21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अस्थिरता की गिरफ्त में पाकिस्तान

सभी जानते हैं कि इमरान खान ‘इलेक्टेड’ नहीं, बल्कि सेना द्वारा ‘सिलेक्टेड’ थे. कोरोना से उत्पन्न संकट के बाद तो सेना ने सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था.

पाकिस्तान एक बार फिर अस्थिरता की गिरफ्त में है. प्रधानमंत्री इमरान खान की सलाह पर वहां के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नेशनल असेंबली भंग कर दी है. 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में बहुमत गंवा चुके इमरान के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव को उपाध्यक्ष कासिम सूरी ने संविधान के खिलाफ बता कर भले खारिज कर दिया और इमरान को संसद में होने वाली फजीहत से बचा लिया, मगर इमरान की मुश्किलें खत्म होने की बजाय बढ़ गयी हैं.

एक ओर जहां एसेंबली के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान ले लिया है. विपक्ष ने असेंबली भंग करने को संविधान के खिलाफ करार दिया और संसद भवन परिसर में ही धरना शुरू कर दिया है. दरअसल, पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें इतनी कमजोर हैं कि हर तीन-चार साल बाद इस पर कोई कुठाराघात हो जाता है. पाकिस्तान के स्याह राजनीतिक इतिहास में प्रधानमंत्री सबसे कमजोर कड़ी है.

चाहे वह भारी जनादेश वाली नवाज शरीफ की सरकार हो या साधारण बहुमत वाली इमरान खान की सरकार, किसी सैन्य तानाशाह को उसे गिराते देर नहीं लगती है. पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास उथल पुथल भरा व रक्तरंजित रहा है. चुनी हुई सरकारों को सैन्य तानाशाहों ने चार बार गिराया है. दो प्रधानमंत्रियों को न्यायपालिका ने बर्खास्त किया, जबकि एक पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी गयी और एक पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गयी. मौजूदा घटनाक्रम उसी उथल पुथल का दोहराव है.

सेना के हाथ खींच लेने के बाद कई सहयोगियों ने भी इमरान खान का साथ छोड़ दिया. सभी जानते हैं कि इमरान खान ‘इलेक्टेड’ नहीं, बल्कि सेना द्वारा ‘सिलेक्टेड’ थे. कोरोना से उत्पन्न संकट के बाद तो सेना ने सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था. इमरान खान पहले कठपुतली प्रधानमंत्री थे और उसके बाद वे मात्र मुखौटा प्रधानमंत्री रह गये थे. यह तथ्य जगजाहिर है कि पिछले आम चुनाव में सेना ने पूरी ताकत लगाकर इमरान खान को जिताया था और इसके लिए बड़ी हेराफेरी भी की थी.

चुनाव प्रचार और मतदान से लेकर मतगणना तक सारी व्यवस्था सेना ने अपने नियंत्रण में रखा था. सुरक्षा एजेंसियां ने चुनावी कवरेज को प्रभावित करने के लिए लगातार अभियान चलाया. जो भी पत्रकार, चैनल या अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आया, खुफिया एजेंसियां ने उन्हें निशाना बनाया था. चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल कैद की सजा सुना दी गयी थी, ताकि इमरान खान सत्ता के मजबूत दावेदार बन कर उभर सकें.

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पाकिस्तान की हालात विचित्र है. इमरान खान रूस के समर्थन में खड़े नजर आये, तो सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने इसके उलट रुख अपनाया है. बाजवा ने यूक्रेन पर रूसी हमले को तुरंत रोकने की मांग की है. इमरान अमेरिका पर आरोप लगा रहे हैं, वहीं सेना प्रमुख अमेरिका का पक्ष लेते नजर आये. जनरल बाजवा ने कहा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को तुरंत रोका जाना चाहिए.

