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जब बांका के रास्ते गांधी जी पहुंचे देवघर, भीड़ के कारण अंगूठे में लगी थी चोट, जानें इस यात्रा का मकसद

झारखण्ड: 1925 में गांधी जी देवघर आये थे, यहां गांधीजी ने महिलाओं को संबोधित किया था और अंत में जिला कांग्रेस की बैठक में हिस्सा लिया था. उस वक्त उनसे मिलने के लिए इतनी भीड़ थी कि निकलने के दौरान उनके अंगूठा कुचला गया था

सन 1925 के तीन अक्तूबर को गांधीजी देवघर प्रवास में थे. यहां वे ‘गोवर्धन भवन’ (आर मित्रा स्कूल के समीप) में ठहरे थे. यह कोठी सेठ गोवर्धन दास की थी, जो कोलकाता में रहते थे. इस यात्रा का श्रेय कांग्रेसी नेता शशि भूषण राय को जाता है. सनद रहे कि इन्हीं शशि भूषण राय के नाम पर यहां बड़ा बाजार में एक सड़क है.

गांधीजी के साथ बांका (तब भागलपुर जिला) के कांग्रेसी नेता चक्रधर सिंह भी थे, जिन्होंने एक दिन पूर्व गांधीजी के जन्मदिवस पर बांका में प्रार्थना सभा आयोजित की थी. यहां गांधीजी ने महिलाओं को संबोधित किया था और अंत में जिला कांग्रेस की बैठक में हिस्सा लिया था. बांका में उनके लिए बकरी के दूध की व्यवस्था भी की गयी थी और दाल-भात का भंडारा भी रखा गया था.

यहां इनसे मिलने वालों की काफी भीड़ थी, जिससे निकलने के क्रम में इनका अंगूठा कुचल गया था. अंगूठे में चेथरी (पुराने कपड़े) से बैंडेज बांध कर इन्होंने आगे प्रस्थान किया. रतनगंज-कजरैली-अमरपुर होते हुए वे बांका पहुंचे थे. यहां से वे ककवारा-कटोरिया-चांदन होते हुए देवघर पहुंचे.

कोलकाता में देवघरिया गांधीवादी हरगोविंद डालमिया के आग्रह पर वे करणी बाग, देवघर स्थित उनके ‘लक्ष्मी निवास’ में ठहरे थे, जहां इन्होंने सूत भी काता था. इसके उपरांत देवघर नगरपालिका ने इनके सम्मान में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया था, जिसमें स्वच्छता पर जोर दिया गया था.

कार्यक्रम समाप्त होने के बाद गांधीजी रिखिया ग्राम गये थे. वहां इनकी प्रतीक्षा कोलकाता हाइकोर्ट के सॉलिसीटर कुमार कृष्णदत्त अपने आवास पर कर रहे थे.

वहां से वापसी में के दौरान वे संत बमबम बाबा से मिलने उनके आश्रम में गये, जो इनके यात्रा-मार्ग में ही था. बाबा से मिल कर गांधीजी ने कहा था कि सनातन धर्म को पतन से बचाने के लिए आप जो प्रयास कर रहे हैं, वह सराहनीय है.

इनकी इस यात्रा का उद्देश्य था संतालों को शराबखोरी से दूर करना. इस दौरान यहां के लोगों ने गांधी जी को एक पर्चा भी सौंपा था, जो अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सन 1920-21 में किये गये जुल्म का कच्चा चिट्ठा था. यहां से गांधीजी मधुपुर होते हुए गिरिडीह चले गये थे.

उदय शंकर ‘चंचल’, बौंसी, बांका

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