरहुल के मुख्य अनुष्ठान एमजी रोड स्थित झखरा कुंबा में हुआ. इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि मंत्री सह स्थानीय विधायक डॉ रामेश्वर उरांव समेत विशिष्ट अतिथियों को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया. झखरा कुंबा में पारंपरिक पूजन के बाद केंद्रीय सरना समिति अध्यक्ष मनी उरांव व अन्य पदाधिकारियों के नेतृत्व में दोपहर बाद शहर में भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. सुबह से ही दूर-दूराज के ग्रामीण सरहुल त्योहार में भागीदार बनने के लिए लोहरदगा पहुंचने लगे थे. सुबह 9 बजे तक लोगों की भीड़ झखरा कुंबा में इकट्ठा हो गयी. झखरा कुंबा में आयोजित पूजन कार्यक्रम में सस्वर सरना प्रार्थना गीत का गायन हुआ. इसके बाद पहान चंदरू उरांव, भूषण मुंडा, सोमनाथ उरांव, पुजार बंधनु उरांव एवं कैलाश उरांव द्वारा विभिन्न अनुष्ठान संपन्न कराए गए.

प्रकृति से जुड़ा है मानव का अस्तित्व : डॉ रामेश्वर उरांव

इस मौके पर शामिल हुए मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि लोक जीवन एवं प्रकृति के बीच अटूट संंबंध का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है. प्रकृति का पर्व सरहुल यह त्योहार लोगों को उत्साहित करने वाला तथा जनजातीय समुदाय का प्रकृति के साथ-साथ सह जीवन को भी बतलाता है. साथ ही यह भी संदेश देता है कि प्रकृति के बगैर मानव का समाज में कोई अस्तित्व नहीं है. उन्होंने कहा कि वर्तमान आधुनिक युग में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पूरा देश चिंतित है तथा प्रकृति संरक्षण व संवर्द्धन एक गंभीर चुनौती बन चुकी है. ऐसी परिस्थिति में सरहुल त्योहार की महत्ता बढ़ जाती है. उन्होंने सभी जाति, धर्म एवं समुदाय के लोगों से प्रकृति पर्व सरहुल को हर्षोल्लास के साथ मनाने की अपील की.

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दिखी आदिवासी लोक संस्कृति की झलक

शोभायात्रा को लेकर विभिन्न खोड़हा दलों में विशेष उत्साह देखा गया. पारंपरिक वेशभूषा में विभिन्न गांवों के लोग अलग-अलग दल में बंटकर शोभायात्रा में शामिल हुए. प्रत्येक खोड़हा दल एक-दूसरे से बेहतर प्रस्तुति देने को तत्पर था. शहर की सड़कों पर लय स्वर एवं ताल के साथ सरहुली गीत गूंज रहे थे. आनंद के इस उत्सव में शामिल हर सरना धर्मावलंबी मस्त था. धरती और सूरज के इस विवाह उत्सव को यादगार बनाने के लिए सभी अपनी- अपनी तरफ से प्रयत्नशील थे. मांदर की मधुर थाप, नगाड़े की गूंज तथा शंख ध्वनियों से वातावरण के मंगलमयी होने का संदेश दिया जा रहा. खोड़हा दलों में शामिल युवक-युवतियां एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर थिरकते हुए एकता के साथ आगे बढ़ने का संदेश दे रहे थे. वहीं, इस चिलचिलाती धूप भी इनके उत्साह को कम नहीं कर पा रही थी.

शोभायात्रा में शामिल लोगों का भव्य स्वागत

केंद्रीय सरना समिति की ओर से निकाली गयी सरहुल की शोभायात्रा का समापन मैना बगीचा में हुआ. मैना बगीचा पहुंचने पर स्वागत समिति द्वारा शोभायात्रा में शामिल लोगों का भव्य स्वागत किया गया. इस स्वागत कार्यक्रम की अगुवाई सुनील महली, राजेश उरांव, रावना उरांव, रवि उरांव, सुनील उरांव, अनिल उरांव, हरि उरांव, दीनू उरांव, बिरिया उरांव, भोला उरांव, गूंजा उरांव, जयराम उरांव, संतोष उरांव, सुभाष उरांव व विनोद उरांव आदि लोगों ने की.

भगवान बिरसा की वेशभूषा में नजर आये बच्चे

शोभायात्रा में शामिल विभिन्न खोड़हा दलों द्वारा आकर्षक झांकियां भी प्रस्तुत की गयी. इन झांकियों में जहां आदिवासी सभ्यता संस्कृति की झलक प्रस्तुत की जा रही थी. वहीं, कई झांकियों में शामिल छोटे-छोटे बच्चों ने भगवान बिरसा का रूप बनाकर लोगों को आकर्षित करने का काम किया. छोटे-छोटे बच्चे हाथों में तीर-कमान लिए भगवान बिरसा के मानव सेवा का संदेश दे रहे थे, वहीं बच्चों ने सरना माता की आकर्षक झांकी की प्रस्तुति दी.

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मैना बगीचा में लगा मेला

झखरा कुंबा से निकली शोभायात्रा मैना बगीचा पहुंची. जहां सरहुल मेला सह पूजन अनुष्ठान का आयोजन किया गया. सरना स्थल की आकर्षक सजावट की गयी थी. जहां मिट्टी के दो पवित्र घड़ों में पूजा का पानी रखा गया था. पहान भूषण मुंडा एवं पंचु उरांव द्वारा इस पवित्र जल से सरना माता का अभिषेक किया गया तथा अच्छी बारिश एवं सुख-समृद्धि की कामना की गयी.

इस वर्ष होगी अच्छी बारिश

सरहुल के पर्व पर मानसून की घोषणा करने की आदिवासी परंपरा रही है. मिट्टी के दो घड़ों में रखे पानी को देखकर पहान और पुजार द्वारा बारिश की घोषणा की जाती है. मान्यता है कि यदि मिट्टी के घड़े में रखे गये पानी की मात्रा कम हो जाती है, तो उस वर्ष अच्छी बारिश नहीं होती. इसके विपरीत अगर मिट्टी के घड़े लबालब भरे हो, तो अच्छी बारिश की उम्मीद होती है. इस साल पहान पुजार द्वारा अच्छी वर्षा की भविष्यवाणी की गयी है.

सुरक्षा की थी चाक-चौबंद व्यवस्था

सरहुल शोभायात्रा को लेकर पुलिस प्रशासन सक्रिय नजर आया. किसी भी अप्रिय स्थिति से निबटने के लिए जगह-जगह पुलिस बल के जवान तैनात किए गए थे. विभिन्न चौक-चौराहों पर पुलिस एवं प्रशासनिक पदाधिकारियों की तैनाती की गई थी. सरहुल पर्व के अवसर पर कई व्रतियों द्वारा उपवास भी रखा गया था. साथ ही शोभायात्रा में शामिल लोगों के लिए पेयजल एवं चना गुड़ की व्यवस्था भी विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा की गयी थी. इस क्रम में ऑल चर्चेज कमेटी, नम्हे आश्रय, बजरंग दल, महावीर मंडल, जय श्री राम समिति, अंजुमन इस्लामिया, जिला भाजपा कमेटी, कांग्रेस जिला कमेटी, विश्व हिंदू परिषद सहित विभिन्न संगठनों के माध्यम से गुड़, चना व शीतल पेय का वितरण किया गया. शोभायात्रा में आदिवासी समाज के अगुवा ,प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी सहित बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के युवक-युवतियां शामिल थी.

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Posted By: Samir Ranjan.

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