उन्होंने इसे एक बड़ी त्रासदी करार देते हुए कहा कि रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं के बावजूद एक छोटे देश के खिलाफ उसकी आक्रामकता को माफ नहीं किया जा सकता है. इमरान खान ने हाल में लगातार भारत की विदेश नीति की तारीफ की. इसका कोई विशेष अर्थ न निकालें. ऐसा वे पाकिस्तानी सेना को चिढ़ाने के लिए कह रहे थे, क्योंकि विदेश नीति का नियंत्रण सेना के हाथ में है और सेना उन्हें सत्ता से हटा रही थी.

ऐसे बयानों से इमरान खान पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे थे, जिसने उन्हें दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया. ठीक यूक्रेन युद्ध से पहले रूस की यात्रा कर उन्होंने अमेरिका को नाराज कर दिया था. कुछ दिनों से वे कह रहे हैं कि विपक्ष के साथ मिल कर विदेशी मुल्क में उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है.

उन्होंने कई बार नाम लेकर और कई बार बिना नाम के अमेरिका पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया है. इमरान खान ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने साफ तौर पर कहा है कि आप अगर इमरान खान हटायेंगे, तो हमारे संबंध आपसे अच्छे होंगे और हम आपको माफ कर देंगे. उनका आरोप है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ भी इस साजिश में शामिल हैं.

कहा जाता है कि पाकिस्तान में सत्ता तीन ए- आर्मी, अल्लाह और अमेरिका- के सहारे चलती है. जब 2018 में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पाकिस्तान क सत्ता में आयी, तो इमरान खान ने अपनी सरकार को रियासते-मदीना यानी मदीने की सरकार की तरह चलाने का ऐलान किया था.

पाश्चात्य जीवनशैली वाले इमरान सत्ता में आने के बाद कट्टर धार्मिक हो गये. इमरान खान बड़ी-बड़ी बातें कर सत्ता में आये थे, पर वे हर मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम रहे हैं. उनके कार्यकाल में देश की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गयी. सेना को लगा कि ऐसी विषम परिस्थितियों में इमरान खान से पीछा छुड़ाना ही बेहतर है, जबकि वे सेना के साथ तालमेल बिठाते रहे, लेकिन आइएसआइ के पूर्व प्रमुख फैज हमीद को हटाने में देरी की कोशिश ने सेना को उनसे नाराज कर दिया और फिर उनके बीच दूरियां बढ़ती गयीं.

फैज हमीद इमरान खान के करीबी थे और वे राजनीतिक साजिशों का हिस्सा थे. पाकिस्तान में सेना का सत्ता पर नियंत्रण कोई नयी बात नहीं है. कुछ अरसा पहले अमेरिकी मीडिया एजेंसी ब्लूमबर्ग ने पाकिस्तान पर अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट में बताया था कि सेना के वफादार माने जानेवाले दर्जनभर लोग इमरान सरकार में प्रमुख पदों पर काबिज थे. इनमें से अधिकतर पूर्व सैन्य अधिकारी हैं. ये उड्डयन, बिजली और स्वास्थ्य जैसे अहम विभागों में नियुक्त किये गये थे. इनमें से कई परवेज मुशर्रफ की सरकार के भी हिस्सा थे.

पाकिस्तान में सेना सत्ता के साथ उद्योग-धंधे भी चलाती है. प्रॉपर्टी के धंधे में भी उसकी दिलचस्पी है. वहां अदालतें सेना के इशारे पर फैसले सुनाती हैं, अन्यथा जजों को ही रुखसत कर दिया जाता है. यही वजह है कि अब तक पाकिस्तान में जितने भी तख्ता पलट हुए हैं, उन सभी को पाक सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है तथा किसी भी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तख्ता पलट पर आपत्ति नहीं जतायी है. रिश्तों को लेकर भारत पहले से ही कठिन दौर से गुजर रहा है. ऐसे वक्त में पाकिस्तान का घटनाक्रम चिंताजनक है. पुरानी कहावत है कि आप अपना मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं. पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है, इसलिए न चाहते हुए भी वहां की घटनाएं हमें प्रभावित करती हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें