Gangaur 2022: गणगौर का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस बार यह व्रत 4 अप्रैल को रखा जा रहा है. अखंड सौभाग्य का प्रतीक गणगौर व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है. गणगौर तीज के दिन कुंवारी और नवविवाहित महिलाएं गणगौरों को किसी नदी या सरोवर में पानी पिलाती हैं. अगले दिन शाम को इसे विसर्जित किया जाता है. विवाहित महिलाएं इस व्रत को अखंड सुहाग की कामना के साथ करती हैं जबकि कुंवारी महिलाएं मनचाहा वर पानी की कामना के साथ यह व्रत रखती हैं. खास कर यह व्रत राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश में प्रचलित है.
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तृतीया तिथि 3 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से शुरू
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4 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट पर तृतीया तिथि समाप्त होगी
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उदया तिथि के अनुसार इस व्रत को 4 अप्रैल सोमवार को रखा जाएगा
गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है. गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती है. गणगौर पूजा में माता पार्वती व भगवान शंकर की पूजा होती है. शास्त्रों के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी. उसी तप के प्रभाव से भगवान शिव को उन्होंने पति रूप में पाया था. इस दिन खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने समस्त स्त्री जाति को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया था. तभी से इस व्रत को करने की प्रथा शुरू हुई.
गणगौर उत्सव होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी 17 दिनों तक चलने वाला त्योहार है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं. इस तरह चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है.
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होली के दूसरे दिन यानी कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानी की गण एवं माता पार्वती यानी की गौर बनाकर प्रतिदिन उनकी पूजा करती हैं.
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गणगौर के इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठ कर दूब और फूल चुन कर लाती हैं. उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं.
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चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाया जाता है.
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दूसरे दिन यानी कि चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम के समय उनका विसर्जन किया जाता है.
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गणगौरों के पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना गया है.
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विसर्जन के दिन सुहागिनें सोलह श्रृंगार करती हैं और दोपहर तक व्रत रखती हैं.